इस जन्म में मैं स्वाभिमान और गर्व सहित सनातनी हिन्दू हूँ। हिन्दू का अर्थ है जो हिंसा से दूर है। मनुष्य में हिंसा का जन्म लोभ व अहंकार से होता है। लोभ व अहंकार ही राग-द्वेष है। राग-द्वेष से मुक्ति ही वीतरागता है। वीतराग व्यक्ति ही महत् तत्व से जुड़कर महात्मा बनता है। वीतराग व्यक्ति ही स्थितप्रज्ञता को प्राप्त होता है जो ईश्वर प्राप्ति की अवस्था है। स्थितप्रज्ञता ही कैवल्य/ब्राह्मी-स्थिति/कूटस्थ-चैतन्य आदि है। हम शाश्वत आत्मा हैं, इसलिए हमारा स्वधर्म परमात्मा से परमप्रेम और समर्पण है। इस पृथ्वी पर वह हर व्यक्ति हिन्दू है जिसे परमात्मा से प्रेम है, व जो परमात्मा को उपलब्ध होना चाहता है। हिन्दुत्व ही हमें आत्मा की शाश्वतता, पुनर्जन्म और कर्मफलों की शिक्षा देता है। घृणा व क्रोध से मुक्त होकर, ईश्वर की चेतना में रहते हुए हम अपने शत्रुओं का संहार करें। हमारे मन में शत्रुभाव का अभाव तो सदा रहे, लेकिन शत्रुबोध सदा बना रहे।
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