Monday, 27 August 2018

हमारी पूँजी परमात्मा को समर्पित तप है .....

हमारी वास्तविक व्यवहारिक आध्यात्मिक पूंजी परमात्मा को समर्पित "तप" है| यही हमारी असली कमाई है| अन्य बड़ी बड़ी झूठी दार्शनिक बातों में कुछ नहीं रखा है| परमात्मा स्वयं हमारे माध्यम से सांस ले रहे हैं, वे ही हमारा जीवन जी रहे हैं| कितना समय हमने उनके ध्यान में व्यतीत किया है, कितने समय तक हमने उनके पवित्र नाम का जप किया है, कितना हमने उनका स्मरण किया है, यह हमारे राम नाम के खाते में जुड़ कर राम नाम की बैंक में स्वतः ही जमा हो जाता है| इसे हम से कोई छीन नहीं सकता, इसकी कोई चोरी भी नहीं हो सकती| यह शरीर छूटने के पश्चात यही पूंजी काम आयेगी| अन्य कुछ भी काम नहीं आयेगा| यह धन बढ़ाएं, इसकी खूब कमाई करें|
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दूसरों की कमाई हमारे काम नहीं आ सकती| दूसरा कोई अपनी कमाई हमें क्यों देगा? हमारा खुद का कमाया ही काम आयेगा| अतः किसी के पीछे पीछे भागने में कोई सार नहीं है| अपनी कमाई खुद ही करें|
वह धन "राम" नाम की ही पूंजी है.

रक्षा-बंधन, रक्षा-सूत्र, भगवा ध्वज और श्रावण पूर्णिमा .....

रक्षा-बंधन, रक्षा-सूत्र, भगवा ध्वज और श्रावण पूर्णिमा .....
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(आज २६ अगस्त २०१८ को प्रातः रा.स्व.से.संघ झुंझुनूं की प्रौढ़ शाखा में निम्न बौद्धिक मेरे द्वारा दिया गया)
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परम पवित्र भगवा ध्वज, माननीय विभाग संघचालक जी, अधिकारीगण व उपस्थित स्वयंसेवको,
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वैसे तो भारत त्योहारों का देश है जहाँ पूरे वर्ष ही अनेक त्यौहार मनाये जाते हैं| संघ में हम सिर्फ छः उत्सव मनाते हैं ... वर्षप्रतिपदा, गुरुपूर्णिमा, रक्षाबंधन, शिवाजी साम्राज्य दिनोत्सव, विजयादशमी और मकर संक्रांति| आज हम रक्षा बंधन का पर्व मना रहे हैं| आज पवित्र श्रावण माह की पूर्णिमा होने के कारण रक्षाबंधन का पर्व है|
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रक्षा-बंधन वह बंधन है जो रक्षा के लिए बांधा जाता है| भगवा रंग अग्नि का रंग है जो पवित्रता का प्रतीक है| भगवा ध्वज भारत के धर्म और संस्कृति का प्रतीक है| हम परम पवित्र भगवा ध्वज को तिलक लगा कर और रक्षा-सूत्र बांधकर प्रणाम करते हैं तो यह हमारे धर्म और संस्कृति का सम्मान है| यह हमारा संकल्प है कि हम हमारे धर्म, संस्कृति और मान-सम्मान की रक्षा करेंगे|
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हम भारत को एक परम वैभवयुक्त, सशक्त और समृद्ध राष्ट्र बनाना चाहते हैं, तो वर्गभेद मिटाकर समानता और समरसता का भाव जागृत करना होगा| यह तभी संभव होगा जब हम समाज के दुर्बल, और उपेक्षित लोगों में राष्ट्रीय चेतना जगाकर उनमें राष्ट्र-रक्षा का भाव जागृत करेंगे| धर्म उन्हीं की रक्षा करता है जो धर्म की रक्षा करते हैं| धर्मरक्षा हेतु हमें समाज के उपेक्षित और दुर्बल वर्ग को गले लगाना होगा| वर्तमान में देश की आतंरिक व बाह्य सुरक्षा को बड़ी चुनौतियां मिल रही हैं| इन चुनौतियों के मध्य हमारा क्या दायित्व हो सकता है, इसका निर्णय हम अपने विवेक से करें|
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श्रावण-पूर्णिमा का दिन ब्राह्मण वर्ग के लिए आत्मशुद्धि का पर्व है| वैदिक परम्परानुसार यह वेदपाठी ब्राह्मणों के लिए सबसे बड़ा त्यौहार है जो इसे श्रावणी उपाकर्म के रूप में मनाते हैं| नदियों व तालाबों के किनारे ब्राह्मण एकत्र होते हैं और आत्मशुद्धि के लिए अभिषेक व हवन करते हैं| इस में विधि-विधान से बनाया हुआ पंचगव्य, भस्म, चन्दन, अपामार्ग, दूर्वा, कुशा और मन्त्रों का प्रयोग किया जाता है| नया यज्ञोपवीत भी धारण करते हैं| गुरुकुलों में वेदपाठ का आरम्भ भी आज के दिन से ही होता है|
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एक बार कालखंड में वेदों का ज्ञान लुप्त हो गया था, स्वयं ब्रह्मा जी के पास भी वेदों का ज्ञान नहीं रहा| तब भगवान विष्णु ने हयग्रीव का अवतार लेकर फिर से वेदों का ज्ञान ब्रह्माजी को दिया| हयग्रीव अवतार में उनकी देह मनुष्य की थी पर सिर घोड़े का था| उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी| भगवान हयग्रीव बुद्धि के देवता है| तब से श्रावणी उपाकर्म को आत्मशुद्धि के लिए मनाते हैं| हयग्रीव नाम का एक राक्षस भी था, उसका वध भी भगवान विष्णु ने हयग्रीवावतार में किया|
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देवासुर संग्राम में देवताओं की असुरों द्वारा सदा पराजय ही पराजय होती थी| एक बार इन्द्राणी ने इन्द्र के हाथ पर विजय-सूत्र बांधा और विजय का संकल्प कराकर रणभूमि में भेजा| उस दिन युद्ध में इंद्र विजयी रहे| 
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राजा बली का सारा साम्राज्य भगवान विष्णु ने वामन अवतार के रूप में दान में प्राप्त कर लिया था और सिर्फ पाताल लोक ही उसको बापस दिया| अपनी भक्ति से राजा बलि ने विष्णु को वश में कर के उन्हें अपने पाताल लोक के महल में ही रहने को बाध्य कर दिया| लक्ष्मी जी ने बड़ी चतुरता से राजा बली को रक्षासूत्र बांधकर एक वचन लिया और विष्णु जी को वहाँ से छुड़ा लाईं| तब से रक्षासूत्र बांधते समय ....
"येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल" .... मन्त्र का पाठ करते हैं|
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महाभारत में शिशुपाल वध के समय भगवान श्रीकृष्ण की अंगुली में चोट लग गयी थी और रक्त बहने लगा| तब द्रोपदी वहीं खड़ी थी| उसने अपनी साड़ी का एक पल्लू फाड़कर भगवान श्रीकृष्ण की अंगुली में एक पट्टी बाँध दी| चीर-हरण के समय भगवान श्रीकृष्ण ने द्रोपदी की लाज की रक्षा की| 
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मध्यकाल में विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा हिन्दू नारियों पर अत्यधिक अमानवीय क्रूरतम अत्याचार होने लगे थे| तब से महिलाऐं अपने भाइयों को राखी बाँधकर अपनी रक्षा का वचन लेने लगीं, और रक्षासूत्र बांधकर रक्षाबंधन मनाने की यह परम्परा चल पड़ी|
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भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में पेशवा नाना साहब और और रानी लक्ष्मीबाई के मध्य राखी का ही बंधन था| रानी लक्ष्मीबाई ने पेशवा को रक्षासूत्र भिजवा कर यह वचन लिया था कि वे ब्रह्मवर्त को अंग्रेजों से स्वतंत्र करायेंगे|
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बंग विभाजन के विरोध में रविन्द्रनाथ टैगोर की प्रेरणा से बंगाल के अधिकाँश लोगों ने एक-दूसरे को रक्षासूत्र बांधकर एकजूट रहने का सन्देश दिया| 
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श्रावण पूर्णिमा के दिन भगवान शिव धर्मरूपी बैल पर बैठकर अपनी सृष्टि में भ्रमण करने आते हैं| हमारे घर पर भी उनकी कृपादृष्टि पड़े, और वे कहीं नाराज न हो जाएँ, इस उद्देश्य से राजस्थान और आसपास के क्षेत्रों में महिलाऐं अपने घर के दरवाजों पर रक्षाबंधन के पर्व से एक दिन पहिले "सूण" मांडती हैं|
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अंत में मैं इस प्रार्थना के साथ अपनी वाणी को विराम देता हूँ कि .... "भारत माता अपने द्वीगुणित परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बिराजमान हों, सम्पूर्ण भारत में असत्य और अन्धकार की शक्तियों का नाश हो, और सनातन धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा हो| वन्दे मातरं !! भारत माता की जय !!!
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कृपा शंकर 
२६ अगस्त २०१८

परमात्मा को हम क्या दे सकते हैं ? ....

परमात्मा को हम क्या दे सकते हैं ?
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ये पंक्तियाँ मैं ईश्वरीय प्रेरणा से अपने पूर्ण हृदय से लिख रहा हूँ| अपने हृदय का पूर्ण प्रेम मैनें इन शब्दों में डाल दिया है| इन शब्दों को समझने के लिए सिर्फ प्रेम चाहिए, कोई विद्वता नहीं| मैं अपनी गुरु-परम्परा और परमात्मा की परम कृपा से ही इन शब्दों को लिख पा रहा हूँ, अन्यथा मुझ अकिंचन की कोई औकात नहीं है कि इन शब्दों को लिख सकूँ| जो भी इन शब्दों को समझेगा उसका निश्चित रूप से कल्याण होगा.

हम परमात्मा को "स्वयं" को ही दे सकते हैं, अन्य कुछ भी नहीं| अपने सम्पूर्ण अस्तित्व, अपने सम्पूर्ण अंतःकरण, यानि अपने मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार .... अपनी पृथकता का बोध, ..... सब कुछ हम परमात्मा को पूर्ण रूप से अर्पित कर दें| इसके अतिरिक्त हमारे पास है ही क्या? सब कुछ तो उसी का है|
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यह देह रूपी उपकरण जो परमात्मा ने हमें लोकयात्रा के लिए दिया है, उस उपकरण में अंतर्रात्मा यानी आत्म-तत्व के रूप में परमात्मा स्वयं बिराजमान हैं| वे ही इस देहरूपी विमान के चालक हैं, यह विमान भी वे स्वयं ही हैं, वे ही इस देह में सांस ले रहे हैं| इस देह के साथ साथ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड यानि सम्पूर्ण सृष्टि भी सांस ले रही है| हम यह देह नहीं, परमात्मा की परमप्रेममय अनंतता हैं| इस सांस रूपी यज्ञ में हर सांस के साथ-साथ हम अपने अहंकार रूपी शाकल्य की आहुति श्रुवा बन कर दे दें|
"यह आहुति ही है जो हम परमात्मा को दे सकते हैं, अन्य कुछ भी नहीं"|
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गीता में भगवान कहते हैं .....
"ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्| ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना||४:२४||
अर्थात् .... अर्पण (अर्पण करने का साधन श्रुवा) ब्रह्म है, और हवि (शाकल्य अथवा हवन करने योग्य द्रव्य) भी ब्रह्म है, ब्रह्मरूप अग्नि में ब्रह्मरूप कर्ता के द्वारा जो हवन किया गया है वह भी ब्रह्म ही है| इस प्रकार ब्रह्मरूप कर्म में समाधिस्थ पुरुष का गन्तव्य भी ब्रह्म ही है||
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परमात्मा द्वारा दी हुई अपनी इस अति सीमित व अति अल्प बुद्धि और क्षमता द्वारा इस से अधिक और कुछ भी लिखने में मैं असमर्थ हूँ|
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परमात्मा का आश्वासन है कि जिनमें भी उनके प्रति परमप्रेम और उन्हें पाने की अभीप्सा होगी, उन्हें वे निश्चित रूप से प्राप्त होंगे| उन्हें मार्गदर्शन भी मिलेगा| हम अपनी साधना में परमात्मा को सर्वत्र देखें, और सब में परमात्मा को देखें|
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गीता में ही भगवान कहते हैं .....
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति| तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति"||६:३०||
अर्थात् ..... जो पुरुष मुझे सर्वत्र देखता है और सबको मुझमें देखता है उसके लिए मैं नष्ट नहीं होता (अर्थात् उसके लिए मैं दूर नहीं होता) और वह मुझसे वियुक्त नहीं होता||
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आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को सप्रेम नमन ! आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ साकार अभिव्यक्तियाँ हैं| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ अगस्त २०१८

"शैतान" कोई झूठी परिकल्पना नहीं, एक वास्तविकता है .....

