सद्गुरु कौन हो सकता है? गुरु की आवश्यकता क्यों है? --- (Amended & Re-Posted)
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वेदों के निर्देशानुसार एक श्रौत्रीय (जिसे श्रुतियों यानि वेदों का ज्ञान हो) ब्रहमनिष्ठ (ब्रह्म में स्थित) आचार्य ही सद्गुरु हो सकता है ---
"परीक्ष्य लोकान् कर्मचितान् ब्राह्मणो निर्वेदमायान्नास्त्यकृतः कृतेन।
(मुण्डक. १:२:१२)
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ऐसे सद्गुरु का आज के युग में मिलना बड़ा कठिन है, इसलिए दक्षिणामूर्ति भगवान शिव, या जगतगुरु भगवान श्रीकृष्ण, को ही गुरु रूप में मानना चाहिए। या फिर गुरु का वरण ऐसे आचार्य को करें जिसने ईश्वर का साक्षात्कार किया हो।
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गुरु की आवश्यकता हमें इसलिए है कि साधनाएँ अनेक हैं, मार्ग अनेक हैं, अनेक मंत्र हैं, अनेक विद्याएँ हैं, लेकिन परमात्मा की प्राप्ति के लिए हमें एक ही मार्ग चाहिए। कौन सा मार्ग हमारे लिए उपयुक्त और सर्वश्रेष्ठ है इसका निर्णय जब हम नहीं कर पाते तब किसी आचार्य सद्गुरु की शरण लेते हैं। हमारी अब तक की आध्यात्मिक उपलब्धियों का आंकलन कर के एक सद्गुरु ही बता सकता है कि कौन सा मार्ग हमारे लिए सर्वश्रेष्ठ है। ऐसे गुरु ही हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं। हमें मार्गदर्शन उन्हीं से लेना चाहिए। गुरु की शिक्षा भी तभी फलदायी होगी जब हम सत्यनिष्ठ होंगे।
"अखंडमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मे श्रीगुरवेनमः॥"
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२७ दिसंबर २०२५
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कल लिखा गया था ---
किसी भी आध्यात्मिक साधना को आरंभ करने से पूर्व एक ब्रहमनिष्ठ श्रौत्रीय (जिसे श्रुतियों यानि वेदों का ज्ञान हो) आचार्य का मार्गदर्शन अनिवार्य है।
जिनको पूर्व जन्मों में सिद्धि मिल चुकी है, ऐसे मुमुक्षुओं को उनके पूर्व जन्मों के आचार्य उन्हें ढूंढ कर उनका मार्गदर्शन करते हैं।
केवल पुस्तकों से पढ़कर किसी साधना का आरंभ न करें। किसी ब्रहमनिष्ठ आचार्य से मार्गदर्शन अवश्य लें। आपका मंगल हो।
ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ नमः शिवाय !!
२६ दिसंबर २०२५
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