हम परमब्रह्म परमशिव परमात्मा की ब्राह्मी-चेतना, यानि कूटस्थ-चैतन्य में, प्रयासपूर्वक निरंतर बने रहेंगे ---
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अंततः भगवत्-प्राप्ति/आत्म-साक्षात्कार/कैवल्य-मोक्ष ही जीवन का एकमात्र उद्देश्य और सनातन-धर्म का सार है। परमात्मा ही हमारा लक्ष्य है। वे हर समय हमारे समक्ष अपने परम ज्योतिर्मय रूप में हैं। उनके पथ पर कहीं कोई अंधकार नहीं है। हमारी दृष्टि उन पर ही स्थिर रहे, हम उन्हीं की चेतना में सदा उनकी ओर ही अग्रसर रहें। राग-द्वेष व अहंकार से मुक्त होकर हम वीतराग होंगे। हमारी प्रज्ञा परमात्मा में स्थिर होगी और हम स्थितप्रज्ञ होंगे। हमारी चेतना निरंतर कूटस्थ-चैतन्य में होगी, और हम सदा ब्राह्मी-स्थिति में रहेंगे।
हम सदा हर समय परमब्रह्म परमात्मा के साथ एक हैं। उनमें और हमारे में कोई भेद नहीं है। अब इसी क्षण से जब भी समय मिलेगा तब, और विशेषकर रात्रि की निःस्तब्धता में यथासंभव अधिकाधिक समय गुरु प्रदत्त विधि से परमात्मा की उपासना/ध्यान आदि में ही व्यतीत करेंगे।
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हर समय परमात्मा का स्मरण करते हुए ही हमें अपनी उपासना की अवधि का समय भी बढ़ा कर २४ घंटों में से कम से कम ८ घंटों का करना है। अब से प्रतिदिन कम से कम ८ घंटे भगवान का विधिवत ध्यान करेंगे, जो दो टुकड़ों में भी कर सकते हैं। परमात्मा ही हमारा अपना स्वरूप है। हम यह मनुष्य शरीर नहीं, सर्वव्यापी परमात्मा के साथ एक हैं। हम अपनी चेतना के उच्चतम बिन्दु पर परमशिव परमात्मा के अनंत परम ज्योतिर्मय रूप का ध्यान करें। पृष्ठभूमि में मंत्र का श्रवण भी निरंतर होता रहे। हम स्वयं मंत्रमय और परम ज्योतिर्मय हैं। सबसे बड़े गुरु तो भगवान श्रीकृष्ण स्वयं हैं, वे जगतगुरु हैं। कभी तो वे अपनी त्रिभंग-मुद्रा में, या कभी शांभवी-मुद्रा में हर समय हमारे साथ रहते है।
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भारत को सबसे बड़ा खतरा अधर्म से है। हमारी साधना से ही धर्म की जय होगी, और अधर्म का नाश होगा। आज के दिन से ही भारत और सनातन धर्म की रक्षा के लिए अधिकाधिक साधना करें। किसी भी तरह के वाद-विवाद आदि में न पड़ें। हमारा लक्ष्य वाद-विवाद नहीं, परमात्मा की प्राप्ति है। भगवान का ध्यान हमें चिन्ता मुक्त कर देता है| तत्पश्चात हम केवल निमित्त मात्र बन जाते हैं| हमारे माध्यम से भगवान ही सारे कार्य करते हैं।
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भारतवर्ष में मनुष्य देह में जन्म लेकर भी यदि कोई भगवान की भक्ति ना करे तो वह अभागा है। भगवान के प्रति परम प्रेम, समर्पण और समष्टि के कल्याण की अवधारणा सिर्फ भारत की ही देन है। सनातन धर्म का आधार भी यही है। पहले निज जीवन में परमात्मा को व्यक्त करो, फिर जीवन के सारे कार्य श्रेष्ठतम ही होंगे। परमात्मा को पूर्ण ह्रदय से प्रेम करो, फिर सब कुछ प्राप्त हो जाएगा। धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ दिसंबर २०२४
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