Friday 14 July 2017

पिंजरे में बँधे पक्षी और सामान्य मनुष्य में कोई अंतर नहीं है ......

पिंजरे में बँधे पक्षी और सामान्य मनुष्य में कोई अंतर नहीं है ........
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सामान्यतः मनुष्य का जन्म ही इसी कारण होता है कि वह अपनी अतृप्त कामनाओं का दास है| वह जन्म ही दास के रूप में लेता है| कामनाएँ सबसे विकट अति सूक्ष्म अदृष्य बंधन हैं|
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कामनाओं में बंध कर हम स्वतः ही गुलाम बन जाते हैं, इसके लिए किसी भी प्रयास की आवश्यकता नहीं पड़ती है| जब कि स्वतंत्रता के लिए हमें अत्यंत दीर्घकालीन प्रयास करने पड़ते हैं| जो निरंतर बिना थके प्रयासरत रहते हैं, वे ही स्वतंत्र हो पाते हैं|
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स्वतंत्रता अपना मूल्य माँगती हैं, वह निःशुल्क नहीं होती| जीवन में जो कुछ भी मूल्यवान है उसकी कीमत चुकानी पडती है| बंधन में बंधना कोई दुर्भाग्य नहीं है, दुर्भाग्य है ..... मुक्त न होने का प्रयास करना|
गुलाम होकर जन्म लेना कोई दुर्भाग्य नहीं है, पर गुलामी में मरना वास्तव में दुर्भाग्य है|
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जीवन में तब तक कोई आनंद या संतुष्टि नहीं मिल सकती जब तक हम अपनी आतंरिक स्वतंत्रता को प्राप्त ना कर लें|
कामनाओं में बंधे होना ही वास्तविक परतंत्रता है| कामनाओं में बंधे मनुष्य और पिंजरे में बंधे पक्षी में कोई अंतर नहीं है| पराधीन मनुष्य कभी मुक्ति का आनंद नहीं ले सकता| वास्तविक स्वतन्त्रता सिर्फ परमात्मा में ही है, अन्यत्र कहीं नहीं|

ॐ ॐ ॐ || ॐ ॐ ॐ || ॐ ॐ ॐ ||

१५ जुलाई २०१६

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