Wednesday 15 August 2018

भगवान की लीला को समझना असंभव है .....

भगवान की लीला को समझना असम्भव है| हर युग के हर कालखंड में, हर राष्ट्र, हर समाज, और हर मनुष्य के सम्मुख चुनौतियाँ रही हैं| क्या उचित है और क्या अनुचित है, इसे समझना बड़ा कठिन है| उलझनें, चुनौतियाँ और समस्याएँ मेरे सम्मुख भी हैं| वैचारिक व बौद्धिक स्तर पर मैं किसी भी निर्णय पर पहुँचने में असमर्थ हूँ|
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मुझे सुख, शांति, सुरक्षा और संतुष्टि ..... विशुद्ध आध्यात्मिक और वेदान्तिक चिंतन में ही मिलती है| यह कोई पलायन नहीं बल्कि समस्या का सही समाधान है जिसे बौद्धिक स्तर पर नहीं समझा जा सकता|
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मनुष्य को जब अपने "स्वधर्म" और "आत्म-तत्व" की अनुभूतियाँ होने लगती है तब उसे अनात्म विषयों से स्वयं को शनै शनै पृथक कर लेना चाहिये| गुरुकृपा से अब आत्म-तत्व की अनुभूतियाँ और एक प्रबल आकर्षण क्षण-प्रतिक्षण अपनी ओर आकर्षित कर रहा है|
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इस मायावी विश्व में अब अधिक दिन मेरा निभाव होना असंभव होता जा रहा है| अब धारा के विपरीत तैरना आरम्भ हो गया है| इस संसार से अब मोह समाप्त होने लगा है| इस जीवन के साथ वो ही होगा जैसी हरिइच्छा होगी| मेरी कोई इच्छा/कामना/अपेक्षा नहीं है|
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ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ अगस्त २०१८

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