Monday, 29 December 2025

यह वृद्धावस्था बड़ी खराब चीज है --

 यह वृद्धावस्था बड़ी खराब चीज है -- (भगवान के भजन करने के इस मौसम में यह शरीर महाराज पूरा सहयोग नहीं करता। बड़ा धोखेबाज़ मित्र है)

"दुनिया भी अजब सराय फानी देखी, हर चीज यहां की आनी जानी देखी।
जो आके ना जाये वो बुढ़ापा देखा, जो जा के ना आये वो जवानी देखी॥"
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दिन-रात भगवान का चिंतन, मनन, निदिध्यासन और ध्यान करने का मौसम आ गया है। ध्यान हमें ज्योतिर्मय ब्रह्म का करना चाहिये। जो ब्रह्म शब्द का अर्थ नहीं समझते उन्हें किसी ब्रहमनिष्ठ श्रौत्रीय महात्मा से मार्गदर्शन लेना होगा। "ब्रह्म" शब्द में सब समाहित हो जाते हैं। वे ही पुरुषोत्तम, वे ही परमशिव, और वे ही परमात्मा हैं। यह निरंतर हो रहा अनंत विस्तार, प्राण, ऊर्जा, और सम्पूर्ण अस्तित्व वे ही हैं। ऊर्जा के खंड व कण, उनकी गति, प्रवाह और विभिन्न आवृतियों पर उनके स्पंदनों से ही इस भौतिक सृष्टि का निर्माण हुआ है। प्राण तत्व से ही समस्त चैतन्य है। इन सब के पीछे जो अनंत सत्य और ज्ञान है, वह ब्रह्म है।
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नदियों का प्रवाह महासागर की ओर होता है। लेकिन एक बार महासागर में समर्पित होने के पश्चात नदियों का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो जाता है। फिर महासागर का ही अवशेष रहता है। जो जलराशि महासागर में समर्पित हो गयी है, वह बापस नदियों में नहीं जाना चाहती। ऐसे ही हम स्वयं का समर्पण ब्रह्म में करें। इसकी विधि किसी सद्गुरु आचार्य से सीखनी होगी।
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आध्यात्मिक साधना में महत्व "परमात्मा की प्रत्यक्ष अनुभूतियों" का है जो प्रेम और आनंद के रूप में अनुभूत और व्यक्त हो रही हैं। जिस साधना से परमात्मा की अनुभूति होती है, और हम परमात्मा को उपलब्ध होते हैं, केवल वही सार्थक है। परमात्मा को सदा अपने समक्ष रखो और उनमें स्वयं का विलय कर दो।
हमारे जीवन का प्रथम, अंतिम और एकमात्र लक्ष्य/उद्देश्य -- "ईश्वर की प्राप्ति" है। इसके लिए कोई से भी साधन हों -- भक्ति, योग, तंत्र आदि सब स्वीकार्य हैं। भगवान हैं, इसी समय है, यही पर हैं, हर समय और सर्वत्र हैं। वे हैं, बस यही महत्वपूर्ण है। भगवान की आनंद रूपी जलराशि में हम तैर रहे हैं, उनकी जलराशि बन कर उनके महासागर में विलीन हो गये हैं। यही भाव सदा बना रहे।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ दिसंबर २०२५

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