Friday, 6 May 2022

हमारी अंतर्दृष्टि सदा परमात्मा की ओर ही रहे ---

 हमारी अंतर्दृष्टि सदा परमात्मा की ओर ही रहे ---

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"ॐ नमः शिवाय विष्णुरूपाय शिवरूपाय विष्णवे।
शिवस्य हृदयं विष्णु: विष्णोश्च हृदयं शिव:॥"
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परमात्मा एक प्रवाह है, उसे स्वयं के माध्यम से प्रवाहित होने दें। कोई अवरोध न खड़े करें। परमात्मा एक रस हैं, उनका निरंतर रसास्वादन करें। परमात्मा में समर्पित हो हमें स्वयं को ही उनके साथ एक होना पड़ेगा। हमारे आदर्श भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण हैं।
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जो परमात्मा में समर्पित हो गया, वह इस पृथ्वी पर एक चलता-फिरता देवता है। उसे पाकर यह भूमि सनाथ और पवित्र हो जाती है। वह कुल, परिवार और भूमि धन्य है, जहाँ ऐसी महान आत्मा जन्म लेती है।
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ध्यान सदा परमात्मा की सर्वव्यापकता का होता है। यह देह तो एक साधन यानि वाहन मात्र है जो इस लोकयात्रा के लिए मिला हुआ है। किसी भी शिवालय में जैसे नंदी की दृष्टि सदा शिव की ओर ही होती है, क्योकि वह उनका वाहन है। वैसे हमारी भी अंतर्दृष्टि आत्मा की ओर ही रहे, क्योंकि यह शरीर, आत्मा का वाहन है।
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हिरण्यगर्भ: समवर्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेक आसीत्।
स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम॥ (ऋग्वेद १०-१२१-१)
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ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
२४ अप्रेल २०२२

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