जिस गति से हमारा भौतिक ज्ञान बढ़ रहा है उसी गति से हमारा आध्यात्मिक अज्ञान भी अनावृत हो रहा है ........
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चाहे कोई मेरा कितना भी उपहास करे, मेरी कितनी भी हँसी उड़ाये या मुझे कितना भी बुरा बताए, पर यह सुनिश्चित है कि वर्तमान सभ्यता निकट भविष्य में नष्ट होगी व एक नई प्रजाति इस पृथ्वी पर राज्य करेगी| ऐसा मुझे बार बार आभास होता है|
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वर्तमान सभ्यता ने आत्मज्ञान यानि ब्रह्मज्ञान को असंगत बना रखा है, आत्मा व परमात्मा के चिंतन को पिछड़ेपन की निशानी, साम्प्रदायिक व बेकार की बात बना रखा है| वर्त्तमान सभ्यता का एकमात्र लक्ष्य इन्द्रिय सुखों के लिए ही भौतिक समृद्धि की प्राप्ति है| भौतिक समृद्धि आवश्यक है पर उस का लक्ष्य निज जीवन में परमात्मा की अभिव्यक्ति है| सारे ज्ञान का एकमात्र स्त्रोत भी परमात्मा ही है| आसुरी सभ्यताएँ चिरस्थायी नहीं होतीं|
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अपने स्वयं को यानि आत्म-तत्व को जाने बिना हम सब कुछ जानना चाहते हैं| अपने वास्तविक कल्याण के लिए हमें क्या करना चाहिए, इस पर कोई प्रयास नहीं हो रहा है| सौभाग्य से इस लक्ष्य के प्रति जागरूक दिव्यात्माओं का भी जन्म हो रहा है जो एक नई प्रजाति ही है|
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हे प्रभु, हे परमशिव, आप की आरोग्यकारी उपस्थिति आप की सभी संतानों के देह, मन और आत्माओं में प्रकट हो| सभी का कल्याण हो| आपके अतिरिक्त हमारी कोई अन्य कोई कामना नहीं हो| हम राग-द्वेष और अहंकार जैसे सभी बंधनों से मुक्त हों|
ॐ ॐ ॐ ||
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चाहे कोई मेरा कितना भी उपहास करे, मेरी कितनी भी हँसी उड़ाये या मुझे कितना भी बुरा बताए, पर यह सुनिश्चित है कि वर्तमान सभ्यता निकट भविष्य में नष्ट होगी व एक नई प्रजाति इस पृथ्वी पर राज्य करेगी| ऐसा मुझे बार बार आभास होता है|
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वर्तमान सभ्यता ने आत्मज्ञान यानि ब्रह्मज्ञान को असंगत बना रखा है, आत्मा व परमात्मा के चिंतन को पिछड़ेपन की निशानी, साम्प्रदायिक व बेकार की बात बना रखा है| वर्त्तमान सभ्यता का एकमात्र लक्ष्य इन्द्रिय सुखों के लिए ही भौतिक समृद्धि की प्राप्ति है| भौतिक समृद्धि आवश्यक है पर उस का लक्ष्य निज जीवन में परमात्मा की अभिव्यक्ति है| सारे ज्ञान का एकमात्र स्त्रोत भी परमात्मा ही है| आसुरी सभ्यताएँ चिरस्थायी नहीं होतीं|
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अपने स्वयं को यानि आत्म-तत्व को जाने बिना हम सब कुछ जानना चाहते हैं| अपने वास्तविक कल्याण के लिए हमें क्या करना चाहिए, इस पर कोई प्रयास नहीं हो रहा है| सौभाग्य से इस लक्ष्य के प्रति जागरूक दिव्यात्माओं का भी जन्म हो रहा है जो एक नई प्रजाति ही है|
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हे प्रभु, हे परमशिव, आप की आरोग्यकारी उपस्थिति आप की सभी संतानों के देह, मन और आत्माओं में प्रकट हो| सभी का कल्याण हो| आपके अतिरिक्त हमारी कोई अन्य कोई कामना नहीं हो| हम राग-द्वेष और अहंकार जैसे सभी बंधनों से मुक्त हों|
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अप्रैल २३, २०१७
ReplyDeleteआज प्रातःकाल उठते ही ध्यान में जो भाव आये और जो प्रेरणा मिली उसी को व्यक्त करने का प्रयास कर रहा हूँ .....
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इस जीवन से पूर्व, इस जीवन के पश्चात और इस जीवन में भी मेरे एकमात्र शाश्वत साथी स्वयं साक्षात् परमात्मा ही रहे हैं, होंगे, और हैं| अन्य सब साथ छूट जायेंगे पर उनका साथ कभी नहीं छूटेगा| ज्योतिर्मय ब्रह्म और प्रणव नाद के रूप में वे सदा मेरे साथ हैं और सदा साथ रहेंगे| प्रकृति के सौम्यतम और विकरालतम अनुभवों में, सुख और दुःख में भी उन्होंने कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा है|
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उनसे मेरा वियोग उन्हीं क्षणों में हुआ जब जब भी इन्द्रीय सुखों के भोग और सांसारिक ऐश्वर्यों की कामना जगी|
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अब और वियोग नहीं होगा| यह देह रहे या न रहे इसका कोई महत्व नहीं है| उस शाश्वत का साथ नित्य सदा है|
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