अब तक जो हुआ सो हुआ, जन्म-जन्मांतरों के सारे पाप-पुण्य, बुरे-अच्छे सारे कर्म और उन के फल, बुराई-अच्छाई सब कुछ, और बचा-खुचा सारा शेष जीवन -- भगवान के श्रीचरणों में समर्पित है| किसी से कुछ भी नहीं चाहिए| उन की इच्छा ही मेरी इच्छा है| उन के सिवाय अन्य किसी का साथ भी नहीं चाहिए| भगवान की भक्ति -- हमारे और भगवान के मध्य का व्यक्तिगत विषय है| उनके सिवाय अन्य कोई है ही नहीं, मैं भी नहीं| यह "मैं" भी उन्हीं की एक अभिव्यक्ति है|
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आज गीता के कम से कम एक अध्याय का तो अर्थ सहित पाठ करें| फिर नित्य कम से कम पाँच श्लोकों का अर्थ सहित पाठ करें, और भगवान के श्रीचरणों का ध्यान करें| भगवान श्रीकृष्ण स्वयं ही गीता का वास्तविक ज्ञान सिखा सकते हैं| अतः प्रत्यक्ष उनसे सीखने में ही सार है| एक बार तो गीता की किसी भी टीका को ले लें, जो हमें समझ में आ सकती हैं| फिर गीता के कम से कम पाँच श्लोक अर्थ सहित पढ़कर भगवान का ध्यान करें, और उनकी कृपा से जो भी समझ में आ जाये, वह स्वीकार करें| यह एक सतत् प्रक्रिया हो| भगवान श्रीकृष्ण का गहनतम ध्यान ही सार्थक है| इसमें खोने को कुछ नहीं है| जीवन के इस संध्याकाल के अंतिम क्षणों में भगवान श्रीकृष्ण की चेतना में तो जीवन का समापन होगा| बौद्धिक संतुष्टि तृप्त नहीं करती क्योंकि इस अल्प बुद्धि की भी एक सीमा है|
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"वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् | देवकीपरमानन्दं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ||"
"वंशी विभूषित करा नवनीर दाभात् ,
पीताम्बरा दरुण बिंब फला धरोष्ठात् |
पूर्णेन्दु सुन्दर मुखादर बिंदु नेत्रात् ,
कृष्णात परम किमपि तत्व अहं न जानि ||"
"कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणत क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:||"
"नमो ब्रह्मण्य देवाय गो ब्राह्मण हिताय च, जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः||"
"मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम् । यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम्||"
"कस्तुरी तिलकम् ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम् ,
नासाग्रे वरमौक्तिकम् करतले, वेणु करे कंकणम् |
सर्वांगे हरिचन्दनम् सुललितम्, कंठे च मुक्तावलि |
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी ||"
"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||"
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ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
२५ दिसंबर २०२०
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