Saturday 9 July 2016

साकार या निराकार ....

साकार या निराकार .....
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सब मित्रों का सादर मंगलमय अभिनंदन !
आजकल भगवान की साधना कम, और भगवान के नाम पर व्यापार अधिक हो रहा है| निराकार ब्रह्म की परिकल्पना सब के लिए सम्भव नहीं है अतः साकार साधना सार्थक है| हम भगवान के जिस भी रूप की उपासना करते हैं, उपास्य के गुण हम में निश्चित रूप से आते हैं|
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योगसुत्रों में भी कहा है कि किसी वीतराग पुरुष का चिंतन करने से हमारा चित्त भी वैसा ही हो जाता है| हम भगवान राम का ध्यान करेंगे तो भगवान राम के कुछ गुण हम में निश्चित रूप से आयेंगे| भगवान श्री कृष्ण, भगवन शिव, हनुमान जी, जगन्माता आदि जिस भी भगवान के या किसी महापुरुष के रूप को हम ध्यायेंगे हम भी वैसे ही बन जायेंगे| अतः हमारी क्या अभीप्सा है और स्वाभाविक रूप से हम क्या चाहते हैं, वैसी ही साधना करें|
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भगवान को अपना अहैतुकी परम प्रेम दें, उनके साथ व्यापार ना करें|
भगवान के साथ हम व्यापार कर रहे हैं इसीलिए सारे विवाद उत्पन्न हो रहे हैं|
कई हिन्दू आश्रमों में भगवान् श्री कृष्ण के साथ साथ ईसा मसीह की भी पूजा और आरती होती है| कुछ काली मंदिरों में माँ काली की प्रतिमा के साथ मदर टेरेसा के चित्र की भी पूजा होती है| विदेशी संस्थाएं भी धीरे धीरे हिन्दुओं के आस्था केन्द्रों पर अपना प्रभाव और अधिकार जमा रही हैं| यह एक व्यापार है या एक षड्यन्त्र ... जिसका निर्णय करने में मेरी सीमित बुद्धि असमर्थ है|
भगवान की साधना सिर्फ भगवान के प्रेम के लिए ही करें|
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साकार और निराकार में कोई भेद नहीं है| वास्तव में कुछ भी निराकार नहीं है| जो भी सृष्ट हुआ है वह साकार है| जो स्वयं को निराकार का साधक कहते हैं वे भी या तो भ्रूमध्य में प्रकाश का ध्यान करते हैं या किसी मंत्र का जप या ध्यान करते हैं| वह प्रकाश भी साकार है और मन्त्र भी साकार है| स्वयं को निराकार के साधक अपने गुरु के मूर्त रूप का ध्यान करते हैं, वह भी साकार है| किसी भाव का मन में आना ही उसे साकार बना देता है| अतः इस सृष्टि में कुछ भी निराकार नहीं है| धन्यवाद |

ॐ ॐ ॐ ||

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