एक ध्वनि ऐसी भी है जो किसी शब्द का प्रयोग नहीं करती। परमात्मा की उस निःशब्द ध्वनि में तेलधारा की तरह तन्मय हो जाना -- एक बहुत बड़ी उपासना है, जिसे लययोग कहते हैं।
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हम मौज-मस्ती करते हैं सुख की चाह में। यह सुख की चाह अवचेतन मन में छिपी आनंद की ही खोज है। सांसारिक सुख की खोज कभी संतुष्टि नहीं देती, अपने पीछे एक पीड़ा की लकीर छोड़ जाती है। आनंद की अनुभूतियाँ होती हैं सिर्फ परमात्मा के ध्यान में। परमात्मा ही आनंद है, परमप्रेम जिसका द्वार है।
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गहन ध्यान में प्राण ऊर्जा का घनीभूत होकर ऊर्ध्वगमन, सुषुम्ना के सभी चक्रों की गुरु-प्रदत्त विधि से परिक्रमा, कूटस्थ में अप्रतिम ब्रह्मज्योति के दर्शन, ओंकार नाद का श्रवण, सहस्त्रार में व उससे भी आगे सर्वव्यापी भगवान परमशिव की अनुभूतियाँ -- जो शाश्वत आनंद देती हैं, वह भौतिक जगत में असम्भव है।
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सभी पर परमात्मा की अपार परम कृपा हो। ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
२४ मई २०२२
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