"राम" नाम पर सबका जन्मसिद्ध अधिकार है। इसने पता नहीं अब तक कितने असंख्य लोगों को तारा है और कितनों को तारेगा। यह हमें परमात्मा का सबसे बड़ा उपहार है। ध्यानमुद्रा शांभवी में तो इसका विधिवत जप करें ही, लेकिन चलते-फिरते, उठते-बैठते, शौच-अशौच और देश-काल आदि के सब बंधनों से स्वयं को मुक्त कर इसका हर समय मानसिक जप कर सकते हैं।
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मंदिरों के बाहर द्वार पर एक घंटा लटका रहता है, जिसके अंदर लटकते हुए लौहदंड से जब इस पर प्रहार किया जाता है तब एक ध्वनि गूँजती है। वह ध्वनि हमारे सूक्ष्मदेह में मेरुदण्ड के अनाहतचक्र पर प्रहार करती है जिससे भक्तिभाव जागृत होता है। वैसे ही कल्पना कीजिये कि अन्तरिक्ष में एक घंटा लटका हुआ जिसमें से एक ध्वनि निकल रही है। उस ध्वनि को सुनते रहिए और "रां" बीज का मानसिक जप करते रहिये। आपके जीवन में एक चमत्कार घटित हो जायेगा।
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इसकी महिमा इतनी अधिक महान है कि शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती।
"राम नाम मणि दीप धरु, जीह देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहिरौ, जो चाहसी उजियार॥"
इसमें रूपक अलंकार और भक्ति रस है। यहाँ 'राम नाम' को 'मणि-दीप' (रत्न-दीपक) के समान बताया गया है, जो उपमेय और उपमान का भेद मिटाकर एक रूप कर देता है, जिससे भीतर और बाहर ज्ञान और पवित्रता फैल सके।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२० दिसंबर २०२५
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