"शैतान" कोई झूठी परिकल्पना नहीं, एक वास्तविकता है .....
परमात्मा की सृष्टि में "शैतान" एक सर्वव्यापी सचेतन मायावी आसुरी शक्ति है जो हमें निरंतर पतन की ओर धकेलती है| यह सर्वप्रथम "काम वासना" के रूप में, फिर "लोभ" के रूप में, फिर "राग-द्वेष" और "अहंकार" के रूप में स्वयं को व्यक्त करती है| भगवान् की कृपा ही हमें इस से बचा सकती है|
जो माया हमें सत्य यानि परमात्मा से दूर रखती है, उसे ही इब्राहिमी मज़हबों (ईसाईयत, इस्लाम और यहूदीवाद) ने "शैतान" का नाम दिया है| अब हम उसे समझें या न समझें यह हमारी स्वयं की समस्या है| ॐ ॐ ॐ ||

मनुष्य का स्वभाविक "स्वधर्म" क्या हो सकता है ? .....

मनुष्य का स्वभाविक "स्वधर्म" क्या हो सकता है ? .....
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"परम तत्व की खोज और उससे एकात्मता" ही मेरी दृष्टी में हमारा स्वधर्म है|
इस स्वधर्म का पालन और उस की रक्षा का अनवरत प्रयास ही मेरी दृष्टि में आध्यात्म है, अन्य कुछ भी नहीं|
आध्यात्म कोई व्यक्तिगत मोक्ष, सांसारिक वैभव, इन्द्रीय सुख या अपने अहंकार की तृप्ति की कामना का प्रयास नहीं है| यह कोई दार्शनिक वाद-विवाद या बौद्धिक उपलब्धी भी नहीं है| 
साथ साथ सज्जनों की रक्षा और दुर्जनों का विनाश भी हमारा लौकिक धर्म है| भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं....
"श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्| स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः||३:३५||
और ...
नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते| स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्||२:४०||
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भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण का जीवन हमारे लिए आदर्श है| उन जैसे महापुरुषों के गुणों को स्वयं के जीवन में धारण करना, उन की शिक्षा और आचरण का पालन करना एक सच्ची आराधना है| भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण ने जन्म से ही धर्मरक्षार्थ, धर्मसंस्थापनार्थ, व धर्मसंवर्धन हेतु शौर्य, संघर्ष, संगठन व साधना का आदर्श हमारे समक्ष रखा|
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भगवान श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान अर्जुन को कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि में दिया, इस प्रसंग के आध्यात्मिक सन्देश को समझें कि रणभूमि में उतरे बिना यानि साधना भूमि में उतरे बिना हम आध्यात्म को, स्वयं के ईश्वर तत्व को उसके यथार्थ स्वरुप में अनुभूत नहीं कर सकते|
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भगवान श्रीराम ने भी धर्मरक्षार्थ अपने राज्य के वैभव का त्याग किया, और भारत में पैदल भ्रमण कर अत्यंन्त पिछड़ी और उपेक्षित जातियों को जिन्हें लोग तिरस्कार पूर्वक वानर और रीछ तक कह कर पुकारते थे, संगठित कर धर्मविरोधियों का संहार किया| लंका का राज्य स्वयं ना लेकर विभीषण को ही दिया| ऋषि मुनियों की रक्षार्थ ताड़का का वध भी किया|
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उपरोक्त दोनों ही महापुरुष हजारों वर्षों से हमारे प्रातःस्मरणीय आराध्य हैं|
स्वयं के भीतर के राम और कृष्ण तत्व से एकात्मता भी आध्यात्म है, यही सच्ची साधना है, यही शिवत्व की प्राप्ति है| ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ अगस्त २०१८

Wednesday, 15 August 2018

भगवान की लीला को समझना असंभव है .....

भगवान की लीला को समझना असम्भव है| हर युग के हर कालखंड में, हर राष्ट्र, हर समाज, और हर मनुष्य के सम्मुख चुनौतियाँ रही हैं| क्या उचित है और क्या अनुचित है, इसे समझना बड़ा कठिन है| उलझनें, चुनौतियाँ और समस्याएँ मेरे सम्मुख भी हैं| वैचारिक व बौद्धिक स्तर पर मैं किसी भी निर्णय पर पहुँचने में असमर्थ हूँ|
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मुझे सुख, शांति, सुरक्षा और संतुष्टि ..... विशुद्ध आध्यात्मिक और वेदान्तिक चिंतन में ही मिलती है| यह कोई पलायन नहीं बल्कि समस्या का सही समाधान है जिसे बौद्धिक स्तर पर नहीं समझा जा सकता|
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मनुष्य को जब अपने "स्वधर्म" और "आत्म-तत्व" की अनुभूतियाँ होने लगती है तब उसे अनात्म विषयों से स्वयं को शनै शनै पृथक कर लेना चाहिये| गुरुकृपा से अब आत्म-तत्व की अनुभूतियाँ और एक प्रबल आकर्षण क्षण-प्रतिक्षण अपनी ओर आकर्षित कर रहा है|
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इस मायावी विश्व में अब अधिक दिन मेरा निभाव होना असंभव होता जा रहा है| अब धारा के विपरीत तैरना आरम्भ हो गया है| इस संसार से अब मोह समाप्त होने लगा है| इस जीवन के साथ वो ही होगा जैसी हरिइच्छा होगी| मेरी कोई इच्छा/कामना/अपेक्षा नहीं है|
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ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ अगस्त २०१८

क्या हम वास्तव में स्वतंत्र हैं? .....

क्या हम वास्तव में स्वतंत्र हैं? .....
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नहीं, बिलकुल नहीं| वास्तविक स्वतन्त्रता तो परमात्मा में है| परमात्मा से पृथकता ही परतंत्रता है| परमात्मा से पृथकता का कारण है ... हमारा राग-द्वेष, अहंकार, भय और क्रोध| अन्यथा परमात्मा तो नित्यप्राप्त है| सब प्रकार की कामनाओं से मुक्त हो, स्थितप्रज्ञ होकर हम परमात्मा में स्थित हों, तभी हम वास्तव में स्वतंत्र हैं|
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जब परमात्मा के लिए "परमप्रेम" और "अभीप्सा" जागृत होती है तब मार्गदर्शन भी प्राप्त होता है| राग-द्वेष और अहंकार से मुक्ति वीतरागता है| हम वीतराग कैसे बनें? महर्षि पतञ्जलि कहते हैं ..... 'वीतराग विषयं वा चित्तम्' (योगसूत्र १/३७)| वीतराग पुरुषों का चिंतन कर, उन्हें चित्त में धारण कर, उनके निरंतर सत्संग से भी हम वीतराग हो जाते हैं|
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हम "स्थितप्रज्ञ" कैसे हों? यह भगवान श्रीकृष्ण गीता में बताते हैं .....

दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः| वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते||२:५६||
इस श्लोक की विवेचना करते हैं .....
दुःख तीन प्रकार के होते हैं .... "आध्यात्मिक", "आधिभौतिक" और "आधिदैविक"| इन दुःखों से जिनका मन उद्विग्न यानि क्षुभित नहीं होता उसे "अनुद्विग्नमना" कहते हैं|
सुखों की प्राप्ति में जिसकी स्पृहा यानि तृष्णा नष्ट हो गयी है (ईंधन डालने से जैसे अग्नि बढ़ती है वैसे ही सुख के साथ साथ जिसकी लालसा नहीं बढ़ती) वह "विगतस्पृह" कहलाता है|
राग, द्वेष और अहंकार से मुक्ति वीतरागता है| जो वीतराग है और जिसके भय और क्रोध नष्ट हो गये हैं, वह "वीतरागभयक्रोध" कहलाता है|
ऐसे गुणोंसे युक्त जब कोई हो जाता है तब वह "स्थितधी" यानी "स्थितप्रज्ञ" और मुनि या संन्यासी कहलाता है|
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वह "स्थितप्रज्ञता" ही वास्तविक "स्वतन्त्रता" है|
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व्यवहारिक मार्गदर्शन किसी स्थितप्रज्ञ, श्रौत्रीय, ब्रह्मनिष्ठ महात्मा से प्राप्त करें| ऐसे महात्माओं से मिलना भी हरिकृपा से ही होता है| हरिकृपा प्राप्त होती है .... परमात्मा से परमप्रेम और अभीप्सा से|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ अगस्त २०१८

अखंड भारत संकल्प दिवस .....

अखंड भारत संकल्प दिवस पर हम विचारपूर्वक संकल्प करते हैं कि भारत माता अपने द्वीगुणित परम वैभव के साथ अखंडता के सिंहासन पर बिराजमान हों, सम्पूर्ण भारतवर्ष से असत्य और अन्धकार की शक्तियों का नाश हो, और सनातन धर्म की सर्वत्र पुनर्प्रतिष्ठा हो|
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श्रीअरविन्द के शब्दों में भारतवर्ष एक भूमि का टुकड़ा, मिटटी, पहाड़, और नदी नाले नहीं है| न ही इस देश के वासियों का सामूहिक नाम भारत है| भारतवर्ष एक जीवंत सत्ता है| भारतवर्ष हमारे लिए साक्षात माता है जो मानव रूप में भी प्रकट हो सकती है|
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भारतवर्ष का अखंड होना उसकी नियति है|
वर्तमान में भारतवर्ष के अनेक टुकड़े हो गए हैं जिनमें से सबसे बड़ा टुकड़ा India है, फिर बाकि अनेक|
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पर भारत की आत्मा एक है अतः भारत का अखंड होना निश्चित है|
भारतवर्ष दो विपरीत ध्रुवों के समन्वय का देश है| भारतीय मानस आध्यात्मिक, नीतिपरक, बौद्धिक और कलात्मक है|
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भारत का पतन इसलिए हुआ कि लोगों का जीवन अधार्मिक, अहंकारी, स्वार्थपरक और भौतिक हो गया| एक ओर अत्यधिक बाह्याचार, कर्मकांड, यंत्रवत भक्तिभावरहित पूजापाठ में हम लोग भटक गए, दूसरी ओर अत्यधिक पलायनवादी वैराग्य वृत्ति में उलझ गये, जिसने समाज की सर्वोत्तम प्रतिभाओं को अपनी ओर आकृष्ट कर लिया| जो लोग आध्यात्मिक समाज के अवलम्ब और ज्योतिर्मय जीवनदाता बन सकते थे वे समाज के लिए मृत हो गए| फिर हमें कोई सही मार्गदर्शक नहीं मिले|
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श्रीमद् भगवद्गीता हमारी राष्ट्रीय धरोहर है अतः इससे प्रेरणा लेकर हमें शक्ति की साधना और देशभक्ति की भावना बढानी चाहिए|
केवल भारत की आत्मा ही इस देश को एक कर सकती है| भारत की आत्मा को व्यक्त करने और राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने के लिए ..... हमें राष्ट्रभाषा के रूप में संस्कृत को अपनाना होगा और वन्दे मातरम को राष्ट्रगीत बनाना होगा|
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आओ हम सब दृढ़ निश्चय कर यह संकल्प करें कि भारत माँ अपने परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बैठ रही है और अपने भीतर और बाहर के शत्रुओं का विनाश कर रही है|
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भारतवर्ष अखंड होगा, होगा, और होगा| धर्म की पुनर्स्थापना होगी और अन्धकार, असत्य व अज्ञान की शक्तियों का नाश होगा|
वन्दे मातरम| भारत माता की जय|
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वन्दे मातरम्।
सुजलां सुफलां मलय़जशीतलाम्,
शस्यश्यामलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।१।।

शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीम्,
सुखदां वरदां मातरम् । वन्दे मातरम् ।।२।।
कोटि-कोटि कण्ठ कल-कल निनाद कराले,
कोटि-कोटि भुजैर्धृत खरकरवाले,
के बॉले माँ तुमि अबले,
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीम्,
रिपुदलवारिणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।३।।
तुमि विद्या तुमि धर्म,
तुमि हृदि तुमि मर्म,
त्वं हि प्राणाः शरीरे,
बाहुते तुमि माँ शक्ति,
हृदय़े तुमि माँ भक्ति,
तोमारेई प्रतिमा गड़ि मन्दिरे-मन्दिरे। वन्दे मातरम् ।।४।।
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी,
कमला कमलदलविहारिणी,
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्,
नमामि कमलां अमलां अतुलाम्,
सुजलां सुफलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।५।।
श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्,
धरणीं भरणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।६।।
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१४ अगस्त २०१८
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पुनश्चः :--

"भारतभूमि .... आसेतु हिमालय पर्यन्त एक 'सिद्ध कन्या' ही नहीं साक्षात माता है|"
मूलाधार चक्र कन्याकुमारी' है, जहाँ का त्रिकोण शक्ति का स्त्रोत है| इसी मूलाधार से इड़ा पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियाँ प्रस्फुटित होती हैं| कैलाश पर्वत सहस्त्रार है|
ॐ अहं भारतोऽस्मि ॐ ॐ ॐ !! मैं ही भारतवर्ष हूँ, मैं ही सनातन धर्म हूँ, और समस्त सृष्टि मेरा ही विस्तार है| ॐ ॐ ॐ ||
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"मैं भारतवर्ष, समस्त भारतवर्ष हूँ, भारत-भूमि मेरा अपना शरीर है। कन्याकुमारी मेरा पाँव है, हिमालय मेरा सिर है, मेरे बालों में श्रीगंगा जी बहती हैं, मेरे सिर से सिन्धु और ब्रह्मपुत्र निकलती हैं, विन्ध्याचल मेरा कमरबन्द है, कुरुमण्डल मेरी दाहिनी और मालाबार मेरी बाईं जंघाएँ है। मैं समस्त भारतवर्ष हूँ, इसकी पूर्व और पश्चिम दिशाएँ मेरी भुजाएँ हैं, और मनुष्य जाति को आलिंगन करने के लिए मैं उन भुजाओं को सीधा फैलाता हूँ। आहा ! मेरे शरीर का ऐसा ढाँचा है ! यह सीधा खड़ा है और अनन्त आकाश की ओर दृष्टि दौड़ा रहा है। परन्तु मेरी वास्तविक आत्मा सारे भारतवर्ष की आत्मा है। जब मैं चलता हूँ तो अनुभव करता हूँ कि सारा भारतवर्ष चल रहा है। जब मैं बोलता हूँ तो मैं भान करता हूँ कि यह भारतवर्ष बोल रहा है। जब मैं श्वास लेता हूँ, तो अनुभव करता हूँ कि भारतवर्ष श्वास ले रहा है। मैं भारतवर्ष हूँ, मैं शंकर हूँ, मैं शिव हूँ और मैं सत्य हूँ|" --- स्वामी रामतीर्थ ---

१५ अगस्त के दिन राष्ट्रध्वज का पूर्ण सम्मान करें, और यह भी चिंतन करें कि हमें स्वतन्त्रता किसने दिलाई .....

१५ अगस्त के दिन राष्ट्रध्वज का पूर्ण सम्मान करें, और यह भी चिंतन करें कि हमें स्वतन्त्रता किसने दिलाई .....
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कुछ निजी कारणों से मैं १५ अगस्त का उत्सव स्थानीय श्रीअरविन्द आश्रम में ही मनाता हूँ जहाँ पढने वाले बच्चे बहुत सुन्दर भजन कीर्तन करते हैं| कल वहीं एक कार्यक्रम में गया था जहाँ बच्चों ने कार्यक्रम का आरम्भ ऋग्वेद के अग्निसूक्त के पाठ से किया| हर कार्यक्रम का समापन "वन्दे मातरं" के सामूहिक गान से होता है|
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मेरा सभी से अनुरोध है कि इस दिन राष्ट्रध्वज का पूर्ण सम्मान करें और श्रीअरविंद के उत्तरपाड़ा में दिए गए भाषण को एक बार अवश्य पढ़ें| यह भाषण मूल अंग्रेजी में और इसका हिंदी अनुवाद अंतर्जाल यानि इन्टरनेट पर उपलब्ध है| गूगल पर ढूंढ़ते ही मिल जाएगा|
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स्वतन्त्रता दिवस के बारे में मेरी कुछ व्यक्तिगत व्यथाएँ/पीड़ाएँ हैं जो आप सब से साझा कर रहा हूँ|

एक तो मुझे निश्चित रूप से यह नहीं पता कि भारत में सता का हस्तांतरण हुआ था या पूर्ण स्वतन्त्रता मिली थी|
दूसरी मेरी यह व्यथा है कि भारत को स्वतंत्रता मिली भी तो किस मूल्य पर? भारत माता की दोनों भुजाएँ पकिस्तान के रूप में काट दी गईं, लाखों परिवार विस्थापित हुए, लाखों निर्दोष लोगों की हत्याएँ हुईं, लाखों निर्दोष असहाय महिलाओं का बलात्कार हुआ, और लाखों असहाय लोगों का बलात् धर्मांतरण हुआ| क्या इन सब बातों को भुलाया जा सकता है ? यह विश्व के इतिहास का एक बहुत बड़ा सामूहिक नरसंहार था|
वे लाखों हिन्दू धन्य हैं जिन्होंने अपना सब कुछ छोड़कर शरणार्थी बनना स्वीकार किया पर अपना धर्म नहीं छोड़ा| मैं उन सब को नमन करता हूँ|
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भारत के इतिहास का एक गौरवशाली सत्य भी है जिसे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से व्यक्तिगत द्वेष और घृणा के कारण तत्कालीन शासकों ने भारत की जनता से छिपा दिया था| नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज ने जापानी सेना की सहायता से ३० दिसंबर १९४३ को भारत के अंडमान-निकोबार द्वीप समूह को अंग्रेजों के अधिकार से मुक्त करा लिया था| उसी दिन यानि ३० दिसंबर १९४३ को ही पोर्ट ब्लेयर के जिमखाना मैदान में नेताजी सुभाष बोस ने सर्वप्रथम तिरंगा फहराया था| नेताजी ने अंडमान व निकोबार का नाम बदल कर शहीद और स्वराज रख दिया था| स्वतंत्र भारत की घोषणा कर के स्वतंत्र भारत की सरकार भी नेता जी ने बना दी थी|
उसके पश्चात वहाँ पूरे एक वर्ष से अधिक समय तक आजाद हिन्द फौज का शासन रहा| नेताजी की संदेहास्पद तथाकथित मृत्यु के पश्चात अंग्रेजों ने आजाद हिन्द फौज से वहाँ का शासन बापस छीन लिया| अब सोचिये की हमें स्वतन्त्रता किसने दिलाई ?
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यह हमारा दुर्भाग्य है कि जिन्होंने लाखों भारतीयों की ह्त्या की उन अँगरेज़ जनरलों नील और हेवलॉक के सम्मान में रखे गए द्वीपों के नाम Neil Island और Havelock Island अभी तक वैसे के वैसे ही हैं| और भी वहाँ ऐसे कई टापू होंगे जिनके नाम अत्याचारी अँगरेज़ सेनानायकों के सम्मान में रखे गये थे| उनके नाम बदलने चाहिएँ| भारत का सबसे दक्षिणी भाग इंदिरा पॉइंट है जो ग्रेट निकोबार के दक्षिण में है| पहले इसका नाम पिग्मेलियन पॉइंट था| यहाँ का लाइट हाउस बड़ा महत्वपूर्ण है|
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भारत माता की जय ! वन्दे मातरं ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ अगस्त २०१८

चीन ने तिब्बत पर बलात् अधिकार क्यों किया ? भारत-चीन के मध्य तनाव का असली कारण क्या है ?

(संशोधित व पुनर्प्रेषित लेख).
प्रश्न :-- चीन ने तिब्बत पर बलात् अधिकार क्यों किया ? भारत-चीन के मध्य तनाव का असली कारण क्या है ?
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चीन ने तिब्बत पर अधिकार किया इसके पीछे उसकी भू लिप्सा नहीं, कारण कुछ और है| चीन के अपने उन सभी पड़ोसियों से जिनसे उसका विवाद है, का कारण भी भूमि का लालच नहीं, कारण कुछ और है| चीन ने बंगाल की खाड़ी में म्यान्मार (बर्मा) से कोको द्वीप लीज पर क्यों लिया उसके भी कारण हैं| भारत को घेरने की नीति चीन ने क्यों बनाई ? इसके पीछे भी कारण हैं|
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इस बात को माओ बहुत अच्छी तरह समझता था, पर जवाहलाल नेहरु नहीं समझ पाये| माओ ने तिब्बत पर अधिकार कर लिया, अक्सा चान (अक्साई चिन) भारत से छीन लिया| भारत का नेतृत्व इस बात को बहुत देरी से समझा, पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी| यदि जवाहरलाल नेहरु इस बात को समय पर समझ जाते तो तिब्बत पर कभी भी चीन का अधिकार नहीं होने देते| बहुत देरी से समझे तो बिना किसी तैयारी के १९६२ में चीन से युद्ध आरम्भ कर दिया, जिसमें हम बहुत बुरी तरह हारे| चीन से १९६२ का युद्ध हमने ही शुरू किया था बिना किसी तैयारी के| दक्षिणी चीन सागर को लेकर चीन का अन्य पड़ोसी देशों से विवाद क्यों है ? इसका भी कारण है|
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उत्तर :-- चीन ने तिब्बत पर अधिकार किया इसका असली कारण है वहाँ की अथाह जल राशि, और भूगर्भीय संपदा है, जिसका अभी तक दोहन नहीं हुआ है| तिब्बत में कई ग्लेशियर हैं और कई विशाल झीलें हैं| भारत की तीन विशाल नदियाँ ..... ब्रह्मपुत्र, सतलज, और सिन्धु ..... तिब्बत से आती हैं| गंगा में आकर मिलने वाली कई छोटी नदियाँ भी तिब्बत से आती हैं| चीन इस विशाल जल संपदा पर अपना अधिकार रखना चाहता है इसलिए उसने तिब्बत पर अधिकार कर लिया| हो सकता है भविष्य में वह इस जल धारा का प्रवाह चीन की ओर मोड़ दे| इस से भारत में तो हाहाकार मच जाएगा पर चीन का एक बहुत बड़ा क्षेत्र हरा भरा हो जाएगा|
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चीन का सीमा विवाद उन्हीं पड़ोसियों से रहा है जहाँ सीमा पर कोई नदी है, अन्यथा नहीं|
रूस से उसका सीमा विवाद उसूरी और आमूर नदियों के जल पर था| ये नदियाँ अपना मार्ग बदलती रहती हैं, कभी चीन में कभी रूस में| उन पर नियंत्रण को लेकर दोनों देशों की सेनाओं में एक बार झड़प भी हुई थी| अब तो दोनों में समझौता हो गया है और कोई विवाद नहीं है|
वियतनाम में चीन से युआन नदी आती है जिस पर हुए विवाद के कारण चीन और वियतनाम में सैनिक युद्ध भी हुआ है| उसके बाद समझौता हो गया था|
चीन को पता था कि भारत से एक न एक दिन उसका युद्ध अवश्य होगा अतः उसने भारत को घेरना शुरू कर दिया| बंगाल की खाड़ी में कोको द्वीप इसी लिए उसने म्यांमार से लीज पर लिया|
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भारत को तिब्बत पर अपना अधिकार नहीं छोड़ना चाहिए था| अंग्रेजों का वहाँ अप्रत्यक्ष अधिकार था| आजादी के बाद भारत ने भारत-तिब्बत सीमा पर कभी भौगोलिक सर्वे का काम भी नहीं किया जो बहुत पहिले कर लेना चाहिए था| बिना तैयारी के चीन से युद्ध भी नहीं करना चाहिए था| जब युद्ध ही किया तो वायु सेना का प्रयोग क्यों नहीं किया? चीन की तो कोई वायुसेना तिब्बत में थी ही नहीं|
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भारत-चीन में सदा तनाव बना रहे इस लिए अमेरिका की CIA ने भारत में दलाई लामा को घुसा दिया| वर्त्तमान में तनाव तो दलाई लामा को लेकर ही है| दलाई लामा चीन की दुखती रग है| दलाई लामा आदतन बछड़े का मांस खाते हैं| सारे तिब्बती गाय का और सूअर का मांस खाते हैं| सनातन हिन्दू धर्म से उनका कोई लेना देना नहीं है|
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चीन भारत से लड़ाई इसलिए नहीं कर रहा है क्योंकि भारत से व्यापार में उसे बहुत अधिक लाभ हो रहा है| वह भारत से व्यापार बंद नहीं करना चाहता| भारत भी अपनी आवश्यकता के बहुत सारे सामानों के लिए चीन पर निर्भर है| भारत-चीन के बीच असली लड़ाई तो पानी की लड़ाई है| पीने के पानी की दुनिया में दिन प्रतिदिन कमी होती जा रही है| भारत और चीन में युद्ध होगा तो वह पानी के लिए ही होगा|
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दक्षिणी चीन सागर में उसका अन्य देशों से विवाद भूगर्भीय तेल संपदा के कारण है जो वहाँ प्रचुर मात्रा में है| अन्य कोई कारण नहीं है|
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धन्यवाद ! ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१३ अगस्त २०१८
(मूल लेख दो भागों में एक वर्ष पूर्व पोस्ट किये थे)

हर दृश्य एक ऊर्जाखंड, और विभिन्न आवृतियों पर स्पन्दन मात्र हैं .....

