Wednesday 26 April 2017

नक्सलवादी आन्दोलन का संक्षिप्त इतिहास .....

> वर्तमान नक्सलवादियों का मूल नक्सलवाद से कोई सम्बन्ध नहीं है| मूल नक्सलवाद और नक्सलवादियों का अब कोई अस्तित्व नहीं है| वर्तमान नक्सलवादी और उनके समर्थक "ठग" है, और "ठग" के अलावा कुछ और नहीं हैं|
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> जिस समय नक्सलबाड़ी में चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने नक्सलवादी आन्दोलन का आरम्भ किया था, तब से अब तक का सारा घटनाक्रम मुझे याद है| उस समय की घटनाओं का सेकंड हैण्ड नहीं, फर्स्ट हैण्ड ज्ञान मुझे है| उस आन्दोलन से जुड़े अनेक लोग मेरे परिचित और तत्कालीन मित्र थे|
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> जो मूल नक्सलवादी थे उनकी तीन गतियाँ हुईं .......
* (१) उनमें से आधे तो पुलिस की गोली का शिकार हो गए| किसी को पता ही नहीं चलने दिया गया था कि उनका क्या हुआ, कहाँ उनकी लाशों को ठिकाने लगाया गया आदि आदि| वे अस्तित्वहीन ही हो गए|
* (२) जो जीवित बचे थे उन में से आधों ने तत्कालीन सरकार से समझौता कर लिया और नक्सलवादी विचारधारा छोड़कर राष्ट्र की मुख्य धारा में बापस आ कर सरकारी नौकरियाँ ग्रहण कर लीं|
* (३) बाकी बचे हुओं ने इस विचारधारा से तौबा कर ली और इस विचारधारा के घोर विरोधी हो गए|
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> अब नक्सलवाद के नाम पर जो यह ठगी और लूट का काम कर रहे हैं, वे बौद्धिक आतंकवादी, ठग, डाकू और तस्कर हैं|
उनका एक ही इलाज है, और वह है ...... "बन्दूक की गोली"|
इसी की भाषा को वे समझते हैं| वे कोई भटके हुए नौजवान नहीं है, वे कुटिल राष्ट्रद्रोही तस्कर हैं, जिनको बिकी हुई प्रेस, वामपंथियों और राष्ट्र्विरोधियों का समर्थन प्राप्त है|
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नक्सलवादी आन्दोलन का संक्षिप्त इतिहास .......
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नक्सलवादी आन्दोलन का विचार कानू सान्याल के दिमाग की उपज थी| यह एक रहस्य है कि कानू सान्याल इतना खुराफाती कैसे हुआ| वह एक साधू आदमी था जिसका जीवन बड़ा सात्विक था| उसका जन्म एक सात्विक ब्राह्मण परिवार में हुआ था| उसकी दिनचर्या बड़ी सुव्यवस्थित थी और भगवान ने उसे बहुत अच्छा स्वास्थ्य दिया था| सन १९६२ में वह बंगाल के तत्कालीन मुख्य मंत्री श्री वी.सी.रॉय को काला झंडा दिखा रहा था कि पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया जहाँ उसकी भेट चारु मजुमदार से हुई|
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चारु मजूमदार एक कायस्थ परिवार से था और हृदय रोगी था, जो तेलंगाना के किसान आन्दोलन से जुड़ा हुआ था और जेल में बंदी था| दोनों की भेंट सन १९६२ में जेल में हुई और दोनों मित्र बने|
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सन १९६७ में दोनों ने बंगाल के नक्सलबाड़ी नामक गाँव से तत्कालीन व्यवस्था के विरुद्ध एक घोर मार्क्सवादी आन्दोलन आरम्भ किया जो नक्सलवाद कहलाया| इस आन्दोलन में छोटे-मोटे तो अनेक नेता थे पर इनको दो और प्रभावशाली कर्मठ नेता मिल गए ........ एक तो था नागभूषण पटनायक, और दूसरा था टी.रणदिवे| इन्होनें आँध्रप्रदेश के श्रीकाकुलम के जंगलों से इस आन्दोलन का विस्तार किया|
