Tuesday 31 January 2017

अवचेतन मन को संस्कारित करने के लिए आध्यात्मिक साधनाओं की आवश्यकता :---

अवचेतन मन को संस्कारित करने के लिए
आध्यात्मिक साधनाओं की आवश्यकता :---
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यह विषय अति गूढ़ है जिसे समझना एक आध्यात्मिक साधक के लिए अति आवश्यक है| साधना करते करते साधक के मन में एक अहंकार सा आ जाता है जिसके कारण वह साधना मार्ग से विमुख हो जाता है| इसका कारण और निवारण हमें समझना पड़ेगा तभी हम साधना में विक्षेप से अपनी रक्षा कर सकेंगे व आगे प्रगति कर पायेंगे| मैं कम से कम शब्दों में इसे व्यक्त करने का प्रयास कर रहा हूँ|
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हमारा अवचेतन मन ही हमारे विचारों और भावों को घनीभूत रूप से व्यक्त करता है| अवचेतन मन एक कंप्यूटर की तरह है जिसमें हम चेतन मन से जो भी प्रोग्राम फीड करते हैं, अवचेतन मन हमें उसी रूप में संचालित करता है| हमें बचपन से अब तक बार बार जो भी बताया गया है, या जो भी सुझाव हमने स्वयं को दिए हैं, उसी कंडीशनिंग के उत्पाद हम हैं|
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कल्पना शक्ति का प्रभाव भी अवचेतन मन पर बहुत गहरा पड़ता है| इतना ही नहीं हम जिस वातावरण में रहते हैं, जैसे लोगों के साथ रहते हैं, जैसा सोचते हैं, जैसा पढ़ते हैं, वह सब हमारे अवचेतन मन में प्रवेशित हो जाता है| सूक्ष्म जगत की भी अनेक अच्छी-बुरी शक्तियाँ हमारे अवचेतन मन पर प्रभाव डालती हैं|
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अवचेतन मन ही हमारे उत्थान और पतन का कारण है| हमारे जीवन की प्रगति और अवनति का नियंत्रण व संचालन अवचेतन मन से ही होता है| अवचेतन मन को संस्कारित किये बिना हम भगवान की भक्ति, धारणा, ध्यान, समर्पण आदि नहीं कर सकते| यदि हम अवचेतन मन को प्रशिक्षित किये बिना ऐसा करने का प्रयास करेंगे तो विक्षेप आ जाएगा या उच्चाटन हो जाएगा| कोई श्रद्धा-विश्वास भी हमारे में जागृत नहीं होगा|
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अवचेतन मन एक कामधेनु या कल्पवृक्ष से कम नहीं है| आध्यात्मिक साधनाओं द्वारा हम अपने अवचेतन मन को संस्कारित भी करते हैं| बार बार हम परमात्मा से अहैतुकी प्रेम का चिंतन करेंगे तो वह अवचेतन मन में गहराई से बैठकर हमारा स्वभाव बन जाएगा| ऐसे ही धारणा, जप व कीर्तन आदि के द्वारा हम यही करते हैं|

यह विषय बहुत लंबा है अतः इसे यहीं विराम दे रहा हूँ|जो बात मैं व्यक्त करना चाहता था वह हो गयी है| सभी को शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ ॐ ॐ ||

1 comment:

  1. बार बार हम परमात्मा से अहैतुकी प्रेम का चिंतन करेंगे तो वह अवचेतन मन में गहराई से बैठकर हमारा स्वभाव बन जाएगा|
    अवचेतन मन को संस्कारित किये बिना हम भगवान की भक्ति, धारणा, ध्यान, समर्पण आदि कुछ भी नहीं कर सकते|

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