ध्यान साधना में धीरे धीरे हर दृश्य के पीछे सिर्फ .... (१) ऊर्जा (Energy), (२) आवृति (Frequency), और (३) स्पंदन (Vibration) की ही अनुभूतियाँ होने लगती हैं| जो दिखाई दे रहा है वह सत्य नहीं है, जो सत्य है वह दिखाई नहीं दे रहा है|

यह शरीर रूपी वाहन जो भगवान ने लोकयात्रा के लिए दिया है, वह अलग अलग आवृतियों पर हो रहा ऊर्जा का एक स्पंदन मात्र ही है| सारी भौतिक सृष्टि ही ऊर्जा का अलग अलग आवृतियों पर स्पंदन है| इसके पीछे एक चेतना है, और उस चेतना के पीछे एक विचार है| वह विचार “एकोहं बहुस्याम” ही परमात्मा का संकल्प है| हम यह देह नहीं परमात्मा का एक संकल्प, और परमात्मा के साथ एक हैं| ॐ ॐ ॐ !!

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ अगस्त २०१८

परमात्मा से पृथकता का बोध ही मेरी एकमात्र पीड़ा है .....

परमात्मा से पृथकता का बोध ही मेरी एकमात्र पीड़ा है, वही एकमात्र दुःख है| अन्य कोई कारण नहीं है|
परमात्मा से एकत्व का बोध ही मेरा आनंद है, वही एकमात्र सुख है| अन्य कहीं भी कोई सुख या आनंद नहीं मिलता|
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गहरे ध्यान में ही मुझे परमात्मा का बोध होता है, वही मेरा एकमात्र मनोरंजन है| जब कभी विक्षेप हो जाता है और परमात्मा की चेतना नहीं रहती तब जीने की इच्छा ही समाप्त हो जाती है| परमात्मा ही मेरा जीवन है|
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परमात्मा की अखण्डता, अनंतता और पूर्णता पर ध्यान से ही चैतन्य में आत्मस्वरूप की अनुभूति होती है| उस आत्मानुभव की निरंतरता ही मुक्ति है, वही जीवन है और उससे अन्यत्र सब कुछ मृत्यु है|
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आत्मानुभव ही दिव्य विलक्षण आनंद है| एक बार उस आनंद की अनुभूति हो जाने के पश्चात उस से वियोग ही सबसे बड़ी पीड़ा और मृत्यु है| उस आत्मानुभव का स्वभाव हो जाना ही हमारे मनुष्य जीवन की सार्थकता है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ अगस्त २०१८

कूटस्थ चैतन्य और भ्रामरी गुफा .......

कूटस्थ चैतन्य और भ्रामरी गुफा .....
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जिन साधकों को कूटस्थ ज्योति यानि ज्योतिर्मय ब्रह्म के दर्शन होते हैं उन्हें भ्रामरी गुफा (गुहा) में प्रवेश कर उसे पार करना ही पड़ता है, और विक्षेप व आवरण की मायावी शक्तियों को परास्त भी करना पड़ता है| तभी उनकी स्थाई स्थिति कूटस्थ चैतन्य में होती है|
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कूटस्थ में दिखाई देने वाला पञ्चकोणीय श्वेत नक्षत्र पञ्चमुखी महादेव का प्रतीक है| यह एक नीले और स्वर्णिम आवरण से घिरा हुआ दिखाई देता है, जिसके चैतन्य में स्थित होकर साधक की देह शिवदेह हो जाती है और वह जीव से शिव भी हो सकता है| इस श्वेत नक्षत्र की विराटता ही क्षीरसागर है जिसका भेदन और जिसके परे की स्थिति योग मार्ग की उच्चतम साधना और उच्चतम उपलब्धि है| इसका ज्ञान भगवान की परम कृपा से किसी सद्गुरु के माध्यम से ही होता है|
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शिवनेत्र होकर (बिना तनाव के दोनों नेत्रों के गोलकों को नासामूल के समीप लाकर भ्रूमध्य में दृष्टी स्थिर कर, खेचरी मुद्रा में संभव हो तो ठीक है अन्यथा जीभ को ऊपर पीछे की ओर मोड़कर) प्रणव यानि ओंकार की ध्वनि को सुनते हुए उसी में लिपटी हुई सर्वव्यापी ज्योतिर्मय अंतर्रात्मा का चिंतन करने की साधना नित्य नियमित यथासंभव अधिकाधिक करते रहें|
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समय आने पर हरिकृपा से विद्युत् की चमक के समान देदीप्यमान ब्रह्मज्योति ध्यान में प्रकट होगी| उस ब्रह्मज्योति का प्रत्यक्ष साक्षात्कार करने के बाद उसी की चेतना में निरंतर रहने की साधना करें| यह ब्रह्मज्योति अविनाशी है, इसका कभी नाश नहीं होता| लघुत्तम जीव से लेकर ब्रह्मा तक का नाश हो सकता है पर इस ज्योतिर्मय ब्रह्म का कभी नाश नहीं होता| यही कूटस्थ है, और इसकी चेतना ही कूटस्थ चैतन्य है जिसमें स्थिति ही योगमार्ग की उच्चतम उपलब्धी है|
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आज्ञाचक्र ही योगी का ह्रदय है, भौतिक देह वाला ह्रदय नहीं| आरम्भ में ज्योति के दर्शन आज्ञाचक्र से थोड़ा सा ऊपर होता है, वह स्थान कूटस्थ बिंदु है| आज्ञाचक्र का स्थान Medulla Oblongata यानि मेरुशीर्ष के ऊपर खोपड़ी के मध्य में पीछे की ओर है| यही जीवात्मा का निवास है|
फिर गुरुकृपा से धीरे धीरे सहस्त्रार में स्थिति हो जाती है| एक उन्नत साधक की चेतना आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य ही रहती है|
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कुसंग का त्याग और यम-नियमों का पालन अनिवार्य है अन्यथा तुरंत पतन हो जाता है|
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जब ब्रह्मज्योति प्रकट होती है तब आरम्भ में उसके मध्य में ज्योतिर्मय किरणों से घिरा एक काला बिंदु दिखाई देता है, यही भ्रामरी गुफा है| यह अमृतमय मधु से भरी होती है| इसको पार करने के पश्चात् ही एक स्वर्णिम और फिर एक नीली प्रकाशमय सुरंग को भी पार करने पर साधक को श्वेत पञ्चकोणीय नक्षत्र के दर्शन होते हैं|
जब इस ज्योति पर साधक ध्यान करता है तब कई बार वह ज्योति लुप्त हो जाती है, यह 'आवरण' की मायावी शक्ति है जो एक बहुत बड़ी बाधा है|
इस ज्योति पर ध्यान करते समय 'विक्षेप' की मायावी शक्ति ध्यान को छितरा देती है|
इन दोनों मायावी शक्तियों पर विजय पाना साधक के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है|
ब्रह्मचर्य, सात्विक भोजन, सतत साधना और गुरुकृपा से एक आतंरिक शक्ति उत्पन्न होती है जो आवरण और विक्षेप की शक्तियों को कमजोर बना कर साधक को इस भ्रामरी गुफा से पार करा देती है|
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आवरण और विक्षेप का प्रभाव समाप्त होते ही साधक को धर्मतत्व का ज्ञान होता है| यहाँ आकर कर्ताभाव समाप्त हो जाता है और साधक धीरे धीरे परमात्मा की ओर अग्रसर होने लगता है|
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हम सब को परमात्मा की पराभक्ति प्राप्त हो और हम सब उसके प्रेम में निरंतर मग्न रहें इसी शुभ कामना के साथ इस लेख को विराम देता हूँ|
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शिवमस्तु ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० अगस्त २०१५

कांवड़ यात्रा का मेरा अनुभव ....

शिवभक्त कांवड़ियों को धूर्त मीडिया द्वारा "गुंडा" कहने का मैं विरोध करता हूँ| ये शिवभक्त कांवडिये अपनी आस्था से पवित्र जल लेकर बीस बीस किलोमीटर नित्य पैदल चलते हैं अपने इष्ट देव की आराधना के लिए| यह उनकी साधना है| कांवड़ के गिर जाने पर उनकी सम्पूर्ण यात्रा का अभीष्ट ही समाप्त हो जाता है|
कांवड़ियों की भीड़ में जानबुझ कर कार घुसा कर उनकी जान जोखिम में डालना, उनका जल गिरा देना, और उन पर चिल्लाना व बदनाम करना धूर्तता नहीं तो क्या है ?
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कांवड़ यात्रा का मेरा अनुभव ..... मैंने २००१, २००३ व २००५ में कुल तीन बार अपने कुछ मित्रों के आग्रह पर उन के साथ साथ बिहार में सुल्तानगंज से झारखंड में बाबाधाम तक की १०२ किलो मीटर की कांवड़ यात्रा की है| हम लोग नित्य प्रातः दो बजे उठने के बाद स्नान, पूजा आदि कर के कंधे पर कांवड़ लेकर २० किलोमीटर पैदल चलते थे| यह एक बहुत ही सुखद अनुभव था| फिर बाबाधाम पहुँच कर घंटों तक पंक्ति में खड़े होना बड़ा कष्टप्रद होता था, इसलिए मैनें वहाँ जाना बंद कर दिया| पर मेरे कई परिचित व मित्र हैं जो नियम से हर वर्ष बाबाधाम की कावड़ यात्रा में जाते हैं|
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अब तो घर पर ही एक बाणलिंग की स्थापना कर रखी है| अतः पूजा के लिए कहीं बाहर नहीं जाता|
कृपा शंकर
९ अगस्त २०१८

Thursday, 9 August 2018

अभ्यास और वैराग्य की परिणिति है .... "समभाव" ......

अभ्यास और वैराग्य की परिणिति है .... "समभाव" ......
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भगवान कहते हैं .....
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलं| अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते||६:३५||
अर्थात् हे महबाहो निसन्देह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है परन्तु हे कुन्तीपुत्र उसे अभ्यास और वैराग्य के द्वारा वश में किया जा सकता है|
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"अभ्यास- वैराग्याभ्यां तन्निरोधः" (योगसूत्र १:१२). महर्षि पातंजलि ने भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के ये दो साधन वैराग्य और अभ्यास ही बताए हैं|
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मन को समझा बुझा कर युक्ति से नियंत्रित किया जा सकता है बलपूर्वक नहीं | यह युक्ति .... वैराग्य और अभ्यास ही हैं| अभ्यास और वैराग्य से ही मन वश में होता है| समभाव ही स्थितप्रज्ञता है, यही ज्ञानी होने का लक्षण है और यही ज्ञान है| भक्ति की परिणिति भी समभाव ही है| अतः भक्ति और ज्ञान दोनों एक ही हैं, इनमें कोई अंतर नहीं है|
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भगवान कहते हैं .....
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय| सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते||२:४८||
अर्थात् हे धनंजय, योगमें स्थित होकर केवल ईश्वरके लिय कर्म कर| इस आशारूप आसक्ति को भी छोड़ दे कि ईश्वर मुझ पर प्रसन्न हों| फलतृष्णारहित पुरुष द्वारा कर्म किये जानेपर अन्तःकरण की शुद्धिसे उत्पन्न होने वाली ज्ञान प्राप्ति तो सिद्धि है और उससे विपरीत (ज्ञानप्राप्तिका न होना) असिद्धि है ऐसी सिद्धि और असिद्धि में भी सम होकर अर्थात् दोनोंको तुल्य समझकर कर्म कर| यही जो सिद्धि और असिद्धिमें समत्व है इसीको योग कहते हैं|
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हम वैराग्यवान निःस्पृह तपस्वी संत महात्माओं का खूब सत्संग करें|
सभी को सप्रेम सादर नमन|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ अगस्त २०१८

Wednesday, 8 August 2018

"प्राण तत्व" .....

