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हे प्रभु इतनी तो कृपा करो। स्वयं को मुझमें पूर्णतः व्यक्त करो। मुझे अपने साथ एक करो। हे प्रभु, राष्ट्र की अस्मिता -- धर्म की रक्षा करो। हमारे में ज्ञान, भक्ति, वैराग्य और आप स्वयं की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति हो॥ हमें भगवान नहीं मिलते, इसका एकमात्र कारण है --"सत्यनिष्ठा का अभाव"। हमारे पतन का एकमात्र कारण है हमारा --"लोभ और अहंकार"। हम स्वयं पानी पीयेंगे तभी हमारी प्यास बुझेगी, स्वयं भोजन करेंगे तभी हमें तृप्ति होगी, और स्वयं साधना करेंगे तभी हमें भगवत्-प्राप्ति होगी। दूसरों के पीछे पीछे भागने से कुछ नहीं मिलेगा। हम जहां हैं, वहीं परमात्मा हैं।
हरिः ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२४ दिसंबर २०२५
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