Thursday 17 October 2019

कुछ छोटी-मोटी घटनाएँ विश्व की चिंतन धारा को बदल देती हैं ....

कुछ छोटी-मोटी घटनाएँ विश्व की चिंतन धारा को बदल देती हैं|
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(१) क्या सन १९०५ ई.में किसी ने कल्पना भी की थी कि जापान जैसा एक छोटा सा देश रूस जैसे विशाल देश की सेना को युद्ध में हराकर उससे पोर्ट आर्थर (वर्तमान दायरन, चीन में) व मंचूरिया (वर्त्तमान में चीन का भाग) छीन लेगा और रूस की शक्तिशाली नौसेना को त्शुसीमा जलडमरूमध्य (जापान व कोरिया के मध्य) में डूबा देगा? उस झटके से रूस अभी तक उभर नहीं पाया है|
बोल्शेविक क्रांति जो वोल्गा नदी में खड़े रूसी युद्धपोत औरोरा के नौसैनिकों के विद्रोह से आरम्भ हुई और लेनिन के नेतृत्व में पूरे रूस में फ़ैल गयी के पीछे भी मुख्यतः इसी निराशा का भाव था|
उपरोक्त घटना से प्रेरणा लेकर भारत में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष आरम्भ किया| भारत में अंग्रेजों ने इतने अधिक नर-संहार किये (पाँच-छः करोड़ से अधिक भारर्तीयों की ह्त्या अंग्रेजों ने की) और भारतीयों को आतंकित कर के यह धारणा जमा दी थी कि गोरी चमड़ी वाले फिरंगी अपराजेय हैं| उपरोक्त युद्ध से यह अवधारणा समाप्त हो गयी|

(2) किस तरह बाध्य होकर रूस को अलास्का बेचना पडा था अमेरिका को, यह भी एक ऐसी ही घटना थी|
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(3) क्या प्रथम विश्व युद्ध के समय तक किसी ने कल्पना भी की थी कि सल्तनत-ए-उस्मानिया (Ottoman Empire) बिखर जाएगी और खिलाफत का अंत हो जाएगा? वे लोग जो स्वयं को अपराजेय मानते थे, पराजित हो गए|
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(4) जर्मनी जैसा एक पराजित राष्ट्र विश्व का सबसे अधिक शक्तिशाली देश बनकर उबरेगा और पराजित होकर खंडित होगा और फिर एक हो जाएगा, यह क्या किसी चमत्कार से कम था ?
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(5) ब्रिटिश साम्राज्य का विखंडन, जापान की हार, भारत की स्वतंत्रता, चीन में साम्यवादी शासन की स्थापना, सोवियत संघ का विघटन, साम्यवादी विचारधारा का पराभव आदि क्या किसी अप्रत्याशित चमत्कार से कम थे?
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ऐसे ही भारत में आध्यात्मिक राष्ट्रवाद भी एक चमत्कार से कम नहीं होगा| भारत के आध्यात्मिक राष्ट्रवाद से समस्त सृष्टि का कल्याण होगा| आध्यात्मिक राष्ट्रवाद ही भारत का भविष्य है|
कृपा शंकर
१७ सितंबर २०१३

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