कल मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी वि.सं. २०८०, तदानुसार शुक्रवार २२ दिसंबर सन् २०२३ को "गीता जयंती" और "मोक्षदा एकादशी" है। इसे अवश्य मनाएँ। किसी कर्मकांड के लिए शुभ मुहूर्त की जानकारी चाहिए तो अपने स्थानीय कर्मकांडी पंडित जी से पूछें। मेरी ओर से अग्रिम शुभ कामनाएं स्वीकार कीजिए।
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वह हर क्षण मंगलमय है जब हृदय में भगवान के प्रति परमप्रेम उमड़े और हम परमप्रेममय हो जाएँ।
"कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसंमूढचेताः।
अर्थात् -- करुणा के कलुष से अभिभूत और कर्तव्यपथ पर संभ्रमित हुआ मैं आपसे पूछता हूँ, कि मेरे लिये जो श्रेयष्कर हो, उसे आप निश्चय करके कहिये, क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ; शरण में आये मुझ को आप उपदेश दीजिये॥
(My heart is oppressed with pity; and my mind confused as to what my duty is. Therefore, my Lord, tell me what is best for my spiritual welfare, for I am Thy disciple. Please direct me, I pray.)
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गीता महात्म्य पर भगवान श्रीकृष्ण ने पद्म पुराण में कहा है कि भवबंधन (जन्म-मरण) से मुक्ति के लिए गीता अकेले ही पर्याप्त ग्रंथ है।
गीता के उपदेश हमें भगवान का ज्ञान कराते हैं। स्वयं भगवान पद्मनाभ के मुखारविंद से हमें गीता का ज्ञान मिला है।
श्रीगीताजी की उत्पत्ति धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में मार्गशीर्ष मास में शुक्लपक्ष की एकादशी को हुई थी। यह तिथि मोक्षदा एकादशी के नाम से विख्यात है। गीता एक सार्वभौम ग्रंथ है। यह किसी काल, धर्म, संप्रदाय या जाति विशेष के लिए नहीं अपितु संपूर्ण मानव जाति के लिए है। इसे स्वयं श्रीभगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर कहा है इसलिए इस ग्रंथ में कहीं भी श्रीकृष्ण उवाच शब्द नहीं आया है बल्कि श्रीभगवानुवाच का प्रयोग किया गया है।
इसके छोटे-छोटे १८ अध्यायों में इतना सत्य, ज्ञान व गंभीर उपदेश हैं, जो मनुष्य को नीची से नीची दशा से उठाकर देवताओं के स्थान पर बैठाने की शक्ति रखते हैं।
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"त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप॥
वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते॥
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः॥"
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ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ दिसंबर २०२३
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