Saturday 9 July 2016

१९६५ में भारत पाक के मध्य हुआ दूसरा युद्ध -----

५० वर्ष पूर्व १९६५ में भारत पाक के मध्य हुआ दूसरा युद्ध -----
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(यह लेख मैंने २३ जून को लिखा था, उसी में थोड़ा सा संशोधन कर के दुबारा प्रस्तुत कर रहा हूँ)
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भारत पाक के मध्य १९६५ के व १९७१ के युद्ध की मुझे बड़ी स्पष्ट स्मृतियाँ हैं| १९६२ में चीन से पराजित होने के कारण देश में निराशा व्याप्त थी पर १९६५ के इस युद्ध ने देश में व्याप्त उस निराशा को दूर कर दिया| उस समय देश में जो जोश जागृत हुआ उसकी अब सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है|
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सन १९६५ में देश में अनाज की बहुत कमी थी| राशन में अमेरिका से आयातित लाल रंग का गेंहूँ मिलता था जो अमेरिका में पशुओं को खिलाया जाता था| हम भारतीय लोग वह अनाज खाने को बाध्य थे| पाकिस्तान ने अमेरिका की सहायता से युद्ध की बहुत अच्छी तैयारियाँ कर रखी थीं| उसके पास अमेरिका से प्राप्त नवीनतम टैंक और युद्धक विमान थे| अन्य हथियार भी उसके पास श्रेष्ठतर थे|
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भारत-पाकिस्तान के मध्य अप्रैल १९६५ से सितम्बर १९६५ के बीच छोटी मोटी झड़पें कही न कहीं लगातार होती ही रहती थीं| युद्ध का आरम्भ पाकिस्तान ने ऑपरेशन जिब्राल्टर के नाम से अपने सैनिको को घुसपैठियो के रूप मे भेज कर इस अपेक्षा से किया कि कश्मीर की जनता भारत के विरुद्ध विद्रोह कर देगी| अगस्त १९६५ में ३०,००० पाकिस्तानी सैनिको ने कश्मीर की स्थानीय जनता की वेषभूषा मे नियंत्रण रेखा को पार कर भारतीय कश्मीर मे प्रवेश किया| १ सितम्बर १९६५ को पाकिस्तान ने ग्रैंड स्लैम नामक एक अभियान के तहत सामरिक दृष्टी से महत्वपूर्ण अखनूर, जम्मू नगर और कश्मीर को भारत से जोड़ने वाले महत्वपूर्ण भूभाग पर अधिकार के लिये आक्रमण कर दिया| इस अभियान का उद्देश्य कश्मीर घाटी का शेष भारत से संपर्क तोडना था ताकि भारत की रसद और संचार व्यवस्था भंग कर दी जाय|
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भारत में उस समय सेना के पास गोला बारूद की बहुत कमी थी| १९६२ की पराजय की पीड़ा से देश उबरा भी नहीं था| पाकिस्तान के इस आक्रमण के लिये भारत तैयार नहीं था| पाकिस्तान को भारी संख्या मे सैनिकों और श्रेष्ठतर श्रेणी के टैंको का लाभ मिल रहा था| आरम्भ में भारत को भारी क्षति उठानी पड़ी| युद्ध के इस चरण मे पाकिस्तान बहुत बेहतर स्थिति मे था और पूरी तरह लग रहा था कि कश्मीर पर उसका अधिकार हो जायेगा|
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पाकिस्तान को रोकने के लिये तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने लाहौर पर हमले का आदेश दिया| पाकिस्तान के लिए यह एक अप्रत्याशित प्रत्याक्रमण था| इससे कश्मीर पर पाकिस्तानी सेना का दबाव बहुत कम हो गया| पाकिस्तान ने भी लाहौर पर भारत का दबाव कम करने के लिये खेमकरण पर आक्रमण कर दिया|
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तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी की अपील पर देशवासियों ने सप्ताह में एक समय भोजन करना बंद कर दिया और भोजन भी कम मात्रा में खाना आरम्भ कर दिया ताकि देश में भुखमरी ना हो| शास्त्री जी ने -- "जय जवान जय किसान" का नारा दिया और किसानों से अधिक अन्न उगाने की अपील की|
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इस लड़ाई मे भारतीय सेना के लगभग ३००० और पाकिस्तानी सेना के ३८०० जवान मारे जा चुके थे| भारत ने युद्ध मे ७१० वर्ग किलोमीटर इलाके पर और पाकिस्तान ने २१० वर्ग किलोमीटर इलाके पर कब्जा कर लिया था। भारत के क्ब्जे मे सियालकोट, लाहौर और कश्मीर के उपजाऊ क्षेत्र थे, और पाकिस्तान के कब्जे मे सिंध और छंब के अनुपजाऊ इलाके थे|
इस युद्ध में आजादी के बाद पहली बार भारतीय वायु सेना (आईएएफ) एवं पाकिस्तान वायु सेना (पीएएफ) के विमानों ने एक दुसरे का मुकाबला किया| नौ सेना ने जब तक युद्ध आरम्भ करने की तैयारी की, युद्ध विराम हो गया और कोई नौसैनिक युद्ध नहीं हो पाया|
पश्चिमी राजस्थान के कुछ क्षेत्रों पर पाकिस्तान ने बहुत भयानक बमबारी की थी| उस समय की अनेक स्मृतियाँ स्थानीय लोगों को है|
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इस युद्ध का लाभ यह हुआ कि भारत का स्वाभिमान बढ़ा| वह निराशा दूर हुई जो १९६२ की पराजय के पश्चात हुई थी| हानि यह हुई कि हमें हमारे प्रिय प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी को खोना पडा| युद्ध में हम जीते तो अवश्य पर दुर्भाग्य से वार्ता की टेबल पर हार गए और जीते हुए क्षेत्र पाकिस्तान को बापस लौटाने पड़े| आज तक यह भी रहस्य बना हुआ है कि शास्त्री जी की ह्त्या हुई थी या स्वाभाविक मौत| किन परिस्थितियों में ताशकंद समझौता हुआ यह भी रहस्य अभी तक बना हुआ है|
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पाकिस्तान में युद्ध का उन्माद पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने फैलाया था| पाकिस्तान के तत्कालीन सैनिक तानाशाह अय्यूब खान यह युद्ध नहीं चाहते थे पर भुट्टो ने उनके दिमाग में यह बात बैठा दी थी कि भारत को पराजित करने का यही सही समय है| पाकिस्तान को बड़ी निराशा हुई जब उसकी अपेक्षानुसार कश्मीर की जनता ने पाकिस्तान के पक्ष में भारत के विरुद्ध कोई विद्रोह नहीं किया, और भारत के प्रधान मंत्री का राजनीतिक नेतृत्व भी बड़ा अच्छा व सफल रहा| भारत की सेना ने बड़ी वीरता से युद्ध लड़ा| अमेरिका का अप्रत्यक्ष और पूर्ण समर्थन पाकिस्तान को था| अमेरिका को पाकिस्तान की योजना व सैन्य तैयारियों का पूरा पता था पर अमेरिका ने यह युद्ध रुकवाने का कोई प्रयास नहीं किया|
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देशवासियों के शौर्य, बलिदान और त्याग को हमें नहीं भूलना चाहिए|
जय भारत ! वन्दे मातरम् |

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