Monday, 24 February 2025

आध्यात्मिक साधना की दृष्टि से इन दिनों एक बहुत ही पवित्र और शुभ समय चल रहा है ---

 आध्यात्मिक साधना की दृष्टि से इन दिनों एक बहुत ही पवित्र और शुभ समय चल रहा है। किसी भी तरह के वाद-विवाद से बचें, और परमात्मा के विष्णु या परमशिव रूप का निरंतर ध्यान करते रहें। किसी भी तरह के वाद-विवाद में फँस भी जाएँ तो मौन रहें, और उस वातावरण और परिस्थिति से दूर चले जाएँ।

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अपने इष्ट के स्वरूप भाव में रहो और उनके बीजमंत्र का निरंतर तेलधारा की तरह ध्यान पूर्वक श्रवण करते हुए मानसिक जप करते रहें। यह भी एक कला है।
भ्रूमध्य में जब ध्यान करते हैं, तब धीरे धीरे अंधकार के पीछे एक ब्रह्मज्योति के दर्शन होने लगते हैं। जिन्हें उस ब्रह्मज्योति के दर्शन होते हैं वे बड़े भाग्यशाली हैं। वह ज्योति ही हमारा सूर्यमण्डल है। स्वयं शिवभाव में रहते हुए उस सूर्यमण्डल के मध्य में पुरुषोत्तम का ध्यान करें। जब परमप्रेम (भक्ति) और समर्पण का भाव जागृत होगा तब हरिःकृपा से सब समझ में आ जाएगा।
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मुझे एक तपस्वी महात्मा ने नित्य पुरुष-सूक्त, श्री-सूक्त, रुद्र-सूक्त, सूर्य-सूक्त और भद्र-सूक्त का पाठ करने को कहा था। जिन से ये हो सकता है वे अवश्य करें, मुझ से तो ये नहीं हो सका। संस्कृत भाषा के शुद्ध उच्चारण का भी मुझे अभ्यास नहीं है, क्योंकि मैं बहुत देरी से साधना के क्षेत्र में आया। लेकिन भगवान का जो संदेश श्रीमद्भगवद्गीता और उपनिषदों में है, वह बिना किसी संशय के समझ में आ जाता है।
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अपनी बढ़ी हुई भौतिक आयु, और स्वास्थ्य संबंधी कारणों से व्यक्तिगत रूप से मैं किसी का मार्गदर्शन नहीं कर सकता। दो चार मिनट से अधिक किसी से बात भी नहीं कर सकता। मुझे अकेला ही छोड़ दें। मैं भगवान के साथ बहुत प्रसन्न हूँ।
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"त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप॥
वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते॥
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः॥"
ॐ तत्सत् ॥
कृपा शंकर
१७ जून २०२४

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