 "प्राण तत्व" .....
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प्राण-तत्व एक ऐसा विषय है जो अनुभूति जन्य है, बुद्धि से इसे न तो समझाया जा सकता है और न ही यह समझ में आ सकता है| प्राचीन भारत में ऋषियों से जब प्राण तत्व पर प्रश्न पूछा जाता तो वे प्रश्नकर्ता को यही कहते कि पहिले तो कम से कम एक वर्ष तक मेरे आश्रम में मेरी बताई हुई विधि से ध्यान साधना करो, फिर विचार करूँगा कि प्रश्न का उत्तर दिया जाए या नहीं|
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योगमार्ग के हर साधक को कुछ महीनों की साधना के पश्चात प्राण तत्व की अनुभूतियाँ अवश्य होती हैं फिर यह साधना का ही अंग बन जाता है| इसे शब्दों का ही रूप देना चाहो तो .....
"जगन्माता ही प्राण हैं, वे ही प्रकृति हैं, और वे ही प्राण-तत्व हैं"|
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परमात्मा के मातृरूप की कृपा से ही यह समस्त सृष्टि जीवंत है| वे जगन्माता ही प्रकृति हैं, और वे ही प्राण-तत्व के रूप में जड़-चेतन सभी में व्याप्त हैं| एक जड़ धातु के अणु में भी प्राण हैं, और एक प्राणी की चेतना में भी| प्राण-तत्व की व्याप्तता और अभिव्यक्ति विभिन्न और पृथक पृथक है| एक मनुष्य जैसे जीवंत प्राणी की चेतना में भी जब तक प्राण विचरण कर रहा है, उसकी साँसे चलती हैं| प्राण के निकलते ही उसकी साँसे भी बंद हो जाती हैं|
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जगन्माता ही प्राण हैं | उन्होंने ही इस सृष्टि को धारण कर रखा है और अपनी विभिन्नताओं में सभी प्राणियों में और सभी अणु-परमाणुओं में स्थित हैं| वे ही ऊर्जा हैं, वे ही विचार हैं, वे ही भक्ति हैं और वे ही हमारी परम गति हैं |
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और भी स्थूल रूप में बात करें तो इस सृष्टि को श्रीराधा जी ने ही धारण कर रखा है, वे ही इस सृष्टि की प्राण हैं| परमप्रेम की उच्चतम और सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति श्रीराधा जी हैं| परमात्मा के प्रेमरूप पर ध्यान करेंगे तो निश्चित रूप से श्री राधा जी की अनुभूतियाँ होती हैं|
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प्रश्नोपनिषद में इस विषय पर ऋषियों में खूब विचार विमर्श हुआ है| तंत्र आगमों में जिस कुण्डलिनी महाशक्ति का वर्णन है वह भी प्राण का ही घनीभूत रूप है| सृष्टि का अस्तित्व भी प्राण तत्व ही है| क्रियायोग साधना भी प्राण साधना ही है| यह प्राण ही अपने पाँच रूपों में सभी जीवों को और जगत को धारण किये हुए है|
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मेरा मेरुदंड ही मेरी पूजा की वेदी है, जहाँ से जगन्माता जागृत होकर अनंताकाश में परमशिव से मिलती हैं|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ अगस्त २०१८

फारस की खाड़ी में तनाव .....

पृथ्वी पर विश्व व्यापार और नौपरिवहन के लिए निम्न सात स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं| इनमें से किसी एक का भी अवरुद्ध होना वर्त्तमान परिस्थितियों में बहुत अधिक घातक हो सकता है .....
(१) होरमुज़ जलडमरूमध्य.
(२) बाब अल-मंडाब जलडमरूमध्य.
(३) मलक्का जलडमरूमध्य.
(४) जिब्राल्टर जलडमरूमध्य.
(५) बोस्फोरस जलडमरूमध्य.
(६) पनामा नहर.
(७) स्वेज़ नहर.
जब इराक और ईरान में युद्ध हो रहा था उस समय फारस की खाड़ी में स्थिति बड़ी भयावह थी| कब किस पर हमला हो जाय, कौन कब मारा जाए इसका कोई भरोसा नहीं था| उसके बाद इराक ने जब कुवैत पर अधिकार किया और उसके प्रत्युत्तर में अमेरिका ने कपने सहयोगी देशों के साथ इराक पर आक्रमण किया तब भी स्थितियाँ बड़ी गंभीर थीं|
आज से ईरान पर अमेरिकी प्रतिबन्ध लागू हो गए हैं| ईरान ने एक ओर तो सऊदी अरब से तनाव बना रखा है, दूसरी ओर इजराइल को नष्ट करने की धमकी दे रखी है| अमेरिका किसी भी परिस्थिति में ऐसा नहीं होने देगा चाहे उसे पूर्ण शक्ति से युद्ध लड़ना पड़े, क्योंकि उसके आर्थिक हित प्रभावित होते हैं|
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फारस की खाड़ी में, विशेषकर होरमुज़ पर नियंत्रण के लिए हुए युद्ध का भारत की अर्थव्यवस्था पर बहुत ही बुरा असर पड़ सकता है|
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फारस की खाड़ी में युद्ध की सी स्थितियों का निर्माण हो रहा है| "होरमुज़ जलडमरूमध्य" विश्व का सर्वाधिक संवेदनशील स्थान है| यह भारत के बहुत समीप है| वहाँ हुए किसी भी युद्ध के परिणाम भारत की अर्थव्यवस्था पर बहुत अधिक घातक होंगे| युद्ध की परिस्थितियों के लिए सबसे अधिक दोषी तो ईरान के नेताओं के उन्मादी वक्तव्य हैं, फिर अमेरिका की अत्यधिक संवेदनशीलता और आर्थिक हित|
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इराक़ और सऊदी अरब के बाद ईरान भारत को तेल बेचने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश है| भारत निम्न चार देशों से कच्चा तेल खरीदता है ... इराक़, सऊदी अरब, ईरान और वेनेज़ुएला| पहले तीन देशों से तेल होर्मुज जलडमरूमध्य से होकर ही आता है| यदि ईरान होरमुज़ जलडमरूमध्य को अवरुद्ध कर देता है तब विश्व में हाहाकार मच जाएगा और फिर विश्वयुद्ध को कोई नहीं रोक सकता|

कृपा शंकर
८ अगस्त २०१८ 

करूणानिधि को श्रद्धांजलि .....

श्रद्धांजलि : --
मरे हुए व्यक्ति की निंदा नहीं करनी चाहिए पर उसके कृत्यों की अल्प समीक्षा करने में कोई बुराई नहीं है| मैं यहाँ तमिलनाडु के तमिल फ़िल्मी पटकथा लेखक से राजनेता बने करूणानिधि की बात कर रहा हूँ| मैं इन को इन के एक ही डिजाइन के स्थायी रूप से पहिने जाने वाले काले चश्मे से प्रभावित होकर सन १९६५ से जानता हूँ| मैंने उस समय युवावस्था में कदम रखा ही था| मेरे तमिल मित्र बताते थे कि वे तमिल फिल्मों के सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखक हैं| उस समय तमिल फिल्मों के नायक MG रामचंद्रन के बाद करूणानिधि तमिलनाडु में सबसे अधिक लोकप्रिय व्यक्ति थे| इन दोनों की सार्वजनिक पहिचान इनके काले चश्मे से ही थी| दुनिया बदल गयी पर मरते दम तक इनके चश्मों की डिजाइन नहीं बदली| इनसे अधिक लोकप्रिय कोई व्यक्ति वहाँ हुआ है तो वे सिर्फ अन्नादुराई थे|
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जब MGR की मृत्यु हुई उस समय मैं तमिलनाडु में कोयम्बतूर गया हुआ था| इनके मरने के दुःख में पूरा तमिलनाडू ही बंद हो गया था| इनके वियोग में पूरे तमिलनाडू में दस-बारह से अधिक लोगों ने आत्मदाह कर के आत्महत्या कर ली थी| अनगिनत लोगों ने सिर मुंडवा लिए और हज़ारो स्त्रियाँ छाती और सिर पीट पीट कर रोईं| मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं स्वप्न देख रहा हूँ या वास्तविकता| पर यह स्वप्न नहीं था|
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सन १९६५ में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री लालबहादुर शास्त्री ने हिंदी को भारत की राजभाषा घोषित कर दिया था जिसके विरोध में करूणानिधि के नेतृत्व में पूरा तमिलनाडु जल उठा था| सारे रेलवे स्टेशनों से हिंदी में लिखे नामों पर रंग पोत दिया गया| पूरे राज्य में हिंदी में लिखे सारे साइन बोर्ड हटा दिए गए| सारी रेलगाड़ियाँ बंद कर दी गईं और केंद्र सरकार के सभी कार्यालयों में आग लगा दी गयी| हिंदी विरोध में पूरा जनजीवन ठप्प कर दिया गया| कोई हिंदी में बात करता तो लोग उसे गाली देने लगते|
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इस घटना से क्षुब्ध होकर शास्त्री जी ने अपना निर्णय बापस ले लिया और यह भी घोषणा कर दी कि जब तक भारत का एक भी राज्य हिंदी को राजभाषा बनाना नहीं चाहेगा तब तक हिंदी राजभाषा नहीं बनेगी| उस समय तमिलनाडू को छोड़कर अन्य सारे राज्य हिंदी के समर्थन में थे|
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कालान्तर में कई घटनाक्रम हुए, कई बार वहाँ की सरकार बर्खास्त भी हुई| DMK पार्टी केंद्र की सत्ता में भी भागीदार बनी| इनके मंत्री भी केंद्र में बने| इनकी बेटी और एक सम्बन्धी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए और जेल की हवा भी खाई| कुल मिलाकर करूणानिधि ने तमिलनाडू पर सबसे अधिक राज किया|
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मैं इन का कभी भी प्रशंसक नहीं रहा और न ही हूँ| ये घोर हिन्दुद्रोही थे| हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों से इन्हें बड़ी चिढ़ थी| इनके परिवार वालों के नाम ही हिन्दू थे पर ये सब घोर नास्तिक थे| इन का रुझान ईसाईयत की ओर था| इन में या इन के परिवार में कोई ईमानदारी थी ऐसा कोई नहीं कह सकता|
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इन को मोक्ष प्राप्त हो ताकि ये संसार में बापस न आयें| श्रद्धांजलि ! सादर नमन !
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पुनश्चः : ये घोर रामद्रोही और ब्राह्मणद्रोही थे| हजारों ब्राह्मण परिवार इन की पार्टी के लोगों के कारण तमिलनाडू छोड़कर अन्यत्र चले गए|

भीतर की ही नहीं, बाहर की कमियों को भी देखें ....

भीतर की ही नहीं, बाहर की कमियों को भी देखें ....
इच्छा शक्ति से अधिक शक्तिशाली तो वातावरण का प्रभाव होता है| अधिकाँश आध्यात्मिक साधक अपनी साधना में विफल अपने घर वालों के नकारात्मक स्पंदनों के कारण होते हैं| हम सुख सम्पति और बड़ाई के लिए परिवार से चिपके रहते हैं, और घर-परिवार के नकारात्मक प्रभाव से भगवान को छोड़ देते हैं| साधना में निःसंगता अति आवश्यक है|
"सुख संपति परिवार बड़ाई | सब परिहरि करिहउँ सेवकाई ||
ये सब रामभगति के बाधक | कहहिं संत तब पद अवराधक ||"
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ अगस्त २०१८

अब और क्या चाहिए ? भगवान ने सब कुछ तो दे दिया है .....

