गीता में भगवान ने मेरे जैसे भटके हुए अधमाधम और असाध्य पतितों को भी भगवत्-प्राप्ति का वचन दिया है, अतः निराशा और चिंता की कोई बात नहीं है।
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"अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्।
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः॥९:३०॥"
अर्थात् -- "यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्यभाव से मेरा भक्त होकर मुझे भजता है, वह साधु ही मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है॥"
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"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥१८:६६॥"
अर्थात् -- "सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक मत करो॥"
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हे प्रभु आप वास्तव में पतित-पावन हो। मेरे जैसे अधमाधम व्यक्ति को भी आपने अपने हृदय में स्थान दिया है। आपके चरण-कमलों को छोड़कर अन्यत्र कहीं भी मैं जा नहीं सकता। ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
२४ मई २०२२
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