Tuesday 31 January 2017

परमात्मा एक श्रद्धा, विश्वास, निष्ठा और अनुभूति है .....

परमात्मा एक श्रद्धा, विश्वास, निष्ठा और अनुभूति है .....
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इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई सूर्योदय में विश्वास करता है या नहीं, सूर्योदय तो होगा ही| वैसे ही परमात्मा का अस्तित्व किसी के विश्वास/अविश्वास पर निर्भर नहीं हैं|

परमात्मा अपरिभाष्य हैं| परमात्मा को किसी परिभाषा में नहीं बाँध सकते| परमात्मा को परिभाषित करने का प्रयास वैसे ही है जैसे कनक कसौटी पर हीरे को कसने का प्रयास|

परमात्मा हमारा अस्तित्व है, जिसे जाने बिना जीवन में हम अतृप्त रह जाते हैं| उसे जानने का प्रयास स्वयं को जानने का प्रयास है|

वर्तमान क्षण अति अति गहन और विराट है| यह रहस्यों का रहस्य है|
देशकाल से परे शाश्वतता में स्थिर पूर्णता ही हमारा जीवन है|
मैं शाश्वत अनन्त असीम हूँ|
ॐ ॐ ॐ |  ॐ ॐ ॐ ||

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