अब और क्या चाहिए ? भगवान ने सब कुछ तो दे दिया है .....
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इस जीवन के सारे विगत घटनाक्रमों का सिंहावलोकन व विश्लेषण करने के उपरांत मैं परमात्मा की कृपा से निम्न निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ ..... मेरी सारी कमियाँ, असफलताएँ, विफलताएँ, विपरीत परिस्थितियाँ, आदि आदि सब मेरे अपने ही कर्मों का फल थीं, इसमें किसी अन्य का कोई दोष नहीं है|
मेरे जन्म-जन्मान्तरों के विचार ही मेरे कर्म थे| इन कर्मफलों से मुक्त होने का एक ही मार्ग है और वह है ..... परमात्मा से परम प्रेम| अन्य कोई मार्ग नहीं है| परम प्रेम से ही हम इस देह की चेतना और कर्ताभाव से मुक्त होते हैं | यही वास्तविक मुक्ति है| अब भगवान तो सर्वत्र हैं, वे मेरी अंतर्दृष्टि से कभी भी ओझल नहीं हो सकते, और न ही मैं उन की दृष्टी से ओझल हो सकता हूँ|
सब कुछ तो मिल गया है फिर अब और क्या चाहिए?
भगवान कहते हैं .....
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति| तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति||६:३०||"
"सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थितः| सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते||६:३१||"
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अब और कुछ भी नहीं चाहिए, कोई बंधन नहीं हैं| जब भगवान साक्षात रूप से स्वयं मेरे ह्रदय में हैं तो उनकी अनुमति के बिना कोई ग्रह-नक्षत्र, कोई देवी-देवता, कोई भूत-पिशाच-राक्षस-असुर मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता| जब भगवान ही नाश करना चाहेंगे तो कोई रोक भी नहीं सकता|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ अगस्त २०१८

निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र न भावा .....

निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र न भावा .....
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परमात्मा का स्मरण, उनकी भक्ति और उनकी उपासना, हम उनके अनुग्रह के बिना नहीं कर सकते| साधना तो एक बहाना यानि साधन मात्र है जिस से हमारा अन्तःकरण शुद्ध होता है, पर मुख्य चीज तो भगवान की कृपा है जो करुणावश वे स्वयं ही करते हैं| हमारे अज्ञान का निराकरण भी उनकी कृपा से ही होता है| भगवान स्वयं ही कहते हैं कि जिनका मन निर्मल होता है वे ही उन्हें पा सकते हैं, उन्हें छल-कपट पसंद नहीं है| साधना से हमारा मन निर्मल होता है| साधना भी बिना प्रेम के नहीं हो सकती अतः सबसे पहिला कार्य तो भगवान के प्रति प्रेम जागृत कर उसे विकसित करना है|
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ब्रह्मा जी ने जब यह सृष्टि रची तब ब्रह्मज्ञान सर्वप्रथम अपने ज्येष्ठ पुत्र अथर्व को दिया| अब इस पर ज़रा विचार कीजिये कि ब्रह्मा जी के ज्येष्ठ पुत्र अथर्व कौन थे| थर्व का अर्थ होता है .... कुटिलता| अथर्व वे सारे ऋषि-मुनि थे जिनके मन में कोई कुटिलता नहीं थी| अथर्व ने वह ब्रह्मज्ञान सत्यवाह को दिया| सत्यवाह का अर्थ होता है जो सत्य का वहन करते हैं, यानि सत्यनिष्ठ होते हैं| तत्पश्चात वह ब्रह्मज्ञान सत्यवाह ऋषियों को मिला| अतः प्रभु का अनुग्रह पाने के लिए स्वयं को ही अथर्व और सत्यवाह बनना पड़ता है| हमारे मन में कोई कुटिलता नहीं हो और हम सत्यनिष्ठ हों| तभी हम प्रभु की कृपा को पाने के पात्र हैं| वह पात्रता साधना से आती है|
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परमात्मा के सर्वश्रेष्ठ साकार रूप आप सब को नमन !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ अगस्त २०१८

अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में देशों के पारस्परिक आर्थिक हित .....

अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में देशों के पारस्परिक आर्थिक हित .....
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अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में कोई स्थायी शत्रु-मित्र नहीं होते| आपसी सम्बन्ध अब सिर्फ आर्थिक हितों से ही तय होते हैं| इसके दो उदाहरण दूंगा| (सिर्फ एक आत्मघाती देश पकिस्तान ही है जो जिहाद के नाम पर भारत से शत्रुता रखे हुए है).
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(१) सऊदी अरब और इजराइल अपने आर्थिक और सामरिक हितों के कारण लगातार मित्र बनते जा रहे हैं, जो कभी मज़हब के नाम पर एक-दूसरे के घोषित शत्रु थे| कुछ समय पूर्व सऊदी अरब और ईरान के मध्य युद्ध की सी स्थिति उत्पन्न हो गयी थी पर युद्ध नहीं हुआ| इसका एक कारण सऊदी अरब और इजराइल के मध्य हुई एक गोपनीय दुरभिसंधि भी है कि यदि ईरान, सऊदी अरब पर आक्रमण करता है तो इजराइल की वायुसेना अपनी पूरी शक्ति से ईरान पर आक्रमण कर देगी और सऊदी अरब, इजराइल को पूरा सहयोग देगा||
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पिछले सप्ताह बुधवार को सऊदी अरब के दो तेलवाहक जहाजों पर, यमन और जिबूती व इरिट्रिया के मध्य अदन की खाड़ी के मुहाने पर २९ किलोमीटर चौड़े "बाब अल-मंडाब" जलडमरूमध्य को पार करते समय, यमन के ईरान समर्थित हाऊथी विद्रोहियों ने हमला कर दिया था, जिससे एक जहाज को कुछ नुकसान हुआ| इस घटना पर सऊदी अरब की प्रतिक्रिया से पहिले ही इजराइल ने तुरंत ईरान को गंभीर युद्ध के परिणामों की चेतावनी दे दी, जिसका तुरंत प्रभाव पड़ा| हमला हुआ था सऊदी अरब के जहाज़ों पर, पर प्रतिक्रिया व्यक्त हुई उसके मित्र देश इजराइल द्वारा|
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इस मार्ग से नित्य ४.८ मिलियन बैरल कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों का परिवहन होता है| इजराइल के प्रधानमंत्री ने इस तरह की किसी भी घटना की पुनरावृति होने, या "बाब अल-मंडाब" जलडमरूमध्य को ईरान द्वारा बंद किये जाने पर पूर्ण युद्ध की चेतावनी दे दी है जिसमें सऊदी अरब और अमेरिका भी इजराइल के साथी होंगे| एक बात और है कि सऊदी अरब के लिए अब फिलिस्तीन का कोई महत्त्व नहीं रह गया है|
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(२) दूसरा उदाहरण चीन का दे रहा हूँ| चीन ने अपने देश में इस्लाम पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया है| वहाँ मुसलमानों के सारे कब्रिस्तानों को खोदकर ताबूतों को नष्ट किया जा रहा है, और लाशों को जलाया जा रहा है| मुसलमान औरतें बुर्का या हिजाब नहीं पहिन सकतीं, पुरुष दाढ़ी नहीं रख सकते, अज़ान और नमाज़ पर पाबंदी लगा दी गयी है, मज़हबी शिक्षा पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है, और पवित्र कुरान शरीफ की सारी व्यक्तिगत प्रतियाँ पुलिस द्वारा जब्त कर ली गयी हैं|
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आश्चर्य की बात यह है कि किसी भी इस्लामी देश ने इसका विरोध करने का साहस नहीं किया है| पकिस्तान जैसे चरम कट्टर इस्लामी देश ने जो चीन को अपना परम मित्र मानता है, ने भी विरोध करने का साहस नहीं किया है| पाकिस्तान चीन के कर्ज के नीचे दबा हुआ है| पाकिस्तान शायद ही कभी चीन का कर्जा उतार पायेगा| मध्य एशिया के कजाकस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान नाम के इस्लामी देश जिनकी सीमाएँ चीन से मिलती है, भी चीन से प्रभावित हैं| वे देश अब सिर्फ नाम के ही इस्लामी रह गए हैं, वहाँ के लोग स्वतः ही धीरे धीरे अपने मज़हब को छोड़ रहे हैं|
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इस लेख को लिखने का उद्देश्य यही बताना है कि अब अंतर्राष्ट्रीय मित्रता और शत्रुता ..... आर्थिक हितों से ही होने लगी है, न कि किन्ही मज़हबी कारणों से|
इस लेख के सभी पाठकों को अपना कीमती समय देने के लिए धन्यवाद!
कृपा शंकर
४ अगस्त २०१८

मेरे आराध्य देव भगवान परमशिव हैं .....

मेरे आराध्य देव भगवान परमशिव हैं .....
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वे सर्वव्यापी, अनंत, पूर्ण, परम कल्याणकारी और परम चैतन्य हैं| मैं धन्य हूँ कि वे मेरे कूटस्थ हृदय में नित्य निरंतर बिराजमान हैं| सृष्टि के सर्जन-विसर्जन की क्रिया उन का नृत्य है, उनके माथे पर चन्द्रमा ... कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म का, उन के गले में सर्प ... कुण्डलिनी महाशक्ति का, उन की दिगंबरता ... सर्वव्यापकता का, उन की देह पर भस्म ... वैराग्य का, उन के हाथ में त्रिशूल ... त्रिगुणात्मक शक्तियों के स्वामी होने का, उन के गले में विष ... स्वयं के अमृतमय होने का, और उन के माथे पर गंगा जी ... समस्त ज्ञान का प्रतीक है जो निरंतर प्रवाहित हो रही है| उन के नयनों से अग्निज्योति की छटाएँ निकल रही हैं, वे मृगचर्मधारी और समस्त ज्ञान के स्त्रोत हैं| अपनी जटाओं पर उन्होंने सारी सृष्टि का भार ले रखा है| वे ही मेरे परात्पर परमेष्ठी सदगुरु हैं| मेरी चित्तवृत्तियाँ उन्हीं को अर्पित हैं|
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हे मेरे कुटिल मन, ऐसे भगवान परमशिव को छोड़कर तूँ क्यों संसार के पीछे भाग रहा है? वहाँ तुझे कुछ भी नहीं मिलेगा| तूँ उन परमशिव का निरंतर ध्यान कर| तुझे अन्य किसी कर्म की क्या आवश्यकता है?
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ अगस्त २०१८

हमारा मूड बार बार क्यों बदलता है? हमें भयंकर क्रोध क्यों आता है ? ....

हमारा मूड बार बार क्यों बदलता है? हमें भयंकर क्रोध क्यों आता है ?
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हमारी तरह तरह की मनःस्थितियों (Moods) और भावावेशों (अचानक भयंकर क्रोध आना) का कारण .... पूर्व जन्मों में हमारा इन्द्रिय सुखों में अत्यधिक लिप्त होना, और इस जन्म में अपनी अपेक्षाओं की पूर्ति न होने व असहायता की भावना से उत्पन्न कुंठा ही है|
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इसका उपचार एक ही है, और वह है अनवरत दीर्घ कालीन नियमित साधना द्वारा भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गीता में सिखाई गयी निःस्पृहता का अभ्यास| अन्य कोई उपाय नहीं है|
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परमात्मा की कृपा हम सब पर बनी रहे| प्रभु की आरोग्यकारी उपस्थिति हम सब की देह, मन और आत्मा में प्रकट हो| सभी का कल्याण हो|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ अगस्त २०१८

अंतहीन भागदौड़ .....

अंतहीन भागदौड़ .....
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सांसारिक दृष्टी से सब कुछ मिल जाने के पश्चात् भी एक खालीपन जीवन में रहता है, कहीं भी सुख, शांति, सुरक्षा और संतुष्टि नहीं मिलती| हमारी सांसारिक उपलब्धियाँ हीं हमारे व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में तनाव और कष्टों का कारण बन जाती हैं| इतनी पारिवारिक कलह, तनाव, लड़ाई-झगड़े, मिथ्या आरोप-प्रत्यारोप, अवसादग्रस्तता और आत्महत्याएँ ..... हमारा सामाजिक ढाँचा ही खोखला हो गया है| सब कुछ होते हुए भी लोगों के जीवन में एक शुन्यता और पीड़ा है|
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यह पीड़ा अपनी अंतरात्मा यानि स्वयं को न जानने की पीड़ा है| जीवन में वास्तविक सुख, शांति, संतुष्टि और सुरक्षा स्वयं के हृदय मंदिर में स्थित परमात्मा में ही है, स्वयं से बाहर कहीं भी नहीं| यह मेरा अपना स्वयं का निजी अनुभव है जिसे मैं यहाँ व्यक्त कर रहा हूँ|
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हम सब परमात्मा की साकार अभिव्यक्तियाँ हैं| सब को सप्रेम सादर नमन !
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

कृपा शंकर
०३ अगस्त २०१८

Thursday, 2 August 2018

किस समाज की सेवा ? ....

