Monday, 24 February 2025

योग और भोग ---

 योग और भोग ---

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योग और भोग दोनों का एक साथ होने की बात को समझ पाना मेरी बौद्धिक क्षमता से परे है। जैसे अंधकार और प्रकाश दोनों एक साथ नहीं रह सकते, वैसे ही राम और काम भी दोनों एक साथ नहीं रह सकते। काम से मेरा अभिप्राय सिर्फ काम-वासना से ही नहीं है। हमारे मन का लोभ, अहंकार और राग-द्वेष भी काम-वासना का भाग ही है। तुलसीदास जी ने कहा है --
"जहाँ राम तहँ काम नहिं, जहाँ काम नहिं राम।
तुलसी कबहूँ होत नहिं, रवि रजनी इक ठाम॥"
जहाँ लोभ है, वहाँ भगवान की भक्ति की संभावना बिलकुल भी नहीं है। यदि कण मात्र भी लोभ मन में है तो वह सारी आध्यात्मिक साधनाओं को व्यर्थ कर देता है।
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पर स्त्री/पुरुष का वासनात्मक चिंतन, यहाँ तक कि परस्त्री/पुरुष का स्पर्श भी पाप है। सात्विक भोजन करें, कुसंग का त्याग विष की तरह कर दें, और भगवान से अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करते रहें। भगवान ही हमारी रक्षा इस पाप से कर सकते हैं। साकार रूप में भगवती महाकाली या हनुमान जी की साधना करें। भगवान के ये रूप हमारी रक्षा निरंतर कर सकते हैं। योग और भोग को एक साथ पाने का प्रलोभन एक धोखा है, जिस से बचें।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ सितंबर २०२३

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