मैं अपने जीवन के पूरे अनुभव के साथ कह सकता हूँ कि हमारे पतन का एकमात्र कारण -- हमारे जीवन में तमोगुण की प्रधानता है। बिना सतोगुण के रजोगुण भी पतनोन्मुखी होता है। जीवन में सतोगुण श्रेष्ठ होता है, लेकिन इन सब गुणों से ऊपर उठना यानि त्रिगुणातीत होना ही सर्वश्रेष्ठ है, जो हमारे परमात्मा को पाने के मार्ग को प्रशस्त करता है।
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तमोगुण ही मानसिक व्यभिचार को जन्म देता है। मन में बुरी बुरी कल्पनाओं का आना, और उन कल्पनाओं में मन का लगना मानसिक व्यभिचार है। यह मानसिक व्यभिचार ही भौतिक व्यभिचार में बदल जाता है। समाज में जो भ्रष्टाचार फैला हुआ है, उसका कारण यह मानसिक व्यभिचार ही है। चारों ओर जो भी बुराइयाँ हम देख रहे हैं, उनके स्त्रोत में हमारा स्वयं का मानसिक व्यभिचार है।
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आजकल किसी को कुछ कहना -- अपना अपमान करवाना है। समाज का वातावरण बहुत अधिक खराब है। बड़े बड़े धर्मगुरु भी अपनी बात कहते हुए संकोच करते हैं। किसी को भलाई की बात कहने का अर्थ है -- गालियाँ, तिरस्कार और अनेक अपमानजनक शब्दों को निमंत्रित करना। आज के युग में हम स्वयं को बचाकर रखेँ। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२० मई २०२२
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