Saturday, 28 May 2022

हमें भगवान नहीं मिलते, इसका मुख्य कारण है "सत्यनिष्ठा का अभाव" ---

  हमें भगवान नहीं मिलते, इसका मुख्य कारण है "सत्यनिष्ठा का अभाव" ---

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हम सत्यनिष्ठ नहीं हैं, इसीलिए भगवान से दूर हैं। हमारा लोभ और अहंकार हमें सत्यनिष्ठ होने से रोकता है। इसका निदान यही है कि हम बाल्यकाल से ही बालकों को अच्छे संस्कार दें, और किशोरावस्था से ही उन में भक्ति व ध्यान-साधना में रूचि जागृत करें। हमारे लोभ का एक सूक्ष्म कारण हमारा तामसी आहार भी है। गीता के अनुसार हम जो कुछ भी खाते हैं वह हम नहीं खाते हैं, बल्कि अपनी देह में वैश्वानर अग्नि देव के रूप में स्थित परमात्मा को समर्पित करते हैं। उस भोजन से पूरी सृष्टि की तृप्ति होती है। जहाँ हम अपने स्वयं के लिए ही खाते हैं, वहाँ हम पाप का भक्षण करते हैं। आजकल आसुरी खानपान का बहुत अधिक प्रचलन हो गया है। जिस खानपान से मन दूषित होता है, वह आसुरी आहार है। लोग जूठा भोजन खाने-खिलाने में भी परहेज नहीं करते। जूठा भोजन भी आसुरी हो जाता है। किसी का भी जूठा नहीं खाना चाहिए। मनु महाराज ने मनुस्मृति में उच्छिष्ट भोजन का निषेध किया है। भोजन पकाना एक पाकयज्ञ है जिसकी विधि का गृह्यसूत्रों में वर्णन है। रसोई के चूल्हे और बर्तनों की पवित्रता की हमें रक्षा करनी चाहिए। भोजन बनाने वाले के कैसे भाव हैं, इसका भी प्रभाव खाने वाले पर पड़ता है।
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सिर्फ भोजन ही हमारा आहार नहीं है| जो हम सोचते हैं, देखते हैं, सूंघते हैं, सुनते हैं, और स्पर्श करते हैं -- वह भी हमारी इन्द्रियों द्वारा किया गया आहार है। हम अश्लीलता को सोचते है, देखते हैं और सुनते हैं तो यह अश्लीलता का आहार है। इन्द्रियों द्वारा लिया गया आहार भी हमारे मन को बनाता है। अतः आहार शुद्धि का ध्यान रखना एक आध्यात्मिक साधक का महत्वपूर्ण कर्त्तव्य है। आसुरी आहार के कारण ही हमारा मन दूषित हो जाता है। फिर हम पर देवताओं की कृपा नहीं होती, और हमारा पतन हो जाता है।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० मई २०२२

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