Wednesday, 15 August 2018

परमात्मा से पृथकता का बोध ही मेरी एकमात्र पीड़ा है .....

परमात्मा से पृथकता का बोध ही मेरी एकमात्र पीड़ा है, वही एकमात्र दुःख है| अन्य कोई कारण नहीं है|
परमात्मा से एकत्व का बोध ही मेरा आनंद है, वही एकमात्र सुख है| अन्य कहीं भी कोई सुख या आनंद नहीं मिलता|
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गहरे ध्यान में ही मुझे परमात्मा का बोध होता है, वही मेरा एकमात्र मनोरंजन है| जब कभी विक्षेप हो जाता है और परमात्मा की चेतना नहीं रहती तब जीने की इच्छा ही समाप्त हो जाती है| परमात्मा ही मेरा जीवन है|
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परमात्मा की अखण्डता, अनंतता और पूर्णता पर ध्यान से ही चैतन्य में आत्मस्वरूप की अनुभूति होती है| उस आत्मानुभव की निरंतरता ही मुक्ति है, वही जीवन है और उससे अन्यत्र सब कुछ मृत्यु है|
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आत्मानुभव ही दिव्य विलक्षण आनंद है| एक बार उस आनंद की अनुभूति हो जाने के पश्चात उस से वियोग ही सबसे बड़ी पीड़ा और मृत्यु है| उस आत्मानुभव का स्वभाव हो जाना ही हमारे मनुष्य जीवन की सार्थकता है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ अगस्त २०१८

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