Saturday 9 July 2016

भगवान के साथ व्यापार ....

"Business" शब्द का सही अर्थ होता है .... वह कार्य जिसमें कोई स्वयं को व्यस्त रखता है| हिंदी में उसका अनुवाद "व्यापार" कुछ अटपटा सा लगता है|
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एक बार एक भारतीय साधू से किसी ने अमेरिका में पूछा .... Sir, What is your business ?
उस साधू का उत्तर था .... I have made it my business to find God.
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अमेरिका की पृष्ठभूमि में तो यह उत्तर सही था पर भारत में यह उत्तर गलत माना जाता|
अब जिज्ञासा यह उत्पन्न हो रही है कि क्या हम अपनी व्यक्तिगत उपासना यानि साधना को भी Business की श्रेणी में मान सकते हैं? क्या हमारी उपासना एक व्यापार है ?
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व्यवहारिक रूप से व्यापार तो कुछ लाभ पाने के लिए होता है| पर आध्यात्म में तो कुछ पाने के लिए हैं ही नहीं, यहाँ तो सब कुछ देना ही देना पड़ता है| यहाँ तो अपने अहंकार और राग-द्वेष को मिटाना यानि समर्पित करना पड़ता है|
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वास्तविक भक्ति तो अहैतुकी होती है| कुछ माँगना तो एक व्यापार है, प्रेम नहीं|
परम प्रेम ही भक्ति है, भक्ति में कोई माँग नहीं होती, सिर्फ समर्पण होता है| जहाँ कोई माँग उत्पन्न हो गयी वहाँ तो व्यापार हो गया|
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हे अगम्य, अगोचर, अलक्ष्य, अपार, सर्वव्यापी प्रभु, हे परम शिव, हे नारायण, इस ह्रदय को तुमने अपना घर बना लिया है| जैसे तुम सर्वव्यापी हो, वैसे ही यह ह्रदय भी सर्वव्यापी हो गया है जिसमें समस्त सृष्टि समा गयी है| तुम अपरिभाष्य और अवर्णनीय हो|
तुम्हे भी नमन, और स्वयं को भी नमन !
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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