हम "समाज सेवा" की बात करते हैं, तो किस समाज की बात कर रहे हैं?
"समाज सेवा" के लिए ही तो हमने अपने पैसों से इतने सारे ..... सांसद, विधायक और पार्षद चुने हैं| "समाज सेवा" करना उनका सर्वोपरि धर्म है|
समाज और राष्ट्र की अवधारणा यदि जन मानस में होती तो इतने दुर्दिन नहीं देखने पड़ते| 
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स्वयं को सब प्रकार के विकारों से मुक्त कर समष्टि के साथ एकत्व ही सबसे बड़ी सेवा है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ अगस्त २०१८ 

इस मामले में दोषी कौन कौन हैं ? .....

किसी असहाय अबोध बालिका के साथ अन्याय और दुराचार होता है, तो दोषी कौन है .... दुराचारी या असहाय बालिका के पूर्व जन्मों के कर्म?
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कल रिपब्लिक टीवी पर एक वीडियो और बहस देखकर यह प्रश्न उठा है| बिहार के एक सरकारी अनाथालय की अबोध, अनाथ, असहाय लगभग बत्तीस बालिकाओं का, जिनकी आयु सात से पंद्रह वर्ष थी, वर्षों तक सरकारी बलात्कार होता रहा| विरोध करने पर उन्हें बुरी तरह मारा जाता, उन्हें नशे के इंजेक्शन दिए जाते, और अधिक विरोध करने पर दस गूंगी-बहरी असहाय बालिकाओं की ह्त्या कर उनकी लाश को गायब कर दिया गया|
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बलात्कार करने वालों में बड़े बड़े राजनेता, बड़े बड़े सरकारी अधिकारी और बड़े बड़े पत्रकार थे| जो बड़ा सरकारी अधिकारी इस काण्ड का मुख्य अभियुक्त है वह मोटा तगड़ा मुस्टंडा राक्षस, पुलिस हिरासत में इतनी मस्ती से मुस्करा रहा था जैसे कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता| लगता है पूरा प्रशासन ही उसके साथ है|
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रिपब्लिक टीवी चीख चीख कर सारा दोष सुशासन बाबू पर डाल रहा था| सुशासन बाबू ने जब देखा कि उनका पूरा सरकारी तंत्र ही दोषी है तो मामला सीबीआई को दे दिया| अब मामले को दबाने का प्रयास हो रहा है क्योंकि पूरा सरकारी तंत्र ही लपेटे में आता है|
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एक बोलने में असमर्थ बालिका इशारों में बता रही थी कि उसके साथ अधिकारियों द्वारा कैसे मारपीट कर नशे के इंजेक्शन दिए जाते और बलात्कार किया जाता था|
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क्या पोस्को एक्ट में इन दोषी राजनेताओं, सरकारी अधिकारियों और पत्रकारों को मृत्युदंड दिया जाएगा या मामले को दबा दिया जाएगा? लगता है हम ने गलत स्थान पर जन्म ले लिया है| प्रश्न यह है कि इसमें दोषी कौन है? वे प्रभावशाली सरकारी अधिकारी या उन अबोध बालिकाओं के पूर्व जन्मों के कर्मफल?

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२ अगस्त २०१८ 

सारा झूठ हमें पढ़ाया जाता है| दो प्रश्न हैं जिनका सही उत्तर बड़ा शर्मनाक होगा .....

सारा झूठ हमें पढ़ाया जाता है| दो प्रश्न हैं जिनका सही उत्तर बड़ा शर्मनाक होगा .....
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(१) सन १९४८ ई.के भारत-पाक युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को हरा दिया था, फिर भी अधिकांश कश्मीर पकिस्तान के कब्जे में क्यों है?
(२) सन १९६२ ई. में हम चीन से पराजित क्यों हुए ? हमने युद्ध से पूर्व तैयारी क्यों नहीं की? चीन के पास उस समय कोई वायुसेना नहीं थी, हमने वायुसेना का प्रयोग क्यों नहीं किया?
हमारी विश्व शांति की बड़ी बड़ी बातें, पंचशील के बड़े बड़े उपदेश और झूठा अहिंसा का दिखावा, सब किस काम आया?
मध्य कालीन भारत का इतिहास देखें तो लगता है हम में यह गलत धारणा भर गई थी कि युद्ध करना सिर्फ क्षत्रियों का काम है| यदि पूरे भारत का हिन्दू समाज एकजुट होकर आतताइयों का सामना करता तो किसी का भी साहस नहीं होता हिन्दुस्थान की ओर आँख उठाकर देखने का|

कृपा शंकर
२ अगस्त २०१८ 
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पुनश्चः :  ----
भारत पर चीन या पाकिस्तान ने नहीं, नेहरू ने आक्रमण किया था, गान्धी की सहायता से। कश्मीर के राजा भारत में बहुत पहले से मिलना चाहते थे पर नेहरू ने अस्वीकार कर दिया कहा कि केवल शेख अब्दुल्ला ही वहां का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं (अवैध भाई)। कश्मीर में जैसे ही भारतीय सेना ने मुकाबला शुरु किया, युद्ध बन्द कर दिया। पाकिस्तान को युद्ध करने तथा ३० लाख हिन्दुओं की हत्या के लिये गान्धी ने ५५ करोड़ रुपये दिलवाये। विश्व में शान्तिदूत बनने के लिये पूरा तिब्बत चीन को सौंप दिया। तिब्बत में भी ३० लाख की हत्या करवाई। यदि वह भारत का भाग नहीं था, तो दलाई लामा और अन्य तिब्बतियों को यहां शरण क्यों दी? तिब्बत जीतने के बाद १९५९ से ही चीन का भारत पर आक्रमण आरम्भ हो गया था और उस वर्ष २० अक्टूबर को ५९ सिपाही चुशूल क्षेत्र में मारे गये थे जिनके शोक में भारत के प्रति जोले में १९६० से पुलिस शहीद दिवस मनाया जा रहा है और भारत का प्रत्येक पुलिस सिपाही यह जानता है। तब ३ वर्ष बाद क्यॊ कहा गया कि चीन ने आक्रमण किया है। चीन का आक्रमण १९५१ में ही आरम्भ हो गया था जब ब्रिटेन के प्रधान मन्त्री के लिखित आदेश पर नेहरू ने तिब्बत सौंप दिया।
साभार : श्री अरुण उपाध्याय 

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https://thewire.in/.../india-has-no-tibetan-card-to-play...

शनि के नाम पर भिखारियों को भीख न दें .....

शनि के नाम पर भिखारियों को भीख न दें .....
कुछ लोग शनि के नाम पर हर शनिवार को भीख में रुपये और तेल माँगते हैं| मेरे विचार से ऐसे लोगों को भीख देना एक गलत काम और अंधविश्वास है| गृहणियाँ भयभीत होकर उन्हें दस-पाँच रुपये और तेल दे देती हैं| शनि के नाम पर भिक्षा देने से शनि की कोई दशा नहीं उतरती, बल्कि ऐसे भिखारियों को प्रोत्साहन ही मिलता है|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर 
१ अगस्त २०१८ 

आत्मलिंग की अनुभूतियाँ .....

आत्मलिंग की अनुभूतियाँ .....
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आत्मलिंग की अनुभूतियाँ सिद्ध गुरु की परम कृपा से ही होती हैं| इन की एक बार अनुभूतियाँ हों तो पीछे मुड़कर न देखें और ईश्वर की साधना में जुट जाएँ| गुरुकृपा निरंतर हमारा मार्गदर्शन और रक्षा करेगी|
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(१) हमारी सूक्ष्म देह के मूलाधार से सहस्त्रार तक एक ओंकारमय शिवलिंग है| मेरुदंड में सुषुम्ना के सारे चक्र उसी में हैं| मानसिक रूप से उसी में रहते हुए परमशिव अर्थात ईश्वर की कल्याणकारी ज्योतिर्मय सर्वव्यापकता का ध्यान करें| ध्यान भ्रूमध्य से आरम्भ करते हुए सहस्त्रार पर ले जाएँ और श्रीगुरुचरणों में आश्रय लेते हुए वहीं से करें| इस शिवलिंग में स्थिति सब तरह के विक्षेपों से हमारी रक्षा करती है|
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(२) दूसरा सूक्ष्मतर शिवलिंग आज्ञाचक्र से सहस्त्रार तक उत्तर-सुषुम्ना में है| यह सर्वसिद्धिदायक है| जो उच्चतम साधक हैं वे अपनी चेतना को सदा निरंतर इसी में रखते हैं| इसमें स्थिति सिद्ध गुरु की आज्ञा और कृपा से ही होती है|
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इस से आगे की बातों की कुछ निषेधात्मक कारणों से सार्वजनिक चर्चा की अनुमति नहीं है|
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जिसके अन्दर सबका विलय होता है उसे लिंग कहते हैं| स्थूल जगत का सूक्ष्म जगत में, सूक्ष्म जगत का कारण जगत में और कारण जगत का सभी आयामों से परे .... तुरीय चेतना .... में विलय हो जाता है| उस तुरीय चेतना का प्रतीक हैं .... शिवलिंग, जो साधक के कूटस्थ में निरंतर जागृत रहता है| उस पर ध्यान से चेतना ऊर्ध्वमुखी होने लगती है|
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भगवान परमशिव दुःखतस्कर हैं| तस्कर का अर्थ होता है .... जो दूसरों की वस्तु का हरण कर लेता है| भगवन परमशिव अपने भक्तों के सारे दुःख और कष्ट हर लेते हैं| वे जीवात्मा को संसारजाल, कर्मजाल और मायाजाल से मुक्त कराते हैं| जीवों के स्थूल, सूक्ष्म और कारण देह के तीन पुरों को ध्वंश कर महाचैतन्य में प्रतिष्ठित कराते है अतः वे त्रिपुरारी हैं| वे मेरे परम आराध्य देव है|
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ॐ शिव ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ जुलाई २०१८

आध्यात्मिक रूप से अपनी वाणी को तेजस्वी बनाने के लिए तीन नियम .....

आध्यात्मिक रूप से अपनी वाणी को तेजस्वी बनाने के लिए तीन नियम .....
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(१) समाज में जहाँ कहीं भी जाएँ, नाप-तोल कर कम से कम और सिर्फ आवश्यक, त्रुटिहीन व स्पष्ट शब्दों का ही प्रयोग पूरे आत्मविश्वास से करें| गपशप न करें, गपशप हमारे शब्दों को प्रभावहीन बनाती है|
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(२) आत्मनिंदा, आत्मप्रशंसा और परनिंदा से बचें| किसी की अनावश्यक प्रशंसा भी न करें| दूसरों द्वारा की गयी प्रशंसा और निंदा की ओर ध्यान न दें| किसी की भी बातों से व्यक्तिगत रूप से आहत न हों, और आल्हादित भी न हों|
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(३) परमात्मा की चेतना से बात करें| कुछ भी बोलते समय हमारी आतंरिक चेतना कूटस्थ में हो| अपनी बात को पूरे आत्मविश्वास से प्रस्तुत करें| बोलते समय यह भाव रखें कि स्वयं भगवान हमारी वाणी से बोल रहे हैं|
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उपरोक्त तीनों नियमों का ध्यान रहेगा तो लोग हमारी बात सुनेंगे, उस को याद रखेंगे और उस से प्रभावित भी होंगे|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ जुलाई २०१८

भोजन ..... एक प्रत्यक्ष वास्तविक यज्ञ और ब्रह्मकर्म है ....