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यह आन्दोलन पथभ्रष्ट हो गया जिससे कानु सान्याल और चारु मजूमदार में मतभेद हो गए और दोनों अलग अलग हो गए| चारु मजुमदार की मृत्यु सन १९७२ में हृदय रोग से हो गयी, और कानु सान्याल को इस आन्दोलन का सूत्रपात करने की इतनी अधिक मानसिक ग्लानी और पश्चाताप हुआ कि २३ मार्च २०१० को उसने आत्महत्या कर ली|
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अब आप नक्सलवादी आन्दोलन का अति संक्षिप्त इतिहास समझ गए होंगे|
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वन्दे मातरं | भारत माता की जय | ॐ ॐ ॐ ||
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पुनश्चः :-----
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>>> माओवाद यानि नक्सलवाद को एक दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति से समाप्त किया जा सकता है| इसमें राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठना पडेगा| सभी शासकों को पता है कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं| इस कार्य के लिए विशेषज्ञ भी हैं और अनुभवी व्यक्ति भी| पर राजनीतिक स्वार्थ आड़े आ जाते हैं|
(१) सबसे पहले तो स्वयं को माओवादी क्रांतिकारी बताने वाले ठगों से वनवासियों को बचाना होगा| इन ठगों का निश्चित विनाश तो करना ही होगा|
(२) फिर प्राकृतिक संसाधनों .... जल, जंगल, जमीन, खनिज और पहाड़ को बचाने के लिए वनवासियों का सहयोग लेना ही होगा और उन्हें ही इसकी जिम्मेदारी भी देनी होगी|
(३) वनवासियों को साहूकारों, सरकारी कर्मचारियों और पूंजीपतियों के शोषण से बचाना होगा|
(४) वनवासियों के लिए एक पुलिस का सिपाही और एक कनिष्ठ से कनिष्ठ सरकारी कर्मचारी ही सरकार होता है| सरकारी कर्मचारियों को भी प्रशिक्षित करना होगा की वे वनवासियों को सताएँ नहीं|
(५) वनवासी क्षेत्रों में निःशुल्क शिक्षा और इलाज की व्यवस्था करनी होगी|
(६) वनवासी कल्याण परिषद् जैसी संस्थाओं को सहयोग देना भी होगा और उनसे सहयोग लेना भी होगा| उन्हें इस क्षेत्र का बहुत अनुभव है|
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>>> नक्सलवाद एक विफल विचारधारा है| इसके संस्थापक कानू सान्याल ने इसके भटकाव और विफलता से दुःखी होकर आत्म ह्त्या कर ली थी| उनके सहयोगी चारू मजूमदार भी निराश होकर ह्रदय रोग से मर गए थे| इस पर मैं एक लेख पोस्ट कर चुका हूँ| इस आसुरी विचारधारा का कोई भविष्य नहीं है|

1 comment:

  1. "नक्सलवाद" यानि माओवाद एक विफल विचारधारा है| इसके संस्थापक कानू सान्याल ने इसके भटकाव और विफलता से दुःखी होकर आत्मह्त्या कर ली थी| उनके सहयोगी चारू मजूमदार भी निराश होकर ह्रदय रोग से मर गए थे| इस आसुरी विचारधारा का कोई भविष्य नहीं है| स्वयं को माओवादी क्रांतिकारी बताने वाले ठगों से वनवासियों को बचाना होगा| इन ठगों का निश्चित विनाश तो करना ही होगा|

    वनवासियों को साहूकारों, सरकारी कर्मचारियों और पूंजीपतियों के शोषण से बचाना होगा| वनवासियों के लिए एक पुलिस का सिपाही और एक कनिष्ठ से कनिष्ठ सरकारी कर्मचारी ही सरकार होता है| सरकारी कर्मचारियों को भी प्रशिक्षित करना होगा की वे वनवासियों को सताएँ नहीं| वनवासी क्षेत्रों में निःशुल्क शिक्षा और इलाज की व्यवस्था करनी होगी|

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