मेरुदंड के चक्रों पर बीज मन्त्रों से मानसिक जप की विधि .....
>
निम्न साधना-विधि गंभीर निष्ठावान योग मार्ग के साधकों के लिए है| अन्य इसका प्रयोग न करें| साधना काल में यम-नियमों का पालन अनिवार्य है, अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि ही होगी|
ऊनी कम्बल पर पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर शिवनेत्र होकर यानि दृष्टी भ्रूमध्य पर रखते हुए ध्यान आज्ञाचक्र पर रखें| मेरुदंड सदा उन्नत रहे, शरीर शिथिल और ठुड्डी भूमि के समानांतर रहे|
गुदा का तनिक संकुचन कर मूलाधार पर मानसिक जप करें -- "लं".
तनिक ऊपर उठाकर स्वाधिष्ठान पर -- "वं".
मणिपुर पर -- रं".
अनाहत पर -- "यं".
विशुद्धि पर -- "हं".
आज्ञा पर -- "ॐ".
सहस्त्रार पर कुछ अधिक जोर से -- "ॐ".
कुछ पल भर रुककर विपरीत क्रम से जाप करते हुए नीछे आइये| पल भर रुकिए और इस प्रक्रिया को सहज रूप से जितनी बार कर सकते हैं कीजिये|
.
बीज मन्त्रों के जाप में कठिनाई हो तो इनके स्थान पर "ॐ" का जाप कर सकते हैं|
इस जाप के समय दृष्टी भ्रूमध्य पर ही रहे|
जाप के उपरांत शांत होकर बैठ जाइए और खूब देर तक ॐ की ध्वनि को सुनते रहें| खूब देर शांत होकर बैठें| इन बीज मन्त्रों के जाप से सूक्ष्म शक्तियों का जागरण होता है|
.
एक प्रयोग जो मैंने किया था और जिससे मुझे बहुत लाभ मिला वह यहाँ बता रहा हूँ| जब आपकी सांस भीतर जा रही हो उस समय मेरु दंड में सुषुम्ना नाडी में मूलाधार से ऊपर उठते हुए हर चक्र पर हनुमान जी का ध्यान करें| ऐसा भाव करें की श्री हनुमान जी की शक्ति आपकी सुषुम्ना नाडी में आरोहण कर रही है| जब सांस बाहर जा रही हो उस समय यह भाव करें कि सुषुम्ना के बाहर पीछे की ओर से श्री हनुमान जी की शक्ति अवरोहण कर रही है| सांस लेते समय पुनश्चः आरोहण, और सांस छोड़ते समय अवरोहण हो रहा है| साथ साथ उपरोक्त जाप भी चलता रहे| जाप को आज्ञा चक्र या सहस्त्रार पर ही पूर्ण करें|
हनुमान जी महावीर हैं, जब वे साधक के साथ हों तो कोई बाधा नहीं आ सकती|
पर आपका आचार-विचार शुद्ध हो अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि ही होगी|
.
सहस्त्रार और आज्ञा चक्र पर जो ज्योति (ज्योतिर्मय ब्रह्म) दिखाई देती है वही श्री गुरु के चरण हैं| उसमें समर्पण ही श्री गुरु-चरणों में समर्पण है|
आज्ञाचक्र ही योगियों का ह्रदय होता है, इस ह्रदय में निरंतर गुरु रूप में सर्वव्यापी ज्योतिर्मय ब्रह्म का ध्यान करें| यह प्रयोग मैंने अजपा-जाप के साथ भी किया है और इस से बहुत लाभ मिला है| भगवान से उनके प्रेम के अतिरिक्त अन्य किसी भी तरह की कामना ना करें|
.
