हे पुराणपुरुष, तुम निरंतर मेरे कूटस्थ-चैतन्य में रहो ---
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दृष्टि सदा अपने लक्ष्य की ओर रहे। कुछ भी मत देखो, इधर-उधर किधर भी मत देखो, लक्ष्य सदा सामने रहे। लक्ष्य है -- "ब्रह्म", जिसे मैं परमशिव कहता हूँ। गीता में अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति में उन्हें "पुराण-पुरुष" कहा है --
"त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप॥११:३८॥"
अर्थात् - आप आदिदेव और पुराण (सनातन) पुरुष हैं। आप इस जगत् के परम आश्रय, ज्ञाता, ज्ञेय, (जानने योग्य) और परम धाम हैं। हे अनन्तरूप आपसे ही यह विश्व व्याप्त है॥
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जगन्नाथ स्तुति में -- "जगन्नाथः स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे" कह कर उनकी स्तुति कही गई है।
हम जीवन पर्यंत ब्रह्म में स्थित रहें। गीता में भगवान कहते हैं --
"या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः॥२:६९॥"
अर्थात् - सम्पूर्ण प्राणियों की जो रात (परमात्मासे विमुखता) है, उसमें संयमी मनुष्य जागता है, और जिसमें सब प्राणी जागते हैं (भोग और संग्रहमें लगे रहते हैं), वह तत्त्वको जाननेवाले मुनिकी दृष्टिमें रात है।
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तामस स्वभाव के कारण सब पदार्थों का अविवेक कराने वाली रात्रि का नाम निशा है। यह जो लौकिक और वैदिक व्यवहार है वह सब का सब अविद्या का कार्य है। स्थितप्रज्ञ के लिए कोई कर्म नहीं होता। तीनों एषणाओं का त्याग करना होगा, क्योंकि भोगों की कामना करने वाले को इस सृष्टि में शांति और सुख नहीं मिल सकता।
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भगवान कहते हैं ---
"विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।
निर्ममो निरहंकारः स शांतिमधिगच्छति॥२:७१॥"
अर्थात् - जो मनुष्य सम्पूर्ण कामनाओं का त्याग करके स्पृहारहित, ममतारहित और अहंकाररहित होकर आचरण करता है, वह शान्ति को प्राप्त होता है।
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भगवान सार रूप में कहते हैं --
"एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति।
स्थित्वाऽस्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति॥२:७२॥"
अर्थात् - हे पार्थ यह ब्राह्मी स्थिति है। इसे प्राप्त कर पुरुष मोहित नहीं होता। अन्तकाल में भी इस निष्ठा में स्थित होकर ब्रह्मनिर्वाण (ब्रह्म के साथ एकत्व) को प्राप्त होता है॥
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सार की बात जो मेरी समझ से सर्वश्रेष्ठ हो सकती है ---
अपने उपास्य/इष्टदेव/देवी का विग्रह मानसिक रूप से सदा अपने समक्ष रखो। उन्हें कभी मत भूलो। हर समय उनकी चेतना में रहो। उन्हें ही अपने जीवन की हरेक गतिविधि का कर्ता बनाओ, और स्वयं निमित्त मात्र एक साक्षी बनकर रहो।
हम जीवनपर्यन्त ब्रह्म में स्थित रहें। परमात्म रूप आप सब को नमन !!
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ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ मार्च २०२३
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