दीपावली से दस दिन पूर्व से ही आकाश-दीप (ज्योति-कलश) टाँगने की परंपरा न जाने कब से लुप्त हो गई? इसे पुनःस्थापित कीजिये।
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बचपन में हम दीपावली से दस दिन पूर्व ही घर की छत पर एक ऊंचे बांस पर आकाश दीप (ज्योति-कलश) लटकाया करते थे। इसे बहुत शुभ माना जाता था। आजकल वह ढूँढने पर भी कहीं नहीं मिलता।
भगवान श्रीराम के आगमन से पूर्व उनके चैतन्य से पावन हुए वायुमंडल को और भी अधिक पावन करने को आकाशदीप (ज्योति-कलश) जलाया जाता था, जिससे वातावरण शुद्ध होता था।
मूल रूप से यह कलश मिट्टी का होता था, जिसमें अनेक गोलाकार छेद होते थे। इसके भीतर मिट्टी का दीप रखने के लिए स्थान होता था।
जयशंकर प्रसाद की एक कहानी भी है "आकाशदीप" शीर्षक से। एक गाना भी बहुत प्रसिद्ध हुआ था --ज्योति-कलश झलके।
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दीपावली का संदेश --
दरिद्रता सबसे बड़ा पाप है। इसके विरुद्ध संघर्ष करते रहना चाहिए। भौतिक और आध्यात्मिक -- दोनों तरह की दरिद्रताएँ अभिशाप हैं। इनसे यथाशीघ्र बाहर निकल जाना चाहिए। दीपावली पर दिन में खूब शयन कर लें। पूरी रात जागकर जगन्माता की साधना करें। उनसे यह वरदान मांगे कि हमारी भौतिक, मानसिक, बौद्धिक व सब तरह की दरिद्रता दूर हो। घर पर पंडित जी को ससम्मान बुलाकर उनके मार्गदर्शन में श्री-सूक्त के मंत्रों के साथ विधि-विधान से हवन करवाएँ। उसमें आवश्यक हो तो कमलगट्टे, जायफल, व खीर आदि से आहुतियाँ भी दें। भगवती का खूब ध्यान करें। आपका कल्याण हो।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ नवंबर २०२३
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