साधना के मार्ग पर शत-प्रतिशत रहें| अपने ह्रदय में जो प्रचंड अग्नि जल रही है उसे दृढ़ निश्चय और सतत् प्रयास से निरंतर प्रज्ज्वलित रखिए| आधे-अधूरे मन से किया गया कोई प्रयास सफल नहीं होगा| साधना निश्चित रूप से सफल होगी, चाहे यह देह रहे या न रहे ...... इस दृढ़ निश्चय के साथ साधना करें, आधे अधूरे मन से नहीं| परमात्मा का स्मरण करते करते यदि मरना भी पड़े तो वह इस नारकीय सांसारिक जीवन जीने से तो अच्छा है|
>
निम्न साधना-विधि गंभीर निष्ठावान योग मार्ग के साधकों के लिए है| अन्य इसका प्रयोग न करें| साधना काल में यम-नियमों का पालन अनिवार्य है, अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि ही होगी|
ऊनी कम्बल पर पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर शिवनेत्र होकर यानि दृष्टी भ्रूमध्य पर रखते हुए ध्यान आज्ञाचक्र पर रखें| मेरुदंड सदा उन्नत रहे, शरीर शिथिल और ठुड्डी भूमि के समानांतर रहे|
गुदा का तनिक संकुचन कर मूलाधार पर मानसिक जप करें -- "लं".
तनिक ऊपर उठाकर स्वाधिष्ठान पर -- "वं".
मणिपुर पर -- रं".
अनाहत पर -- "यं".
विशुद्धि पर -- "हं".
आज्ञा पर -- "ॐ".
सहस्त्रार पर कुछ अधिक जोर से -- "ॐ".
कुछ पल भर रुककर विपरीत क्रम से जाप करते हुए नीछे आइये| पल भर रुकिए और इस प्रक्रिया को सहज रूप से जितनी बार कर सकते हैं कीजिये|
.
बीज मन्त्रों के जाप में कठिनाई हो तो इनके स्थान पर "ॐ" का जाप कर सकते हैं|
इस जाप के समय दृष्टी भ्रूमध्य पर ही रहे|
जाप के उपरांत शांत होकर बैठ जाइए और खूब देर तक ॐ की ध्वनि को सुनते रहें| खूब देर शांत होकर बैठें| इन बीज मन्त्रों के जाप से सूक्ष्म शक्तियों का जागरण होता है|
.
एक प्रयोग जो मैंने किया था और जिससे मुझे बहुत लाभ मिला वह यहाँ बता रहा हूँ| जब आपकी सांस भीतर जा रही हो उस समय मेरु दंड में सुषुम्ना नाडी में मूलाधार से ऊपर उठते हुए हर चक्र पर हनुमान जी का ध्यान करें| ऐसा भाव करें की श्री हनुमान जी की शक्ति आपकी सुषुम्ना नाडी में आरोहण कर रही है| जब सांस बाहर जा रही हो उस समय यह भाव करें कि सुषुम्ना के बाहर पीछे की ओर से श्री हनुमान जी की शक्ति अवरोहण कर रही है| सांस लेते समय पुनश्चः आरोहण, और सांस छोड़ते समय अवरोहण हो रहा है| साथ साथ उपरोक्त जाप भी चलता रहे| जाप को आज्ञा चक्र या सहस्त्रार पर ही पूर्ण करें|
हनुमान जी महावीर हैं, जब वे साधक के साथ हों तो कोई बाधा नहीं आ सकती|
पर आपका आचार-विचार शुद्ध हो अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि ही होगी|
.
सहस्त्रार और आज्ञा चक्र पर जो ज्योति (ज्योतिर्मय ब्रह्म) दिखाई देती है वही श्री गुरु के चरण हैं| उसमें समर्पण ही श्री गुरु-चरणों में समर्पण है|
आज्ञाचक्र ही योगियों का ह्रदय होता है, इस ह्रदय में निरंतर गुरु रूप में सर्वव्यापी ज्योतिर्मय ब्रह्म का ध्यान करें| यह प्रयोग मैंने अजपा-जाप के साथ भी किया है और इस से बहुत लाभ मिला है| भगवान से उनके प्रेम के अतिरिक्त अन्य किसी भी तरह की कामना ना करें|
.
साधना के मार्ग पर शत-प्रतिशत रहें| अपने ह्रदय में जो प्रचंड अग्नि जल रही है उसे दृढ़ निश्चय और सतत् प्रयास से निरंतर प्रज्ज्वलित रखिए| आधे-अधूरे मन से किया गया कोई प्रयास सफल नहीं होगा| साधना निश्चित रूप से सफल होगी, चाहे यह देह रहे या न रहे ...... इस दृढ़ निश्चय के साथ साधना करें, आधे अधूरे मन से नहीं| परमात्मा का स्मरण करते करते यदि मरना भी पड़े तो वह इस नारकीय सांसारिक जीवन जीने से तो अच्छा है|
ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
No comments:
Post a Comment