आलस्य, अकर्मण्यता, चिंता और भय की स्थिति वास्तव में नर्क है| अपने "अच्युत" स्वरूप को भूलकर "च्युत" हो जाना ही प्रमाद है, और इसी का नाम "मृत्यु" है| जहाँ अपने अच्युत भाव से च्युत हुए उसी क्षण हम मर चुके हैं| यह परम सत्य है| 'प्रमादो वै मृत्युमहं ब्रवीमि' .... यह उपदेश ब्रह्मविद्या के प्रथम आचार्य भगवान सनत्कुमार का है जिसे उन्होनें अपने प्रिय शिष्य देवर्षि नारद को 'भूमा विद्या' के नाम से दिया| आध्यात्मिक मार्ग पर प्रमाद ही हमारा सब से बड़ा शत्रु है| उसी के कारण हम काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर्य नामक नर्क के छः द्वारों में से किसी एक में अनायास ही प्रवेश कर जाते हैं| आत्मज्ञान ही ब्रह्मज्ञान है, यही भूमा-विद्या है| जो इस दिशा में जो अविचल निरंतर अग्रसर है, वही महावीर है और सभी वीरों में श्रेष्ठ है|
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