बड़ा उच्च कोटि का व अति गहन अध्ययन/स्वाध्याय, शास्त्रों का पुस्तकीय ज्ञान, बड़ी ऊँची-ऊँची कल्पनायें, दूसरों को प्रभावित करने के लिए बहुत आकर्षक/प्रभावशाली लिखने व बोलने की कला, --- पर व्यवहार में कोई भक्ति, साधना/उपासना नहीं, तो सारा शास्त्रीय ज्ञान बेकार है।
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अपना अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) परमात्मा को कैसे समर्पित करें?
यही हम सब की सबसे बड़ी समस्या है, अन्य सब गौण हैं। जब परमात्मा की प्रत्यक्ष अनुभूति होने लगे, तब सब नियमों से स्वयं को मुक्त कर परमात्मा का ही ध्यान करना चाहिए। हम नित्यमुक्त हैं। ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
१३ मई २०२२
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