Saturday 28 May 2022

हमारे हर विचार, हर सोच, और हर भाव का स्त्रोत केवल परमात्मा है ---

 >>> अपने हर विचार, हर सोच, और हर भाव के पीछे यह अनुभूत करो कि इन सब का स्त्रोत केवल परमात्मा है। न तो मैं कुछ सोच रहा हूँ, और न कुछ चिंतन कर रहा हूँ। परमात्मा ही एकमात्र कर्ता हैं, उन्हीं का एकमात्र अस्तित्व है। वे ही एकमात्र चिंतक हैं।

अपने साक्षी या निमित्त मात्र होने के भाव को भी तिरोहित कर दो, निमित्त भी वे स्वयं ही हैं। "मेरा कोई अस्तित्व नहीं है। स्वयं परमात्मा ही यह "मैं" बन गए हैं। <<<
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यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात जो मैंने पहले कभी भी नहीं कही थी, आज अपनी अंतर्रात्मा से कह रहा हूँ। इसकी सिद्धि में समय लग सकता है, लेकिन इसमें यदि सिद्धि मिल गई तो आप इस पृथ्वी पर चलते-फिरते देवता बन जाओगे। जिस पर आपकी दृष्टि पड़ेगी, और जो आपके दर्शन करेगा, वे निहाल हो जाएँगे। जहाँ भी आपके चरण पड़ेंगे, वह भूमि पवित्र हो जाएगी। देवता भी आपको देखकर आनंदित होंगे, और नृत्य करेंगे। आप की सात पीढ़ियों का उद्धार हो जाएगा। जिस कुल/ परिवार में आपने जन्म लिया है, वह आपको पाकर धन्य हो जाएगा।
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इसके लिए परमात्मा का ध्यान/उपासना/सत्संग करना होगा। सात्विक भोजन करना होगा। कुसंग का त्याग करना होगा। यह भूल जाइए कि आप एक जीव है। आप जीव नहीं शिव हो। उस परमशिवभाव को व्यक्त करना ही इस जीवन का उद्देश्य है।
ॐ तत्सत् !! जय हिन्दू राष्ट्र !!
कृपा शंकर
११ मई २०२२

1 comment:

  1. "यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति| तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति||६:३०||"
    अर्थात् जो पुरुष मुझे सर्वत्र देखता है और सबको मुझमें देखता है, उसके लिए मैं दूर नहीं होता और वह मुझसे वियुक्त नहीं होता||
    भगवान वासुदेव (जो सर्वत्र सम भाव से व्याप्त हैं) सब की आत्मा हैं, जो उन्हें सर्वत्र देखता है उसके लिए वे कभी अदृश्य नहीं होते|

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