Saturday 9 July 2016

परमात्मा को अपने जीवन में अवतरित होने दो ......

परमात्मा को अपने जीवन में अवतरित होने दो ......
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अब तक तो परमात्मा हमारे जीवन में प्रवाहित हो रहे थे पर अब वे स्वयं अवतरित होना चाहते हैं |
एकमात्र बाधा है ..... हमारे अंतःकरण की अशुद्धता |
हमारे अंतःकरण में आसक्ति, भय और क्रोध रूपी तस्कर घुसे हुए हैं अतः वहाँ परमात्मा का प्रवेश नहीं हो पा रहा है | इन तस्करों से मुक्त होने के लिए उनसे सहायता मांगो | वे ही इनसे मुक्ति दिला सकते हैं |
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सब तरह के अवरोधों से मुक्त हमारा परम शांत और समर्पित साक्षी भाव हो |

भगवान सब गुरुओं के गुरु हैं | उनके प्रति जितना प्रेम और समर्पण होगा उसी अनुपात में मार्गदर्शन और सहायता मिलेगी | वे ही हमारी गति हैं, उनके सिवा हमारा अन्य कोई आधार नहीं है | निश्चित रूप से वे हम सब के जीवन में अवतरित होंगे |
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हम सही हैं जब तक हम स्वयं को शाश्वत सर्वव्यापक आत्मा मानते हैं | हम गलत हैं जब हम स्वयं को यह भौतिक देह मानते हैं | हम परमात्मा के साथ एक हैं और उनके अमृत पुत्र हैं |
परमात्मा को पाना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है | हम पापी नहीं हैं, स्वयं को पापी कहना सबसे बड़ा पाप है |
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सब तरह की मानसिक प्रेरणाओं से भी हमें ऊपर उठना पडेगा | भौतिक, प्राणिक और मानसिक अवस्थाओं में कहीं पर भी नहीं रुकना है | लक्ष्य हमारा परम शिवत्व है |
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एक भक्त था जो अपने गुरु की प्रतिमा के समक्ष बैठा उस पर पुष्प अर्पित कर रहा था | अचानक उसका ध्यान अंतर्मुखी हो गया और समाधिस्थ होकर उसने देखा कि समस्त ब्रह्मांड उसी के भीतर है | उसकी देह स्थिर थी पर उसकी चेतना अनंत के साथ एकाकार हो गई |
बाद में उसे लगा कि मैं पुष्प सही स्थान पर अर्पित नहीं कर रहा था क्योंकि समस्त ब्रह्मांड तो मेरी चेतना है, मैं यह देह नहीं अपितु पूर्ण समष्टि हूँ | मैं, मेरे गुरुदेव और परमात्मा सभी एक हैं | उसने बचे हुए पुष्प अपनी नश्वर देह के सिर पर ही चढ़ा दिए, और पुनः समाधिस्थ हो गया |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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