Friday 14 July 2017

आरम्भ तो स्वयं को ही करना होगा .....

आरम्भ तो स्वयं को ही करना होगा .....
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अंतःकरण की शुद्धि ही यम-नियमों का उद्देश्य है| अंतःकरण की शुद्धि के बिना कोई भी आध्यात्मिक साधना सफल नहीं हो सकती| विशुद्ध भक्ति व् सत्संग से भी अंतःकरण शुद्ध हो सकता है| हर प्रकार की कामनाओं से स्वयं को मुक्त करना ही होगा| अभ्यास और वैराग्य इसके लिए आवश्यक है| अभ्यास है अपने इष्ट देव की निरंतर उपस्थिति का बोध और निरंतर स्मरण, उसके सिवाय अन्य किसी का नहीं| किसी भी तरह के संकल्प-विकल्प से बचना होगा| संकल्प ही कामनाओं को जन्म देते हैं|
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हमें स्वयं को ही स्वयं का उद्धार करना होगा, कोई दूसरा नहीं आयेगा| हम स्वयं ही अपने शत्रु और मित्र हैं| ईश्वर को भी उपलब्ध हम स्वयं ही स्वयं को करा सकते हैं, कोई दूसरा यह कार्य नहीं कर सकता| सांसारिक कार्यों में बंधू-बांधव व मित्र काम आ सकते हैं, पर आध्यात्मिक साधनाओं में अधिक से अधिक वे इतना ही कर सकते हैं की हम को परेशान नहीं करें| बाकी का काम तो स्वयं हमारा ही है|
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प्रमाद और दीर्घसूत्रता से बचें| भक्तिसुत्रों के आचार्य देवर्षि नारद के गुरु और ब्रह्मविद्या के आचार्य भगवान सनत्कुमार ने प्रमाद और दीर्घसूत्रता को साधक का सबसे बड़ा शत्रु बताया है| स्वाध्याय में प्रमाद कदापि नहीं करना चाहिए|
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जब हम स्वयं पूर्ण निष्ठा से साधना करेंगे तो गुरु महाराज और स्वयं परमात्मा भी हमारा स्थान ले लेंगे| फिर साधना वे ही करेंगे| पर आरम्भ तो स्वयं को ही करना होगा|
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ॐ तत्सत | ॐ ॐ ॐ ||

१४ जुलाई २०१७

1 comment:

  1. वैदिक राष्ट्र प्रार्थना ........
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    ओम् आ ब्रम्हन्ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतां
    आस्मिन्राष्ट्रे राजन्य इषव्य
    शूरो महारथो जायतां
    दोग्ध्री धेनुर्वोढाअनंवानाशुः सप्तिः
    पुरंधिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः
    सभेयो युवाअस्य यजमानस्य वीरो जायतां|
    निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु
    फलिन्यो न औषधयः पच्यन्तां
    योगक्षेमो नः कल्पताम ||
    >
    (इस राष्ट्र में ब्रह्मतेजयुक्त ब्राह्मण उत्पन्न हों| धनुर्धर, शूर और बाण आदि का उपयोग करने वाले कुशल क्षत्रिय पैदा होयें| अधिक दूध देने वाली गायें होवें| अधिक बोझ ढो सकें ऐसे बैल होवें| ऐसे घोड़े होवें जिनकी गति देखकर पवन भी शर्मा जावे| राष्ट्र को धारण करने वाली बुद्धिमान तथा रूपशील स्त्रियां पैदा होवें, विजय संपन्न करने वाले महारथी होवें|
    समय समय पर योग्य वारिस हो, वनस्पति वृक्ष और उत्तम फल हों| हमारा योगक्षेम सुखमय बने|)

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