ह्रदय की घनीभूत पीड़ा व उसका समाधान ...... जीवन का ध्रुव ........
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वर्षों पहिले युवावस्था में जय शंकर प्रसाद का 'कामायनी' महाकाव्य पढ़ा था जिसकी अनेक पंक्तियाँ आज भी याद हैं| उसका आरम्भ कुछ इस प्रकार होता है ....
"हिमगिरी के उत्तुंग शिखर पर बैठ शिला की शीतल छाँह,
एक व्यक्ति भीगे नयनों से देख रहा था प्रलय अथाह |"
.
जीवन में जब अपनी आस्थाओं पर और मान्यताओं पर मर्मान्तक प्रहारों को होते हुए देखता हूँ तो बड़ी पीड़ा होती है और कई बार तो ऐसा लगता है कि हम भी उस असहाय व्यक्ति की ही तरह इस अथाह प्रलय को देख रहे हैं, और कुछ भी नहीं कर सकते| पर अगले ही क्षण निज विवेक कहता है ........ "नहीं", तुम असहाय नहीं हो, तुम दीन-हीन नहीं हो ........ |
निज विवेक कहता है ....... तुम बहुत कुछ कर सकते हो .......|
.
जब स्वयं में अनेक कमियों को देखता हूँ तो निराश हो जाता हूँ| पर शीघ्र ही निज विवेक फिर कहता है ...... तुम, ये कमियाँ नहीं हो...... परमात्मा की शक्तियाँ तुम्हारे साथ हैं.....|
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इसी उधेड़बुन में जीवन निकल गया है, सोचकर फिर निराश हो जाता हूँ| तब फिर कोई छिपा हुआ विवेक ह्रदय के भीतर से कहता है ....... जीवन शाश्वत और अनंत है, अपने सपनों को साकार कर सकते हो ..... अपने संकल्पों को पूर्ण कर सकते हो........ |
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निश्चित रूप से अपने सपनों को साकार करेंगे| आने वाली हर बाधा से दूर से ही निकल जाएँगे, किसी भी बाधा को मार्ग में नहीं आने देंगे|
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अनंत शक्तियाँ साथ में हैं| एक पथ प्रदर्शक जीवन का ध्रुव बन गया है जिसकी कृपा से इस घनी अँधेरी रात्रि में भी मार्ग दिखाई दे रहा है|
जो भी होगा, अच्छा ही होगा| परमात्मा की इस सृष्टि में कुछ भी गलत नहीं हो सकता|
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उपरोक्त कवि के ही शब्दों में ....
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वर्षों पहिले युवावस्था में जय शंकर प्रसाद का 'कामायनी' महाकाव्य पढ़ा था जिसकी अनेक पंक्तियाँ आज भी याद हैं| उसका आरम्भ कुछ इस प्रकार होता है ....
"हिमगिरी के उत्तुंग शिखर पर बैठ शिला की शीतल छाँह,
एक व्यक्ति भीगे नयनों से देख रहा था प्रलय अथाह |"
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जीवन में जब अपनी आस्थाओं पर और मान्यताओं पर मर्मान्तक प्रहारों को होते हुए देखता हूँ तो बड़ी पीड़ा होती है और कई बार तो ऐसा लगता है कि हम भी उस असहाय व्यक्ति की ही तरह इस अथाह प्रलय को देख रहे हैं, और कुछ भी नहीं कर सकते| पर अगले ही क्षण निज विवेक कहता है ........ "नहीं", तुम असहाय नहीं हो, तुम दीन-हीन नहीं हो ........ |
निज विवेक कहता है ....... तुम बहुत कुछ कर सकते हो .......|
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जब स्वयं में अनेक कमियों को देखता हूँ तो निराश हो जाता हूँ| पर शीघ्र ही निज विवेक फिर कहता है ...... तुम, ये कमियाँ नहीं हो...... परमात्मा की शक्तियाँ तुम्हारे साथ हैं.....|
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इसी उधेड़बुन में जीवन निकल गया है, सोचकर फिर निराश हो जाता हूँ| तब फिर कोई छिपा हुआ विवेक ह्रदय के भीतर से कहता है ....... जीवन शाश्वत और अनंत है, अपने सपनों को साकार कर सकते हो ..... अपने संकल्पों को पूर्ण कर सकते हो........ |
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निश्चित रूप से अपने सपनों को साकार करेंगे| आने वाली हर बाधा से दूर से ही निकल जाएँगे, किसी भी बाधा को मार्ग में नहीं आने देंगे|
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अनंत शक्तियाँ साथ में हैं| एक पथ प्रदर्शक जीवन का ध्रुव बन गया है जिसकी कृपा से इस घनी अँधेरी रात्रि में भी मार्ग दिखाई दे रहा है|
जो भी होगा, अच्छा ही होगा| परमात्मा की इस सृष्टि में कुछ भी गलत नहीं हो सकता|
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उपरोक्त कवि के ही शब्दों में ....
"जिसे तुम समझे हो अभिशाप, जगत की ज्वालाओं का मूल |
ईश का वह रहस्य वरदान, जिसे तुम कभी न जाना भूल ||"
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|| ॐ ॐ ॐ || जब सृष्टि के स्वामी साथ में हैं तो अब कुछ भी असाध्य नहीं है|
I have made Thee polestar of my life
Though my sea is dark and my stars are gone
Still I see the path through Thy mercy ......... (P.Y.)
.
शिवोहं शिवोहं शिवोहं अयमात्मा ब्रह्म | ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
माघ कृ.५ वि.स.२०७२, 29 जनवरी 2016
ईश का वह रहस्य वरदान, जिसे तुम कभी न जाना भूल ||"
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|| ॐ ॐ ॐ || जब सृष्टि के स्वामी साथ में हैं तो अब कुछ भी असाध्य नहीं है|
I have made Thee polestar of my life
Though my sea is dark and my stars are gone
Still I see the path through Thy mercy ......... (P.Y.)
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शिवोहं शिवोहं शिवोहं अयमात्मा ब्रह्म | ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
माघ कृ.५ वि.स.२०७२, 29 जनवरी 2016
विश्व में जो भी घटनाक्रम हो रहे हैं वे इस संक्रान्तिकाल में बड़े सकारात्मक हैं| एक बात तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि विश्व की चेतना ऊपर उठ रही है| जो नकारात्मकता दिखाई दे रही है वह इसलिए कि पहले लोगों को पता नहीं चलता था कि कहाँ क्या हो रहा है, अब सब पता चल जाता है| कोई भी बात आज के इस युग में छिपी नहीं रह सकती|
ReplyDeleteये बुराइयाँ पहले अधिक थीं, अब कम हो रही हैं| जो भी होगा वह अच्छे के लिए होगा|
ॐ नमः शिवाय| ॐ ॐ ॐ ||