Wednesday 26 April 2017

बल हीन को परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती .....

'नायमात्माबलहीनेनलभ्यः'
(बल हीन को परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती) ........
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जितेन्द्रिय व्यक्ति ही महावीर होते हैं, वे ही परमात्मा को प्राप्त करते हैं|
परमात्मा के प्रति परम प्रेम और गहन अभीप्सा के पश्चात इन्द्रियों पर विजय पाना आध्यात्म की दिशा में अगला क़दम है | बिना इन्द्रियों पर विजय पाए कोई एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकता | इन्द्रियों पर विजय न पाने पर आगे सिर्फ पतन ही पतन है |
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मैं जो लिख रहा हूँ अपने अनुभव से लिख रहा हूँ| मैं बहुत सारे बहुत ही अच्छे अच्छे और निष्ठावान सज्जन लोगों को जानता हूँ जिनकी आध्यात्मिक प्रगति इसीलिए रुकी हुई है कि वे इन्द्रियों पर नियंत्रण करने में असफल रहे है| मैंने जो कुछ भी सीखा है वह अत्यधिक कठिन और कठोरतम परिस्थितियों से निकल कर सीखा है| अतः इस विषय पर मेरा भी निजी अनुभव है|
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कुछ लोग अपनी असफलता को छिपाने के लिए बहाने बनाते हैं और कहते हैं कि 'मन चंगा तो कठौती में गंगा'| पर वे नहीं समझते कि बिना इन्द्रियों पर नियंत्रण पाये मन पर नियन्त्रण असम्भव है|
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इन्द्रियों और मन पर नियंत्रण का न होना आध्यात्म मार्ग का सबसे बड़ा अवरोध है| इन्द्रिय सुखों को विष के सामान त्यागना ही होगा| चाहे वह शराब पीने का या नशे का शौक हो, या अच्छे स्वादिष्ट खाने का, या नाटक सिनेमा देखने का, या यौन सुख पाने का| इन सब शौकों के साथ आप एक अच्छे सफल सांसारिक व्यक्ति तो बन सकते हो पर आध्यात्मिक नहीं| जितेन्द्रिय व्यक्ति ही महावीर होते हैं, वे ही भगवान को उपलब्ध होते हैं| यदि आपको महावीर बनना है तो जितेन्द्रिय होना ही होगा|
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इन्द्रियों और मन पर नियंत्रण एक परम तप है| इससे बड़ा तप दूसरा कोई नहीं है| इसके लिए तपस्या करनी होगी| दो बातों का निरंतर ध्यान रखना होगा .....

(1) सारे कार्य स्वविवेक के प्रकाश में करो, ना कि इन्द्रियों की माँग पर .....
भगवान ने आपको विवेक दिया है उसका प्रयोग करो| इन्द्रियों की माँग मत मानो| इन्द्रियाँ जब जो मांगती हैं वह उन्हें दृढ़ निश्चय पूर्वक मत दो| उन्हें उनकी माँग से वंचित करो| यह सबसे बड़ी तपस्या है| इन्द्रियों का निरोध करना ही होगा|
(2) दृढ़ निश्चय कर के निरंतर प्रयास से मन को परमेश्वर के चिंतन में लगाओ|
विषय-वासनाओं से मन को हटाकर भगवान के ध्यान में लगाओ| जब भी विषय वासनाओं के विचार आयें, अपने इष्ट देवता/देवी से प्रार्थना करें, गायत्री मन्त्र का जाप करें आदि आदि|
सात्विक भोजन लें, कुसंग का त्याग करें, सत्संग करें और सात्विक वातावरण में रहें| निश्चित रूप से आप महावीर बनेंगे|
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श्रुति भगवती कहती है .... 'नायमात्माबलहीनेनलभ्यः'| अर्थात बल हीन को परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती| और यह बल उसी को प्राप्त होता है जो जितेन्द्रिय है और जिसने अपनी इन्द्रियों के साथ साथ मन पर भी नियंत्रण पाया है|
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ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
26April2016

3 comments:

  1. हे सच्चिदानंद परम शिव, यह सारी सृष्टि आपका ही व्यापक रूप है| इस संसार में मैं सब प्रकार की अनुकूलता और प्रतिकूलताओं से ऊपर रहूँ, ऐसी कृपा करो|
    ॐ ॐ ॐ ||

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  2. सारा जीवन निरर्थक खेलकूद और वासनाओं की पूर्ती में ही नष्ट हो गया| न तो सद् गुणों का विकास हुआ, न कोई सदाचरण हुआ| सारा जीवन स्वेच्छाचारी ही रहा| अब तो कम से कम, संसार के प्रति मोह-माया का त्याग हो, और सिर्फ परमात्मा से ही अटल प्रेम हो|

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  3. जिस या जैसे भी वातावरण और परिस्थितियों की हम अपेक्षा या कामना करते हैं वह कभी भी और कहीं भी नहीं मिलती | उस का निर्माण हमें स्वयं को ही अपने अंतर में करना पड़ता है |

    यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है |

    बाहर से कुछ भी प्राप्त नहीं होता | जो भी प्राप्त होता है वह अन्तस्थ परमात्मा से ही प्राप्त होता है | इसका भी एक विज्ञान है |

    और भी ऐसे अनेक रहस्य हैं जो स्वयं समझ में आते हैं, समझाये नहीं जा सकते |

    ॐ ॐ ॐ ||

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