गुरु की कृपा और आध्यात्मिक प्रगति हो रही है या नहीं ?
यदि गुरु के उपदेश हमारे जीवन में चरितार्थ हो रहे हैं, तो गुरुकृपा है, अन्यथा नहीं। यही एकमात्र मापदंड है।
सत्य के प्रति पूर्ण निष्ठा आध्यात्मिक प्रगति का एकमात्र मापदंड है.
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यश की कामना और उस कामना की पूर्ती का प्रयास निश्चित रूप से हमें भगवान से दूर करता है। यश की कामना होनी ही नहीं चाहिए। यदि कहीं कोई महिमा है तो सिर्फ भगवान की है, हमारी नहीं, क्योंकि हम यह देह नहीं, शाश्वत आत्मा हैं जिसे हम स्वयं भूला बैठे हैं। स्वयं की इस देह रूपी नश्वर दुपहिया वाहन के नाम, रूप और अहंकार को महिमामंडित करने और इस का यश फैलाने के चक्कर में हम अनायास ही अत्यधिक अनर्थ कर बैठते हैं। अपने नाम के साथ तरह तरह की उपाधियों को जोड़ना भी एक अहंकार और यश का लोभ है। हर बात का श्रेय लेकर और आत्म-प्रशंसा कर के हम स्वयं के अहंकार को तो तृप्त कर सकते हैं, पर भगवान को प्रसन्न नहीं कर सकते। इस विषय पर अपने विवेक से सोचिये और सदा सतर्क रहिये। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१४ मई २०२२
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