हमारे जीवन का प्रथम, अंतिम और एकमात्र लक्ष्य/उद्देश्य -- "ईश्वर की प्राप्ति" है। इसके लिए कोई से भी साधन हों -- भक्ति, योग, तंत्र आदि सब स्वीकार्य हों।
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अब इस समय साधना की सारी विधियों का महत्व समाप्त हो गया है। साधना की सारी पद्धतियाँ अब भूतकाल का विषय रह गयी हैं। वर्तमान में महत्व रहा है सिर्फ -- "परमात्मा की प्रत्यक्ष अनुभूतियों" का जो प्रेम और आनंद के रूप में अनुभूत और व्यक्त हो रही हैं।
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नदियों का प्रवाह महासागर की ओर होता है। लेकिन एक बार महासागर में मिलने के पश्चात नदियों का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो जाता है। फिर महासागर का ही अवशेष रहता है। जो जलराशि महासागर से मिल गई हैं, वह बापस नदियों में नहीं जाना चाहती हैं। इसी तरह अब सारे पंथों और सिद्धांतों का कोई महत्व नहीं रहा है। भगवान हैं, इसी समय है, यही पर हैं, हर समय और सर्वत्र हैं। वे हैं, बस यही महत्वपूर्ण है। भगवान की आनंद रूपी जलराशि में तैर रहे हैं, उनकी जलराशि बन कर उनके महासागर में विलीन हो गये हैं। यही भाव सदा बना रहे।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ दिसंबर २०२३
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