सत्य-सनातन-धर्म विजयी होगा, भारत विजयी होगा।
ईश्वर को पाने की अभीप्सा जिनमें जागृत होगी, वे सनातन-धर्म को अपनायेंगे, क्योंकि सिर्फ सनातन-धर्म ही ईश्वर-प्राप्ति का मार्ग बताता है।
हमारे पतन का एकमात्र कारण हमारा लोभ और अहंकार रूपी तमोगुण था। वह समय ही अधोगामी था। अब कालचक्र की दिशा ऊर्ध्वगामी है। अधर्मियों का विनाश निश्चित है।
एक ही पाठ सदा से निरंतर पढ़ाया जा रहा है। जो उसको पढ़ेंगे, उनकी सद्गति होगी। जो नहीं पढ़ेंगे, वे उसे पढ़ने को बाध्य कर दिये जायेंगे। हरेक प्राणी का मोक्ष और मुक्ति, यानि परमात्मा से मिलना निश्चित है।
हम शाश्वत आत्मा हैं, यह नश्वर देह नहीं। आत्मा का स्वधर्म है -- परमात्मा को पाने की अभीप्सा, परमप्रेम और समर्पण, सदाचरण व निज जीवन में परमात्मा की निरंतर अभिव्यक्ति।
अपने स्वधर्म का पालन करें। यही हमारा कर्मयोग, भक्तियोग व ज्ञानयोग है।
अन्यथा परिणाम बड़े भयावह है। थोड़े-बहुत धर्म का पालन भी हमारी रक्षा करेगा।
"श्रेयान्स्वधर्मो विगुण: परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह:॥३:३५॥" (गीता)
"नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते।
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्॥२:४०॥" (गीता)
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१३ अक्तूबर २०२२
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प्रबल प्रेम के पाले पड़ के, प्रभु को नियम बदलते देखा ।
अपना मान भले टल जाए, भक्त का मान न टलते देखा ॥
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