Saturday, 28 May 2022

भगवान बहुत छोटे से एक भोले-भाले अबोध बालक हैं ---

भगवान बहुत छोटे से एक भोले-भाले अबोध बालक हैं। उनसे कुछ कह भी नहीं सकते। उन्हें देखते ही पूरा प्रेम उमड़ आता है। उन से न तो कोई प्रार्थना कर सकते हैं और न कुछ और। उनकी प्रेममयी मुस्कान में ही सब कुछ मिल जाता है। उनसे अन्य कुछ है भी नहीं। हम उन्हें सिर्फ़ अपना प्रेम ही दे सकते हैं। चुपचाप पता नहीं वे कब आकर हृदय में बैठ जाते हैं। कुछ पता ही नहीं चलता।

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कहते हैं कि धन्य हैं वे लोग, भगवान जिन की परीक्षा लेता है। यहाँ तो परीक्षा देते देते पता नहीं कितने जन्म बीत गये हैं! अब कोई और परीक्षा नहीं देनी है। जब कुछ चाहिए ही नहीं, तब किस बात की परीक्षा?
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अपनी परीक्षा अपने पास ही रखो। साथ साथ अपना सारा सामान भी बापस ले जाओ। मुझे आपके अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं चाहिये, आपका सामान तो बिलकुल नहीं। अपने सामान का लालच मुझे मत दो। ये जो माया-मोह, तृष्णा, अनंत वासनात्मक कामनाएँ, अहंकार, लोभ, आदि फालतू कचरा मुझे दिया है, यह सब बाहर ले जाकर जला दो। मुझे आपका यह कूड़ा-कर्कट नहीं चाहिये।
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भगवान भी हमारे बिना नहीं रह सकते, इसीलिए चुपचाप आकर हमारे हृदय में एक बच्चे की तरह बैठ जाते हैं। ठीक है, आपका हृदय है, आपका स्वागत है, खूब ठाठ से, आराम से बैठिए। पता नहीं, वे सुन रहे हैं या नहीं, जो मुझे कहना था सो कह दिया। सुने बिना वे भी नहीं रह सकते। मेरा तो मन उन की निरंतर उपस्थिती से मग्न है। जय हो।

ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ मई २०२२

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