सर्वव्यापी ज्योतिर्मय ब्रह्म का ध्यान ही हमारा स्वभाविक जीवन है। यही श्रीमद्भगवद्गीता में बताई हुई ब्राह्मी-स्थिति, और कूटस्थ-चैतन्य है। यही हरेक उत्सव -- दीवाली, होली, क्रिसमस, नववर्ष, और अन्य सब कुछ है। पूरी सृष्टि इसमें समाहित, और यह पूरी सृष्टि में व्याप्त है। हम यह भौतिक देह नहीं, सर्वव्यापी ज्योतिर्मय ब्रह्म के साथ एक हैं। हर समय उस की चेतना में रहें। इस ज्योति में से प्रणव यानि अक्षर-ब्रह्म की एक मधुर ध्वनि निःसृत हो रही है। इस ज्योति और अक्षर में स्वयं का विलय कर दें। उस अक्षर-ब्रह्म का मानसिक जप करते रहें। बीच-बीच में कभी कभी आँखें खोलकर इस भौतिक शरीर को भी देख कर मानसिक रूप से कह दें कि मैं यह शरीर नहीं, प्रत्यक्ष ब्रह्म हूँ। यह शरीर तो इस लोकयात्रा के लिए मिला हुआ एक वाहन मात्र है।
Wednesday, 25 December 2024
सर्वव्यापी ज्योतिर्मय ब्रह्म का ध्यान ही हमारा स्वभाविक जीवन है ---
शांभवी-मुद्रा में बैठें -- नीचे ऊनी और रेशमी आसन, पद्मासन या सिद्धासन, उन्नत मेरुदण्ड, शिवनेत्र यानि दृष्टिपथ भ्रूमध्य में स्थिर, खेचरी या अर्ध-खेचरी, और चेतना ब्रह्ममय। भूमि पर नहीं बैठ सकते हो तो कोई बात नहीं, एक ऊनी कंबल बिछाकर उस पर एक बिना हत्थे की कुर्सी रख लो और कुर्सी पर बैठ जाओ। नितंबों के नीचे एक गद्दी लगा लो जिससे कमर सीधी रखने में आसानी हो। बैठने से पूर्व, और बीच बीच में हठयोग की महामुद्रा, त्रिबंध और प्राणायाम आदि भी करें। नासिका से सांस लेने में कठिनाई हो तो उसके उपचार की विधियाँ भी हठयोग में हैं। फिर भी कोई कठिनाई है तो अपने डॉक्टर से सलाह लें। ध्यान के उपरांत हठयोग की योनिमुद्रा आदि का भी अभ्यास करें। ग्रन्थों का स्वाध्याय तो करना ही होगा, कुसंग का त्याग, और सत्संग भी करना होगा।
हमारा एकमात्र लक्ष्य ईश्वर की प्राप्ति है, जिसके लिए भक्ति, हठयोग, राजयोग और तंत्र आदि सभी का सहारा लेना होगा। कोई संशय है तो बड़ी विनम्रता से किसी ब्रहमनिष्ठ सिद्ध महात्मा आचार्य से मार्गदर्शन प्राप्त करें।
मैं उपलब्ध नहीं हूँ। मंगलमय शुभ कामना और नमन !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२५ दिसंबर २०२३
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