Monday, 29 December 2025

आजकल मुझे निमित्त बनाकर भगवान श्रीकृष्ण अपनी साधना स्वयं कर रहे हैं ---

आजकल मुझे निमित्त बनाकर भगवान श्रीकृष्ण अपनी साधना स्वयं कर रहे हैं। मैं जहां भी हूँ, आप सब के हृदय में हूँ। आप सबसे मिले प्रेम के कारण मैं अभिभूत हूँ। आप सब कृतकृत्य हों, और आपका जीवन कृतार्थ हो।

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जब भी समय मिले अपनी साँसों पर ध्यान दें और अजपाजप करें। इसे हंसयोग और हंसवतीऋक भी कहते हैं। इसका वर्णन कृष्णयजुर्वेद का श्वेताश्वरोपनिषद करता है। प्रणव का मूर्धा में मानसिक जप भी कीजिये। सारे उपनिषद इसकी महिमा करते हैं। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने भी इसे बहुत अच्छी तरह समझाया है। इसे खेचरी या अर्धखेचरी मुद्रा में करेंगे तो लाभ बहुत अधिक होगा।
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यह हमारा भ्रम है कि हम सांसें ले रहे हैं। हमारे माध्यम से भगवान स्वयं साँस ले रहे हैं। वे ही हमारे हृदय में धडक रहे हैं, वे ही इन आँखों से देख रहे हैं, इन पैरों से वे ही चल रहे हैं, और इस मष्तिष्क से वे ही सोच रहे हैं। इन कानों से मंत्र-श्रवण भी वे ही कर रहे हैं, और जप भी वे ही कर रहे हैं। हम अपना मन उनमें लगा देंगे तो हमारा काम बड़ा आसान हो जाएगा। मन को भगवान में लगाना -- इस सृष्टि में सबसे अधिक कठिन काम है। मन -- भगवान में लग गया तो मान लीजिये कि आधे से अधिक युद्ध हम जीत चुके हैं।
शुभाशीर्वाद !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२६ दिसंबर २०२५

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