Wednesday, 26 April 2017

परमात्मा एक प्रवाह है .....

>>> "परमात्मा एक प्रवाह है, उसे स्वयं के माध्यम से प्रवाहित होने दो| कोई अवरोध मत खड़ा करो| फिर पाएँगे कि वह प्रवाह हम स्वयं हैं|" <<<
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प्रिय निजात्मगण, आप सब में हृदयस्थ प्रभु को नमन !
आप सब से एक प्रश्न है ..... क्या इस संसार में कुछ पाने योग्य है ?
आध्यात्मिक दृष्टी से सर्वप्रथम तो कुछ पाने की अवधारणा ही गलत है|
कुछ पाने की कामना ही माया का सबसे बड़ा अस्त्र है|
>>> या तो सब कुछ मिलता है या कुछ भी नहीं मिलता, यह एक आध्यात्मिक नियम है| यह कुछ पाने की अभिलाषा एक मृगतृष्णा है| किसी को कुछ नहीं मिलता| <<<
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सब कुछ परमात्मा का है और सब कुछ "वह" ही है| हमें स्वयं को ही समर्पित होना पड़ता है| जो परमात्मा को समर्पित हो गया उसको सब कुछ मिल गया| बाकि अन्य सब को निराशा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं मिलता|
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सब कुछ तो मिला हुआ ही है| पाने योग्य कुछ है तो "वह" ही है जिसे पाने के बाद कुछ भी प्राप्य नहीं है| "वह" मिलता नहीं है, उसमें स्वयं को समर्पित होना पड़ता है| कुछ करने से "वह" नहीं मिलता, कुछ होना पड़ता है| वह होने पर "वह" स्वयं ही कर्ता भी बन जाता है|
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हमें चाहिए बस सिर्फ एक प्रबल सतत अभीप्सा और परम प्रेम, अन्य कुछ भी नहीं|
>>> "परमात्मा एक प्रवाह है, उसे स्वयं के माध्यम से प्रवाहित होने दो| कोई अवरोध मत खड़ा करो| फिर पाएँगे कि वह प्रवाह हम स्वयं हैं|" <<<
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ॐ तत्सत् | शिवोहं शिवोहं शिवोहं शिवोहं शिवोहं | ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
24 April 2016

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