श्रीकृष्ण उवाच-
पश्यतैतान् महाभागान् परार्थैकान्तजीवितान्|
वातवर्षातपहिमान् सहन्तो वारन्ति न:||
अहो एषां वरं जन्म सर्वप्राण्युपजीवनम्।
सुजनस्यैव येषां वै विमुखा यान्ति नार्थिनः।।
पत्रपुष्पफलच्छायामूलवल्कलदारुभिः।
गन्धनिर्यासभस्मास्थिस्तोक्मैः कामान्वितन्वते।।
-श्रीमद्भागवत महापुराण १०/२२/३२-३४
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मेरे प्यारे मित्रों! देखो, यह वृक्ष कितने भाग्यवान हैं! इनका सारा जीवन केवल दूसरों की भलाई करने के लिए ही है, ये स्वयं तो हवा के झोंके, वर्षा, धूप और पाला----- सब कुछ सहते हैं परंतु हम लोगों की उनसे रक्षा करते हैं|
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मैं कहता हूँ इन वृक्षों का जीवन सर्वश्रेष्ठ है।इनके द्वारा सब प्राणियों को सहारा मिलता है, उनका जीवन निर्वाह होता है।जैसे किसी सज्जन मनुष्य के घर से कोई याचक खाली हाथ नहीं लौटता वैसे ही इन वृक्षों से भी सभीको कुछ न कुछ मिल ही जाता है। ये अपने पत्ते, फूल, फल, छाया, जड, छाल, लकडी, गन्ध, गोंद, राख, कोयला, अङ्कुर और कोपलों से भी लोगों की आवश्यकता पूर्ण करते हैं। मैं तो इनको मनुष्य से भी बडा मानता हूँ।
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