सभी को धन्यवाद !! मेरी हरेक साँस के साथ, और बिना साँस के भी समष्टि का निरंतर कल्याण हो रहा है। अपनी चेतना को हर समय भ्रूमध्य पर रखो। चेतना को वहीं पर रखते हुए संसार में अपने सारे कर्तव्यों का निर्वहन होने दो। हमारा सारा काम भगवान स्वयं कर रहे हैं, हम तो उनके एक उपकरण यानि निमित्त मात्र हैं। भगवान एक प्रवाह हैं, जिन्हें अपने माध्यम से प्रवाहित होने दो। कर्ताभाव सबसे बड़ी बाधा है। सारी आध्यात्मिक साधना भी भगवान स्वयं ही कर रहे हैं, हम नहीं।
.
भगवान से भूल कर भी कभी कुछ मांगों मत। मांगने के स्थान पर अपना सम्पूर्ण अस्तित्व उन्हें समर्पित कर दो। जो कुछ भी भगवान का है, वह हम स्वयं हैं। इस सृष्टि की अनंतता में जो कुछ भी हमें दिखाई दे रहा है, और जहाँ तक भी हमारी कल्पना जाती है, वह सब हम स्वयं हैं, यह नश्वर शरीर महाराज नहीं। यह हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। यह शरीर महाराज तो एक मोटर-साइकिल है जो भगवान ने हमें इस लोकयात्रा के लिए दी है। हमारी पहिचान इस मोटर-साइकिल से है, लेकिन हम यह मोटर साइकिल नहीं है। इस मोटर-साइकिल यानि इस शरीर महाराज की देखरेख भी आवश्यक है। इसके बिना इस लोकयात्रा को हम पूर्ण नहीं कर सकेंगे।
.
अंततः हमें धर्म और अधर्म से भी ऊपर उठना पड़ेगा। निरंतर परमात्मा में रमण ही धर्म है, निरंतर परमात्मा में रमण ही सदाचार है। इस संसार की नीरवता में प्रणव की एक ध्वनी गूंज रही है, उसे सुनते रहो, उसमें अपना विलय कर दो, उस के साथ एक हो जाओ। विष्णु-सहस्त्रनाम के अनुसार यह विश्व वे ही हैं। जो वे हैं, उनके साथ वही हम है --
"ॐ विश्वं विष्णु: वषट्कारो भूत-भव्य-भवत-प्रभुः।
भूत-कृत भूत-भृत भावो भूतात्मा भूतभावनः॥"
.
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥ ॐ तत्सत्॥ ॐ ॐ ॐ॥
कृपा शंकर
१६ जनवरी २०२३
No comments:
Post a Comment