भोजन ..... एक प्रत्यक्ष वास्तविक यज्ञ और ब्रह्मकर्म है ......
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हम जो भोजन करते हैं, वास्तव में वह भोजन हम स्वयं नहीं करते, बल्कि भगवान स्वयं ही प्रत्यक्ष रूप से हमारे माध्यम से करते हैं| 
भोजन इसी भाव से करना चाहिए कि भोजन का हर ग्रास हवि रूप ब्रह्म है जो वैश्वानर रूपी ब्रह्माग्नि को अर्पित है| भोजन कराने वाले भी ब्रह्म हैं और करने वाले भी ब्रह्म ही हैं| सब प्राणियों की देह में वैश्वानर अग्नि के रूप में, प्राण और अपान के साथ मिलकर चार विधियों से अन्न (भक्ष्य, भोज्य, लेह्य, चोष्य) ग्रहण कर वे ही पचाते हैं|
अतः भोजन स्वयं की क्षुधा की शांति और इन्द्रियों की तृप्ति के लिए नहीं, बल्कि एक ब्रह्मयज्ञ रूपी ब्रह्मकर्म के लिए है| यज्ञ में एक यजमान की तरह हम साक्षिमात्र हैं| कर्ता और भोक्ता तो भगवान स्वयं ही हैं| गीता में भगवान ने इसे बहुत अच्छी तरह समझाया है|
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ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् | ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना ||४:२४||
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अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः| प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम् ||१५:१४||
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>>> गहरे ध्यान में मेरुदंड में एक शीत और ऊष्ण प्रवाह की अनुभूति सभी साधकों को होती है जो ऊपर नीचे बहते रहते हैं, वे ही सोम और अग्नि है, वे ही प्राण और अपान है जिनके समायोजन की प्रक्रिया से प्रकट यज्ञाग्नि वैश्वानर है| भोजन हम नहीं बल्कि वैश्वानर के रूप में भगवान स्वयं करते हैं जिससे समस्त सृष्टि का पालन-पोषण होता है| जो भगवान को प्रिय है वही उन्हें खिलाना चाहिए| कर्ताभाव शनेः शनेः तिरोहित हो जाना चाहिए|
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जैसा मैनें अनुभूत किया और अपनी सीमित व अल्प बुद्धि से समझा वैसा ही मेरे माध्यम से यह लिखा गया| यदि कोई कमी या भूल है तो वह मेरी सीमित और अल्प समझ की ही है| कोई आवश्यक नहीं है कि सभी को ऐसा ही समझ में आये| किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए भगवान से क्षमा याचना करता हूँ|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२३ जुलाई २०१७
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पुनश्चः :--- भगवान कहते हैं .....
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति| तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः ||९:२६||
अर्थात् जो भक्त मुझे पत्र, पुष्प, फल, और जल आदि कुछ भी वस्तु भक्तिपूर्वक देता है, उस प्रयतात्मा ... शुद्धबुद्धि भक्तके द्वारा भक्तिपूर्वक अर्पण किये हुए वे पत्र पुष्पादि मैं ( स्वयं ) खाता हूँ अर्थात् ग्रहण करता हूँ||

अनन्य भक्ति सबसे बड़ी साधना है. हमें अनन्य भक्ति प्राप्त हो ...

अनन्य भक्ति सबसे बड़ी साधना है. हमें अनन्य भक्ति प्राप्त हो ...
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भगवान कहते हैं .....
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते | तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ||९:२२||
अर्थात् जो अनन्य भाव से युक्त हो कर परम देव मुझ नारायण को आत्म रूप से जानते हुए मेरा निरन्तर चिन्तन करते हुए मेरी श्रेष्ठ निष्काम उपासना करते हैं, निरन्तर मुझमें ही स्थित उन का योगक्षेम मैं वहन करता हूँ|
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यहाँ अप्राप्त वस्तुकी प्राप्ति का नाम "योग" है, और प्राप्त वस्तु की रक्षा का नाम "क्षेम" है| ये दोनों काम भगवान ही करते हैं| योगक्षेम की व्याकुलता सभी में होती है| हमें वह व्याकुलता भगवान को ही सौंप देनी चाहिए| हमारे अवलंबन भगवान ही हों|
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अनन्य भक्ति और अव्यभिचारिणी भक्ति एक ही हैं| भगवान कहते हैं ....
मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी | विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि ||१३:११||
अर्थात मुझ ईश्वरमें अनन्य योग (एकत्व रूप) अव्यभिचारिणी भक्ति है| (भगवान् वासुदेव से परे अन्य कोई भी नहीं है, अतः वे ही हमारी परमगति हैं. इस प्रकार की जो निश्चित अविचल बुद्धि है वही अनन्य योग है| उससे युक्त होकर भजन करना ही कभी विचलित न होने वाली अव्यभिचारिणी भक्ति है).
विविक्तदेशसेवित्व अर्थात् एकान्त पवित्र देश सेवन का स्वभाव, और विषयासक्त मनुष्यों के समुदाय में प्रेम का न होना, इसमें सहायक है|
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अनन्य योग द्वारा अव्यभिचारिणी भक्ति का होना, एकान्त स्थान में रहने का स्वभाव होना और विषयासक्त जन समुदाय में प्रीति न होना…. इस प्रकार की जिसकी भक्ति होती है, ऐसा साधक आध्यात्म ज्ञान में नित्य रमण करता है|
परमात्मा को सर्वत्र देखना ज्ञान है, और इस से विपरीत जो है, वह अज्ञान है|
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भगवान आचार्य शंकर के अनुसार .....
गलिते देहाध्यासे विज्ञाते परमात्मनि| यत्र यत्र मनो याति तत्र तत्र समाधयः||
अर्थात् जब देहाध्यास गलित हो जाता है, परमात्मा का ज्ञान हो जाता है| तब जहाँ जहाँ मन जाता है, वहाँ वहाँ समाधि का अनुभव होता है|
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जीवन का हर कार्य, हर क्षण, परमात्मा की प्रसन्नता के लिए हो|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ जुलाई २०१८

तमसो मा ज्योतिर्गमय .....

तमसो मा ज्योतिर्गमय .....
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सत्य ही नारायण हैं, वे ही अमृत हैं, और वे ही हमें ज्योतिर्मय बना सकते हैं| हमारी हर साधना का लक्ष्य है ...... असत्य से सत्य की ओर गमन| बिना किसी पूर्वाग्रह के जहाँ भी हमें लगे कि असत्य और अन्धकार हमारे साथ है, तो विष की तरह उनका साथ छोड़ देना चाहिए| मेरी यह बात अधिकाँश लोगों को बुरी लगती है, पर यह उनकी समस्या है, मेरी नहीं| हर समाज में अधिकांश लोगों का यही मानना है कि असत्य यानी झूठ-कपट के बिना संसार का काम नहीं चल सकता| धर्म और आध्यात्म की बड़ी बड़ी बातें करने वाले सज्जन लोग भी दो पैसे के लाभ के लिए सत्य का साथ छोड़ देते हैं| उनको नहीं पता कि असत्य और अन्धकार ही मृत्यु है| असत्य से प्राप्त होने वाला लाभ यहीं रह जाएगा, पर जो सदा सत्य हैं वे भगवान सत्य नारायण ही हमारे साथ शाश्वत रूप से रहेंगे| 
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वेदों के ऋषि प्रार्थना करते हैं ..... "ॐ असतोमासद्गमय | तमसोमाज्योतिर्गमय | मृत्योर्मामृतंगमय | ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः||" (बृहदारण्यकोपनिषद् १:३:२८)
इसी उपनिषद् के आरम्भ और अंत में पूर्णता के लिए भी प्रार्थना है .....
"पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते | पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||"
सत्य ही पूर्णता है, यही परमात्मा का सर्वोपरी गुण है|
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सत्य की खोज ही अन्धकार से प्रकाश की ओर जाने की यात्रा है| इसका आरम्भ कहाँ से हो? इस यात्रा का आरम्भ वही कर सकता है जिसके हृदय में भगवान के प्रति भक्ति और उन्हें पाने की अभीप्सा हो| अन्य लोगों के लिए यह मार्ग नहीं है| अन्य लोग धीरे धीरे अनेक कष्ट पाकर कुछ जन्मों के बाद इस मार्ग पर आ ही जायेंगे| 
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जहाँ भक्ति और अभीप्सा होगी, वहीं मार्ग भी प्रकट होगा| अतः मैं साधना मार्गों की चर्चा करना यहाँ अनावश्यक समझता हूँ| जो साधक हैं, उन्हें तो मार्ग मिला ही हुआ है और जो निष्ठावान मुमुक्षु हैं उन्हें मार्ग भगवान स्वयं सदगुरु के रूप में दिखाते हैं| जो भगवान को ठगना चाहते हैं उन्हें ठगगुरु मिल जाते हैं| यही चलता आया है और यही चलता रहेगा| 
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निज स्वभाववश कुछ चर्चा यहाँ करने को बाध्य हूँ| जहाँ तक मैं समझता हूँ, सनातन हिन्दू धर्म के सभी सम्प्रदायों में "अजपा-जप" साधना की परंपरा है| यह बहुत ही प्रभावशाली साधना है जिसे प्रत्येक साधक को आरम्भ में सीखना और उसका नियमित अभ्यास करना चाहिए| किसी भी साधना की उपयोगिता उसके अभ्यास में है, न कि सिर्फ बौद्धिक संतुष्टि में| इसका अभ्यास करते करते हमारी सूक्ष्म देह में सुषुम्ना जागृत हो जाती है, और धीरे धीरे कुण्डलिनी महाशक्ति भी जागृत होने लगती है| फिर हमें भगवान का ध्यान करना चाहिए, जिसकी विधि भगवान स्वयं हमें गुरुरूप में बताते हैं| यह अजपाजप की विधि वैदिक् है जिसका वर्णन कठोपनिषद में है|
"हँसः शुचिषद्वसुरान्तरिक्षसद्-
होता वेदिषदतिथिर्दुरोणसत् ।
नृषद्वरसदृतसद्व्योमसद्
अब्जा गोजा ऋतजा अद्रिजा ऋतं बृहत् ||कठोपनिषद २:२:२||
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असत्य से सत्य, अन्धकार से प्रकाश और मृत्यु से अमरता की ओर की यात्रा सनातन धर्म है| यही सृष्टि की प्रक्रिया है| तंत्र की भाषा में हमारी चेतना का निम्नतम बिंदु मूलाधार चक्र है, और उच्चतम बिंदु सहस्त्रार है| हमें अपनी चेतना को मूलाधार चक्र से बार बार उठाते हुए सहस्त्रार तक ले जाना होगा| यह क्रियायोग है| यह उच्चतम साधना इस देह रूपी साधन से हो सकती है| इसके बाद की देहातीत साधनाएँ सिद्धों की हैं|
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तंत्र की भाषा में कहते हैं कि मेरुदंड के मध्य में एक सुषुम्ना नाड़ी है जिसके नीचे ही नीचे मूलाधार चक्र है जहाँ कुण्डलिनी महाशक्ति सो रही है| सिद्ध गुरु की आज्ञा से, गुरुप्रदत्त विधि से इसे जागृत कर क्रमशः छओं चक्रों को भेदते हुए इसे सहस्त्रार तक ले जाते हैं, जहाँ परमशिव से मिलकर अमृतपान होता है| उससे तृप्त होकर कुण्डलिनी बापस लौट आती है| इस प्रक्रिया को बार बार दोहराना पड़ता है| 
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तंत्रराज तंत्र कहता है .....
"पीत्वा पीत्वा पुनः पीत्वा यावत् पतति भूतले | उत्थाय च पुनः पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ||"
यह तंत्र की भाषा है, कोई शराब पीना नहीं है| यह तो कुण्डलिनी महाशक्ति और परमात्मा परमशिव का मिलन और अमृतपान है|
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भगवान आचार्य शंकर ने भी "सौंदर्य लहरी" ग्रन्थ में लिखा है .....
"महीं मूलाधारे कमपि मणिपूरे हुतवहं, 
स्थितं स्वाधिष्ठाने हृदिमरुतमाकाशमुपरि |
मनोऽपि भ्रूमध्ये सकलमपि भित्वा कुलपथं,
सहस्रारे पद्मे सह रहसि पत्या विहरसि ||९||
भगवान आचार्य शंकर का ग्रन्थ "सौंदर्य लहरी" तंत्र के सर्वश्रेष्ठ ग्रंथों में से है| 
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इस विद्या के बारे में स्कन्दपुराण में भी लिखा है| यह पूरी विद्या कठोपनिषद में है जो एक श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ सिद्ध आचार्य के चरणों में बैठकर ही सीखी जा सकती है|
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परमेश्वर की महिमा कोई नहीं बता सकता क्योंकि सब कुछ उसी से महिमान्वित है| (कठ) श्रुति भगवती कहती हैं .....
"न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं, नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः |
तमेव भान्तमनुभाति सर्वं, तस्य भासा सर्वमिदं विभाति ||"
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हम भगवान को सिर्फ अपना प्रेम ही दे सकते हैं, अन्य कुछ भी नहीं| बाकी सब कुछ तो उसी का है| अपने हृदय का सम्पूर्ण प्रेम परमात्मा को दें|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर 
२२ जुलाई २०१८