राष्ट्र और समाज की चिंता संत महात्माओ को ही होती है .....
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जिस समय पृथ्बी पर रावण का आतंक था, उस समय जनक तथा दशरथ जैसे चक्रवर्ती राजा राज्य कर रहे थे| वे कभी भी रावण का वध कर सकते थे, पर धर्मरक्षा की चिंता विश्वामित्र जैसे संतों को ही हुई| राष्ट्र और समाज की चिंता सिर्फ संत महात्माओ को ही होती है|
गाधि तनय मन चिंता व्यापी ,हरि बिन मरय न निशिचर पापी|
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मेरे मन में प्रश्न यह उठता है जब इतने बड़े बड़े पराक्रमी चक्रवर्ती राजा थे उन्होंने रावण से युद्ध क्यों नहीं किया? एक संत को ही यह चिंता क्यों हुई कि हरि बिना ये निशाचर पापी नहीं मरेंगे|
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वर्त्तमान में भी देश की चिंता सिर्फ संत महात्माओं को ही है| वे ही इस समय सर्वाधिक प्रयास कर रहे हैं और अपना सर्वस्व न्योछावर कर रहे हैं| उन्ही के पुण्य प्रताप से सनातन धर्म और भारतवर्ष जीवित है|
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भारतवर्ष को इस समय आवश्यकता है एक ब्रह्मतेज की| जब ब्रह्मत्व जागृत होगा तब क्षातृत्व भी जागृत होगा| इसके लिए साधना और समर्पित साधकों की आवश्यकता है| यह संत महात्माओं का तप ही रक्षा करेगा|
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जिस समय पृथ्बी पर रावण का आतंक था, उस समय जनक तथा दशरथ जैसे चक्रवर्ती राजा राज्य कर रहे थे| वे कभी भी रावण का वध कर सकते थे, पर धर्मरक्षा की चिंता विश्वामित्र जैसे संतों को ही हुई| राष्ट्र और समाज की चिंता सिर्फ संत महात्माओ को ही होती है|
गाधि तनय मन चिंता व्यापी ,हरि बिन मरय न निशिचर पापी|
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मेरे मन में प्रश्न यह उठता है जब इतने बड़े बड़े पराक्रमी चक्रवर्ती राजा थे उन्होंने रावण से युद्ध क्यों नहीं किया? एक संत को ही यह चिंता क्यों हुई कि हरि बिना ये निशाचर पापी नहीं मरेंगे|
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वर्त्तमान में भी देश की चिंता सिर्फ संत महात्माओं को ही है| वे ही इस समय सर्वाधिक प्रयास कर रहे हैं और अपना सर्वस्व न्योछावर कर रहे हैं| उन्ही के पुण्य प्रताप से सनातन धर्म और भारतवर्ष जीवित है|
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भारतवर्ष को इस समय आवश्यकता है एक ब्रह्मतेज की| जब ब्रह्मत्व जागृत होगा तब क्षातृत्व भी जागृत होगा| इसके लिए साधना और समर्पित साधकों की आवश्यकता है| यह संत महात्माओं का तप ही रक्षा करेगा|
ॐ शिव !
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