Sunday, 14 January 2018

प्रेम होता है, किया नहीं जाता ......

प्रेम होता है, किया नहीं जाता ......
.
मैं सदा परमात्मा से परम प्रेम की बात करता रहा हूँ, पर अब मुझे लगता है कि मैंने अपनी भाषा में या शब्द-रचना में अपनी नासमझी से सदा एक बहुत बड़ी भूल की है| उसी भूल को सुधारने का यह प्रयास है| यदि फिर भी भूल रह जाती है तो क्षमा चाहूँगा|
.
परम प्रेम कोई क्रिया नहीं है, यह तो चित्त की एक स्थिति है| प्रेम होता है, किया नहीं जाता| प्रेम हमारा अस्तित्व है| हम किसी को प्रेम कर नहीं सकते, पर स्वयं प्रेममय हो कर उस प्रेम को अनुभूत कर सकते हैं| भावों से वह व्यक्त हो सकता है| स्वयं प्रेममय होना ही प्रेम की अंतिम परिणिति है| यही परमात्मा के प्रति अहैतुकी प्रेम है जहाँ कोई माँग नहीं है| जहाँ माँग होती है, वह व्यापार होता है| प्रेम एक समर्पण है, माँग नहीं|
.
जब हम कहते हैं कि मैं किसी को प्रेम करता हूँ तो यहाँ अहंकार आ जाता है| मैं कौन हूँ करने वाला? मैं कौन हूँ कर्ता? कर्ता तो सिर्फ और सिर्फ परमात्मा ही है| "मैं" शब्द में अहंकार और अपेक्षा आ जाती है|
.
हम स्वयं प्रेममय यानि साक्षात "प्रेम" बन कर परमात्मा के सचेतन अंश बन जाते हैं क्योंकि भगवान स्वयं अनिर्वचनीय परम प्रेम हैं| फिर हमारे प्रेम में सम्पूर्ण समष्टि समाहित हो जाती है| जैसे भगवान भुवन-भास्कर अपना प्रकाश बिना किसी शर्त के सब को देते हैं वैसे ही हमारा प्रेम पूरी समष्टि को प्राप्त होता है| फिर पूरी सृष्टि ही हमें प्रेम करने लगती है क्योंकि प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रया होती है| हम स्वयं ही परमात्मा के प्रेम हैं जो अपनी सर्वव्यापकता में सर्वत्र समस्त सृष्टि में सब रूपों में व्यक्त हो रहे हैं| परमात्मा का प्रेम जब अनुभूत होता है तब उसका एक एक कण परम आनंदमय होता है|
.
परम प्रेम जहाँ है वहाँ कोई अज्ञान, असत्य और अन्धकार टिक नहीं सकता| परम प्रेम .... परमात्मा की पूर्णता की अभिव्यक्ति है|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ जनवरी २०१८

No comments:

Post a Comment