Wednesday 15 August 2018

कांवड़ यात्रा का मेरा अनुभव ....

शिवभक्त कांवड़ियों को धूर्त मीडिया द्वारा "गुंडा" कहने का मैं विरोध करता हूँ| ये शिवभक्त कांवडिये अपनी आस्था से पवित्र जल लेकर बीस बीस किलोमीटर नित्य पैदल चलते हैं अपने इष्ट देव की आराधना के लिए| यह उनकी साधना है| कांवड़ के गिर जाने पर उनकी सम्पूर्ण यात्रा का अभीष्ट ही समाप्त हो जाता है|
कांवड़ियों की भीड़ में जानबुझ कर कार घुसा कर उनकी जान जोखिम में डालना, उनका जल गिरा देना, और उन पर चिल्लाना व बदनाम करना धूर्तता नहीं तो क्या है ?
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कांवड़ यात्रा का मेरा अनुभव ..... मैंने २००१, २००३ व २००५ में कुल तीन बार अपने कुछ मित्रों के आग्रह पर उन के साथ साथ बिहार में सुल्तानगंज से झारखंड में बाबाधाम तक की १०२ किलो मीटर की कांवड़ यात्रा की है| हम लोग नित्य प्रातः दो बजे उठने के बाद स्नान, पूजा आदि कर के कंधे पर कांवड़ लेकर २० किलोमीटर पैदल चलते थे| यह एक बहुत ही सुखद अनुभव था| फिर बाबाधाम पहुँच कर घंटों तक पंक्ति में खड़े होना बड़ा कष्टप्रद होता था, इसलिए मैनें वहाँ जाना बंद कर दिया| पर मेरे कई परिचित व मित्र हैं जो नियम से हर वर्ष बाबाधाम की कावड़ यात्रा में जाते हैं|
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अब तो घर पर ही एक बाणलिंग की स्थापना कर रखी है| अतः पूजा के लिए कहीं बाहर नहीं जाता|
कृपा शंकर
९ अगस्त २०१८

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