Saturday, 28 May 2022

सारी इच्छायें भगवान को समर्पित कर दें, और अपने आत्म-स्वरूप में रहें ---

 सारी इच्छायें भगवान को समर्पित कर दें, और अपने आत्म-स्वरूप में रहें ---

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भगवान एक प्रवाह हैं, जो निरंतर हमारे माध्यम से प्रवाहित हो रहे हैं। सबसे बड़ी और सबसे महान सेवा जो हम इस जन्म में कर सकते हैं वह है "ईश्वर की प्राप्ति"। ईश्वर को समर्पण किया जाता है, न की उनसे कुछ मांग। स्वयं के अस्तित्व का ईश्वर में पूर्ण समर्पण तभी होता है जब हम कामनाओं से पूर्णतः मुक्त होते हैं। हमारे अन्तःकरण में जितनी इच्छाएँ उत्पन्न होती हैं, उतने ही हमारे दुःख बढ़ जाते हैं। जैसे-जैसे इच्छाएँ शान्त होने लगती हैं, वैसे-वैसे दुःख की मात्रा भी कम होने लगती हैं।
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परमात्मा को पाने की अभीप्सा आत्मा द्वारा होती है। अभीप्सा हमें मुक्त करती है। कामना का जन्म मन में होता है, यह हमें बंधन में डालती है। यह भाव हर समय बना रहना चाहिए कि परमात्मा निरंतर मेरे साथ एक हैं। वे एक पल के लिए भी मेरे से पृथक नहीं हो सकते। भगवान हैं, यहीं पर हैं, सर्वत्र हैं, इसी समय हैं, सर्वदा हैं, वे ही सब कुछ हैं, और सब कुछ वे ही हैं। वे ही मेरे हृदय में धडक रहे हैं, वे ही इन नासिकाओं से सांसें ले रहे हैं, इन पैरों से वे ही चल रहे हैं, इन हाथों से वे ही हर कार्य कर रहे हैं, इन आँखों से वे ही देख रहे हैं, इस मन और बुद्धि से वे ही सोच रहे हैं, मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व वे ही हैं। सारा ब्रह्मांड, सारी सृष्टि वे ही हैं। वे परम विराट और अनंत हैं। मैं तो निमित्त मात्र, उन का एक उपकरण, और उनके साथ एक हूँं। भगवान स्वयं ही मुझे माध्यम बना कर सारा कार्य कर रहे हैं| कर्ता मैं नहीं, स्वयं भगवान हैं। सारी महिमा भगवान की है। भगवान ने जहाँ भी रखा है और जो भी दायित्व दिया है उसे मैं नहीं, स्वयं भगवान ही निभा रहे हैं। वे ही जगन्माता हैं, वे ही परमपुरुष हैं। मैं उन के साथ एक हूँ। कहीं कोई भेद नहीं है।
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“शिवो भूत्वा शिवं यजेत्”– अर्थात् शिव होकर ही शिव की आराधना कीजिये।
आत्मा नित्य मुक्त है, सारे बंधन हमने ही अपने ऊपर अपने अंतःकरण द्वारा थोप रखे हैं। चित्त की वृत्तियाँ क्या हैं, यह मैंने कल लिखा था। चित्त की वृत्तियों का स्पंदन ही संसार का स्वरूप धारण करता है। चित्त की वृत्तियों का निरोध (नियंत्रण) प्राण-तत्व द्वारा होता है। चित्त के स्पन्दन से ही सांसारिक पदार्थों की अनुभूतियाँ होती हैं। चित्त का स्पंदन प्राण-तत्व के आधीन है। घनीभूत प्राण-तत्व (कुंडलिनी महाशक्ति) को साधते हुए आकाश-तत्व (सूक्ष्म जगत की अनंतता और विस्तार) से भी परे परमशिव का ध्यान करते हैं। कुंडलिनी महाशक्ति का परमशिव से मिलन ही "योग" है।
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जहाँ भी भगवान ने हमें रखा है, वहीं उनको आना ही पड़ेगा। अतः सदा आनंदमय रहें। परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ आप सब को मैं नमन करता हूँ॥
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
११ मई २०२२

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